क्या दिलों को जोड़ेगा करतारपुर कॉरिडोर
२९ नवम्बर २०१८करतारपुर कॉरिडोर का खोला जाना सिख श्रद्धालुओं की दुआ कबूल होने जैसा है. इस साल सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की 550वीं जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर गुरु नानक देव की पुण्यस्थली करतारपुर गुरुद्वासा साहिब को भारत के डेरा बाबा नानक से जोड़ा जा रहा है. पाकिस्तान के करतारपुर में ही गुरु नानक देव ने अपने आखिरी 18 साल बिताए.
सिख धर्म की नींव पंजाब में पड़ी थी, जो आजादी के साथ भारत और पाकिस्तान के बीच बंट गया. सिखों के धार्मिक स्थलों को अच्छी सड़कों से जोड़ने की मांग काफी लंबे समय से उठ रही थी. अब दोनों देशों में इस कॉरिडोर की आधारशिला रखी जा चुकी है. पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री इमरान खान और भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने परियोजना का शिलान्यास किया.
नवंबर 2019 तक श्रद्धालुओं के लिए इसे खोले जाने की योजना है. इसमें चार किलोमीटर लंबी सड़क, नदी पर एक पुल और यात्रियों के लिए सभी सुविधाओं से संपन्न बॉर्डर कॉम्प्लेक्स बनाया जाना है.
'बड़ा कदम'
आधारशिला रखे जाने भर से सीमा के दोनों ओर सिखों में खुशी और आशा की लहर दौड़ गयी है. भारतीय अखबार द ट्रिब्यून के एक पत्रकार रूपिंदर सिंह कहते हैं, "इस कॉरिडोर का बहुत महत्व है. यह वो जगह है जहां गुरु नानक ने आदर्श समुदाय बसाया. यहां रहने वाले लोगों ने उनके उपदेशों के आधार पर जीवन में बदलाव किया. इस राजनयिक शुरुआत को अच्छे से पूरा किया जाना चाहिए."
शिरोमणी गुरद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के प्रमुख गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे लिए यह एक सपने के सच होने जैसा है और हजारों लोग यात्रा कर सकेंगे. मैं आशा करता हूं कि इससे तनाव भी कम हो." भारत में सिख धर्मस्थलों के प्रबंधन की जिम्मेदारी एसजीपीसी ही संभालती है.
कई लोगों को इससे भारत-पाकिस्तान के बीच चले आ रहे तनावपूर्ण रिश्तों में थोड़ा सुधार आने की भी उम्मीद है. पूर्व क्रिकेटर, नेता और पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा, "हमने इसका बड़े लंबे समय से इंतजार किया है. यह एक बहुत बड़ा कदम है और आगे चलकर हमें अमन के रास्ते पर ले जाने वाला साबित होगा."
सिद्धू ने पाकिस्तान में आयोजित शिलान्यास समारोह में भी हिस्सा लिया. सिद्धू इससे पहले पाकिस्तान में नए प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में भी शिरकत करने गए थे और उन्हें भारत में निंदा झेलनी पड़ी थी.
दीवार गिराने को तैयार?
तीन जंग लड़ चुके दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों के तनावपूर्ण संबंधों में इस कॉरिडोर के खुलने के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि खुद भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे दोनों देशों के लोगों को जोड़ने वाले पुल के रूप में देखने की उम्मीद जता चुके हैं. जर्मनी को दो हिस्सों में बांटे रखने वाली बर्लिन की दीवार के 1989 में गिराए जाने का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, "क्या किसी ने सोचा था कि बर्लिन की दीवार गिरेगी? क्या पता गुरु नानक देव के आशीर्वाद से यह करतारपुर कॉरिडोर केवल कॉरिडोर ना रहे बल्कि दोनों देशों के लोगों को जोड़ने का काम करे."
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने भी इस मौके पर भारत से अपील की है कि पिछली कड़वाहट को भुलाकर बातचीत से समस्याओं को सुलझाया जाए. इमरान खान ने भी दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी और फ्रांस के संबंधों का उदाहरण देते हुए कहा, "फ्रांस और जर्मनी ने आपस में इतनी लड़ाइयां लड़ीं, फिर आज अच्छे पड़ोसियों की तरह शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे हैं. एक दूसरे के हजारों लोगों को मारने के बाद भी आज इन यूरोपीय देशों में गहरे व्यापारिक संबंध हैं. बस एक दिन उनके नेताओं ने तय कर लिया कि उन्हें पुरानी बेड़ियां तोड़नी हैं और उन्होंने तोड़ दीं."
लेकिन क्या करतारपुर कॉरिडोर पुरानी बेड़ियां तोड़ पाएगा. भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो साफ कहा है कि पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन में भारत हिस्सा नहीं लेने जा रहा. उनका कहना है, "जब तक पाकिस्तान भारत में हर तरह की आतंकी गतिविधियां बंद नहीं करता, तब तक कोई वार्ता नहीं होगी और सार्क में हिस्सा भी नहीं लेगें."
पाकिस्तान पर उसकी धरती से अंजाम दी जा रही आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए बहुत अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है. अमेरिकी राष्ट्रपति इसके लिए अरबों डॉलर की मदद दिए जाने के बावजूद नाकाम रहने के कारण पाकिस्तान की आलोचना करते रहे हैं.