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क्या फेसबुक, गूगल और ट्विटर खत्म हो जाएंगे?

२९ अक्टूबर २०२०

सोशल मीडिया का आज जो विशाल स्वरूप दुनिया में नजर आता है उसके पीछे अमेरिका के एक कानून की बड़ी भूमिका है. अब उसी कानून को हटाने की मांग हो रही है. क्या है यह कानून और इसके ना होने पर क्या होगा?

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Symbolbild Apps Facebook, Google und Google + Anwendungen
तस्वीर: Imago Images/P. Szyza

फेसबुक, ट्विटर और गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बुधवार को अमेरिकी सीनेट की कॉमर्स कमेटी के सामने पेश हए. सांसदों के सामने इनकी पेशी पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाने के आरोपों में हुई. एक तरफ रिपब्लिकन पार्टी इन पर रुढ़िवाद विरोधी होने का आरोप लगा रही है, तो दूसरी तरफ डेमोक्रैटिक पार्टी उनसे फेक न्यूज और नफरत फैलाने वाले संदेशों को नहीं रोक पाने पर नाराज है.

सोशल मीडिया पर कैसे आरोप?

सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनियां इन आरोपों से इनकार कर रही हैं. हालांकि दोनों पार्टियों के सांसदों के पास इन्हें कठघरे में खड़ा करने के लिए उदाहरणों और दलीलों की कमी नहीं है. ऑनलाइन स्पीच के मामले में दोनों अमेरिकी दल इन कंपनियों को मिली कानूनी सुरक्षा को चुनौती देना चाहते हैं.

बुधवार को इन कंपनियों के अधिकारियों की पेशी के दौरान बहुत जल्द ही बहस का रुख राष्ट्रपति चुनाव अभियान से जुड़े सवालों पर चला गया. हालांकि चुनाव की सुरक्षा को लेकर सवाल पहले से ही उठाए जा रहे हैं. कॉमर्स कमेटी के सांसदों ने  ट्विटर के जैक डोरसी, फेसबुक के मार्क जकरबर्ग, और गूगल के सुंदर पिचाई को उनके वादे की याद दिलाई कि ये कंपनियां चुनाव के दौरान हिंसा या लोगों को भड़काने वाले विदेशी लोगों पर पहरा रखेंगी.

USA Trump kündigt Sanktionen gegen Türkei an
डॉनल्ड ट्रंप सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल करते हैं और उन पर आरोप भी जम कर लगाते हैं.तस्वीर: AP Photo/E. Vucci

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में शामिल हुए तीनों अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने कई कदम उठाए हैं जिनमें समाचार संगठनों से गठजोड़ से लेकर मतदान के बारे में सही सूचना फैलाना शामिल है. डोरसी का कहना है कि ट्विटर राज्यों के चुनाव अधिकारियों के साथ मिल कर इस काम में जुटा है. डोरसी ने कहा, "हम चाहते हैं कि लोगों को इस सेवा के जरिए जितना ज्यादा संभव है सूचना दी जाए."

रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों का आरोप है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर बिना किसी सबूत के रुढ़िवादी, धार्मिक और गर्भपात विरोधी विचारों को जानबूझ कर दबाया जा रहा है. रिपब्लिकन सांसदों का यह भी कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप और डेमोक्रैटिक उम्मीदवार जो बाइडेन के मुकाबले के बीच यह काम बहुत ज्यादा किया गया.

इंटरनेट की आजादी खतरे में!

कॉमर्स कमेटी के चेयरमैन सेनेटर रोजर विकर ने पेशी की शुरुआत में कहा कि ऑनलाइन स्पीच को नियंत्रित करने वाले कानूनों को संशोधित किया जाए क्योंकि,"इंटरनेट का खुलापन और आजादी खतरे में है." विकर ने इस दौरान बाइडेन के बारे में एक पोस्ट का हवाला दिया. यह खबर बाइडेन के बेटे के बारे में थी जिसे दूसरे प्रकाशनों ने पुष्ट नहीं किया था. अपुष्ट ईमेल के दावों पर आधारित खबर के बारे में कहा गया कि यह ट्रंप के सहयोगियों ने ही उड़ाई है.

