क्या ताइवान पर हमला कर सकता है चीन?
२ अप्रैल २०२१अमेरिकी सैन्य कमांडरो ने आगाह किया है कि चीन ताइवान पर फिर से नियंत्रण कायम करने को उतावला है. लेकिन कुछ जानकारों के मुताबिक बड़ा खतरा चीन की छिपी हुई "ग्रे जोन रणनीति" में निहित है.
अमेरिकी आशंका का आधार क्या है?
एक शीर्ष अमेरिकी सैन्य कमांडर ने आगाह किया है कि ताइवान पर सैन्य हमले की चीन की धमकी, जितना लोग सोचते हैं, उससे कहीं ज्यादा तीखी और दमदार है. उनके मुताबिक ताइवान पर फिर से नियंत्रण स्थापित करना चीन की सबसे पहली प्राथमिकता है.
अमेरिकी इंडो पैसिफिक कमान के कमांडर पद के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एडमिरल जॉन एक्विलिनो को चुना है. एक्विलिनो के मुताबिक, "मेरा मानना है कि यह समस्या जितना दिखती है, उससे ज्यादा नजदीक और आपात है." अपने नामांकन पर सीनेट की मुहर के लिए उसके समक्ष पेशी के दौरान उन्होंने जोर देते हुए कहा, "सबसे खतरनाक चिंता यह है कि ताइवान पर सैन्य हमला हो सकता है."
एक्विलिनो ने अमेरिकी प्रशासन से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी रक्षा हितों को मजबूत करने के लिए 27 अरब डॉलर की योजना के प्रस्ताव को निकट भविष्य में तत्काल मंजूरी देने को कहा है. उन्होंने चेतावनी दी, "चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने इलाके में कुछ ऐसी क्षमताएं हासिल कर ली हैं जिनका मकसद हमें वहां से बाहर रखने का है."
ताइवान पर चीनी हमले की क्या संभावना है?
मार्च महीने में एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के अमेरिकी कमांडर फिलिप डेविडसन ने कहा था कि वे यह मान कर चलते हैं कि अगले छह वर्षों में चीन ताइवान का रुख करेगा. डेविडसन ने मार्च में सीनेट की एक कमेटी की बैठक के दौरान कहा, "मुझे चिंता है कि 2050 तक नियम-कायदों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अमेरिकी नेतृत्व की जगह लेने और उसे नीचा दिखाने के लिए चीन अपनी महत्वाकांक्षाओं को फैला रहा है. ताइवान उसकी एक पुरानी लालसा है और इस दशक के दौरान, बल्कि अगले छह साल की अवधि में यह डर बिल्कुल स्पष्ट हुआ है." लेकिन कुछ जानकार ताइवान पर चीनी हमले की आशंका को खारिज करते हैं.
वॉशिंगटन स्थित सामरिक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में चाइना पावर प्रोजेक्ट की निदेशक बोनी ग्लेसर ने डीडब्लू को बताया, "चीनी हमले के जोखिम को अनदेखा न करना तो ठीक है लेकिन मैं मानती हूं कि निकट भविष्य में ऐसा कोई हमला नहीं हो सकता. अगर चीन को लगेगा कि उनके सारे विकल्प खत्म हो गए तब वे हमले जैसी किसी आखिरी चाल के बारे में सोच सकते हैं."
ग्लेसर के मुताबिक चीन के पास घरेलू स्तर पर और भी सरदर्द हैं, फिर भी अगले दो वर्षों में ताइवान के सामने सबसे बड़ा खतरा चीन की दबीछिपी रणनीतियों का है.
चीन की दबीछिपी रणनीतियां क्या हैं?
ग्लेसर बताते हैं कि अपनी ताकत दिखाने के लिए चीन पड़ोसी देशों के खिलाफ ग्रे जोन टेक्टिक अपनाता है. कुछ दिन पहले दक्षिणी चीन सागर में एक चट्टान के पास 200 से ज्यादा चीनी जहाज देखे गए थे. इस जगह पर फिलीपींस अपना दावा करता है. फरवरी में जापान और अमेरिका ने चीन के नए कोस्टगार्ड कानून पर चिंता जताई थी. उक्त कानून के तहत चीनी तटरक्षक दल को विवादित जल क्षेत्र में विदेशी जहाजों पर गोलियां चलाने का अधिकार दिया गया है. इस विवादित क्षेत्र में पूर्वी चीन सागर का सेनकाकु द्वीप भी शामिल है.
चीन की सबसे ताजा सैन्य कार्रवाइयों और फैसलों ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सैन्यकरण को लेकर उसके पड़ोसी देशों का डर फिर से बढ़ा दिया है. ग्लेसर के मुताबिक चीन जानता है कि अन्य देशों पर दबाव डालने में वो उन तरीकों के जरिये समर्थ बना है जो अमेरिका की ओर से संभावित सैन्य प्रतिक्रिया को उकसाने से बस जरा ही कम हैं.
