पूर्ण बहुमत सरकार पास कराएगी महिला आरक्षण विधेयक?
१७ जून २०१९यह सवाल उठना लाजिमी भी है क्योंकि इस बार आधी आबादी की नुमाइंदगी लोकसभा में बढ़कर 14 फीसदी हो गई है और मांग 33 फीसदी की है. महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा ने 2010 में ही मंजूरी दे दी थी लेकिन लोकसभा इस पर लगातार नौ साल मौन रही है. महिलाओं के मुद्दे को लेकर मुखर रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता और सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर डॉ. रंजना कुमारी कहती हैं कि यह महिलाओं के अधिकार का सवाल है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को संविधान से बराबरी का दर्जा प्राप्त है, लेकिन वे लोकसभा और विधानसभाओं में महज 33 फीसदी प्रतिनिधित्व की मांग कर रही हैं.
मौजूदा सरकार द्वारा इसे पास करवाने के मसले पर पूछे जाने पर वह कहती हैं कि अगर महिलाओं को हक दिलाने की सरकार की मंशा होती, तो इस विधेयक को बीजेपी की अगुवाई वाली पूर्व सरकार में ही लोकसभा में पास करवाने की कोशिश की जाती. रंजना कुमारी ने इस मसले पर आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा, "बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अपने चुनावी घोषणापत्र में इस विधेयक को शामिल किया था. हम पूरे पांच साल तक सरकार को याद दिलाते रहे लेकिन सरकार लोकसभा में विधेयक नहीं लाई."
उन्होंने कहा कि बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा में महिलाएं सिर्फ मां, बहन और पत्नी हैं, जिनका काम परिवार की सुख-सुविधा का ध्यान रखना है, लेकिन "व्यक्ति के तौर पर शायद उन्हें महिलाओं को बराबरी का दर्जा या हक देना मंजूर नहीं है. यही कारण है कि पिछली सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक पास करवाने में कभी दिलचस्पी नहीं ली." वे आगे कहाती हैं, मैं मानती हूं कि पिछली सरकार महिलाओं के लिए कई योजनाएं लाई, मगर महिला आरक्षण विधेयक पर विचार नहीं किया गया."
महिला आरक्षण बिल की अहम बातें
उन्होंने कहा कि महिला संगठनों की ओर से फिर सरकार पर दवाब बनाने की कोशिश जारी रहेगी. हाल ही में ग्लोबल इंटरनेट मंच एपोलिटिकल द्वारा दुनिया की सबसे प्रभावकारी 100 महिलाओं की सूची में शामिल डॉ. कुमारी ने कहा, "हम फिर सरकार पर इस विधेयक को लोकसभा में पारित करवाने के लिए दबाव बनाएंगे. खास तौर से राज्य सरकारों की ओर से दबाव बनाने की कोशिश की जाएगी."
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2019 में देशभर से 78 महिलाएं संसद में पहुंची हैं, जिससे निचले सदन में उनका प्रतिनिधित्व 14 फीसदी हो गया है, जबकि ओडिशा से 21 में से सात महिला सांसद हैं जो लोकसभा में राज्य से 33 फीसदी प्रतिनिधित्व का दावा करती हैं. रंजना कुमारी इसे सकारात्मक बदलाव का सूचक मानती हैं. उनका कहना है कि शिक्षा और रोजगार के प्रति महिलाओं के उन्मुख होने से समाज में निचले स्तर से बदलाव आ रहा है.
अधिकांश राज्यों में पंचायती राज निकायों में महलाओं को 50 फीसदी या उससे अधिक प्रतिनिधित्व दिया जा चुका है. लेकिन लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में उनकी 33 फीसदी आरक्षण की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है, जबकि महिला आरक्षण विधेयक सबसे पहले1996 में संसद में पेश किया गया था. उस समय समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था.
विरोध के बाद विधेयक संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था. इसके बाद फिर 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी के कार्यकाल के दौरान विधेयक लोकसभा में पेश किया गया लेकिन इस बार भी विधेयक पास नहीं हुआ. महिला आरक्षण विधेयक फिर 1999, 2002 और 2003 में संसद में पेश किया गया लेकिन इसे संसद की मंजूरी नहीं मिल पाई.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान 2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने विधेयक को राज्यसभा में पेश किया. इसके दो साल बाद 2010 में उच्च सदन ने इसे मंजूरी प्रदान की. उसके बाद तकरीबन नौ साल बीत चुके हैं लेकिन विधेयक को लोकसभा में पेश नहीं किया गया है.
रिपोर्ट: पीके झा (आईएएनएस)
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