ग्लेसर कहती हैं, "अगर चीन अन्य देशों को सिर्फ डराता है, परेशान करता है और धमकाता है तो असरदार ढंग से इसका जवाब देने की चुनौती अमेरिका की होगी. दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में बड़ी संख्या में तटरक्षकों या समुद्री मिलिशिया जहाजों का इस्तेमाल करने की क्षमता, चीन के संप्रभुता के दावों को ही मजबूत करेंगे. इसका मकसद दूसरे देशों को यह याद दिलाने का भी है कि वे चीनी हितों को चुनौती न दें या अंजाम भुगतने को तैयार रहें."
ताइवान पर चीन किस तरह दबाव बना रहा है?
ताइवान की तामकांग यूनिवर्सिटी में सामरिक अध्ययन के प्रोफेसर एलेक्सैंडर ह्वांग कहते हैं कि ग्रे जोन रणनीति खुल्लमखुल्ला युद्ध जैसी नहीं होती है, फिर भी चीन ऐसे तरीकों से ताइवान पर बहुत दबाव बनाए रखता है.
ह्वांग ने डीडब्लू को बताया, "चीन की ग्रे जोन तरतीबें ताइवान की लड़ाका क्षमताओं पर बहुत ज्यादा असर डाल सकती हैं. और चूंकि यह मुकम्मल युद्ध नहीं है तो ताइवान पर यह एक निरंतर दबाव की तरह बना रहता है. मेरे ख्याल से ताइवान को इन ग्रे जोन रणनीतियों के खतरों पर खासतौर से ध्यान देना चाहिए."
ताइवान स्थित इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के सैन्य विमानों ने 2020 के दौरान ताइवान के हवाई जोन का 380 बार अतिक्रमण किया था.
ताइवान के खिलाफ चीन का 'मनोवैज्ञानिक युद्ध'
ग्लेसर के मुताबिक चीन की ये चालें ताइवान को आगे चलकर बड़ी कीमत चुकाने पर मजबूर करेंगी. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "विमानों की देखरेख के खर्चों और पायलटों के तनाव और दबाव को देखते हुए ताइवान बड़ी कीमत चुका ही रहा है. अगर पायलट खाली बैठे, दिन में किसी एक जवाबी मौके का इंतजार कर रहे हैं, तो इस चक्कर में दूसरी किस्म की ट्रेनिंग भी छूट रही है जो ज्यादा जरूरी है. मुझे डर है कि ताइवान के पायलटों को वैसी ट्रेनिंग मिल ही नहीं पाएगी जिसकी उन्हें जरूरत है क्योंकि वे इस खास मिशन पर बहुत ज्यादा समय खर्च कर रहे हैं."
चीन की ग्रे जोन टेकटिक्स को ग्लेसर ताइवान के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध मानती हैं. वे कहती हैं, "आखिरकार, चीन इस ग्रे जोन दबाव के जरिये ताइवान के लोगों के जेहन में यह बात डाल देना चाहता है कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है और एक न एक दिन उन्हें चीन का हिस्सा बनना ही होगा."
पिछले हफ्ते ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वह "प्रतिक्रिया” टुकड़ी की त्वरित तैनाती के जरिए चीन के इन लगातार हवाई और समुद्री अतिक्रमणों का जवाब देने की योजना बना रहा है.
चीन-ताइवान मामले पर पड़ोसी देशों का रवैया
ताइवान पर चीन के सैन्य दबाव ने पड़ोसी देशों को भी ताइवान क्षेत्र में सैन्य संघर्ष के संभावित प्रभाव पर अलग नजरिया अख्तियार करने को मजबूर किया है. जापानी समाचार एजेंसी क्योडो ने सरकारी सूत्रों के हवाले से रविवार को बताया कि पिछले हफ्ते, जापानी और अमेरिकी रक्षा प्रमुखों ने टोक्यो में एक बैठक के दौरान, ताइवान और चीन के बीच सैन्य टकराव की स्थिति में, आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति जतायी. ताइवान की तामकांग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ह्वांग कहते हैं कि "अच्छी बात ये कि अब ज्यादा से ज्यादा देश ताइवान पर मंडराते संभावित खतरे पर ध्यान दे रहे हैं. लेकिन बुरी बात ये है कि ताइवान के संकरे समुद्री गलियारे में खतरे का स्तर इतना ज्यादा है कि पड़ोसी देशों को तो वास्तव में इस पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है."
ग्लेसर के मुताबिक जापान-अमेरिका समझौते ने एक अहम संकेत दिया है कि जापान, चीन को ताइवान के अस्तित्व पर मंडराते खतरे की तरह देखता है. ग्लेसर ने डीडब्लू को बताया, "यह जरूरी नहीं है कि युद्ध होने पर हम क्या करेंगे, लेकिन सवाल यह है कि शांति के इस वक्त में अभी हम क्या कर सकते हैं ताकि हम अपना बचाव भी मजबूत रख सकें."
वह कहती हैं, "ऊंचे स्तर पर एक बार इशारा हो जाए कि दोनों देश इस विषय पर बातचीत को अपने अपने राष्ट्रीय हितों के लिए अहम मानते हैं तो इससे निचले स्तरों के लोगों में इस विषय पर बातचीत शुरू करने का माहौल और मौका बनेगा. मुझे लगता है कि आगे चलकर ऐसे ही और अवसर बनेंगे."