ट्विटर ने इस खबर को रोक दिया था जिसकी वजह से रिपब्लिकन पार्टी के सांसद और ट्रंप काफी नाराज हुए. सुनवाई के दौरान सीनेटर टेड क्रुज ने डोरसी से कहा, "ट्विटर का रवैया अब तक बहुत ज्यादा कट्टर रहा है." क्रूज का कहना है कि एक अखबार की खबर पर ट्विटर ने जिस तरह का रवैया अपनाया, वह एक तरह की सेंसरशिप है जो उन अमेरिकी लोगों की आवाज दबा देता है जिनके साथ उसकी असहमति होती है. क्रूज ने सीधे पूछा, "आपको इस काम के लिए किसने चुना है? और यह तय करने का इंचार्ज बनाया है कि मीडिया को क्या रिपोर्ट करने का अधिकार है?"

USA | Anhörung des US-Senatsausschusses - Twitter CEO Jack Dorsey
जैक डोरोसी, ट्वीटर के सीईओतस्वीर: Michael Reynolds/Capital Pictures/picture alliance

डोरसी ने क्रूज से कहा कि वे नहीं मानते कि ट्विटर चुनाव को प्रभावित कर सकता है क्योंकि यह सिर्फ सूचना पाने का एक जरिया है. डोरसी ने राजनीतिक पक्षपात के आरोपों से भी इनकार किया. उन्होंने ध्यान दिलाया, "लोग जो देखते हैं उसका ज्यादातर हिस्सा अल्गोरिद्म से तय होता है." रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों ने ईरान, चीन और होलोकॉस्ट से इनकार करने वाले मुद्दों का जिक्र कर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पक्षपात के आरोपों को मजबूती दी.

डेमोक्रैटिक पार्टी के आरोप

रिसर्चरों को इस बात के सबूत नहीं मिले हैं कि सोशल मीडिया कंपनियों ने जान बूझ कर किसी रुढ़िवादी समाचार, पोस्ट या फिर दूसरी सामग्रियों के साथ भेदभाव किया हो. हालांकि आरोप लगाने वालों में केवल रिपब्लिकन सीनेटर ही नहीं है. डेमोक्रैट सांसदों ने अपनी आलोचना मुख्य रूप से नफरती भाषणों, गलत सूचनाओं और ऐसी सामग्रियों पर केंद्रित रखी जिनसे हिंसा को बढ़ावा मिलता है, लोग चुनाव से दूर होते हैं या फिर कोरोना वायरस के बारे में गलत जानकारी दी जाती है. उनका आरोप है कि इन कंपनियों के सीईओ ऐसी सामग्री को रोक पाने में नाकाम रहे हैं. वे इन प्लेटफार्मों पर नफरती अपराधों और अमेरिका में श्वेत राष्ट्रवाद के उभार में भूमिका निभाने का आरोप लगाते हैं.

ट्रंप प्रशासन चाहता है कि संसद इन कंपनियों को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा वापस ले ले. वास्तव में 1996 में अमेरिका के दूरसंचार से जुड़े कानून में जोड़े गए 26 शब्दों ने फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसी कंपनियों को आज इस रूप में उभरने का मौका दिया. यही कानून इंटरनेट पर किसी भी तरह के भेदभाव या सेंसरशिप से मुक्त भाषण या संदेशों का आधार है. राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन ने इन्हें कार्यकारी आदेश के जरिए सीधे चुनौती दी है. इनमें से एक आदेश ऑनलाइन प्लेटफार्मों "संपादकीय फैसलों" पर मिलने वाला संरक्षण उनसे छीन लेगा. दोनों अमेरिकी पार्टियों में ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि सेक्शन 230 सोशल मीडिया कंपनियों को निष्पक्ष रह कर नियंत्रित करने की जिम्मेदारी से मुक्त कर रही है. बुधवार को ट्रंप ने ट्वीट किया, "सेक्शन 230 को हटाओ!"

क्या है सेक्शन 230?

अगर कोई समाचार एजेंसी आप पर झूठा आरोप लगाती है तो आप उसके खिलाफ मुकदमा कर सकते हैं लेकिन अगर यही बात कोई फेसबुक पर लिखी पोस्ट में कहता है, तो आप फेसबुक को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. सेक्शन 230 में यही कहा गया है. आप पोस्ट डालने वाले व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा कर सकते हैं, फेसबुक के खिलाफ नहीं.

USA | Anhörung des US-Senatsausschusses - Mark Zuckerberg
मार्क जकरबर्ग, फेसबुक के सीईओतस्वीर: Michael Reynolds/Capital Pictures/picture alliance

सोशल मीडिया कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि इस सुरक्षा ने ही इंटरनेट को आज इस हाल में पहुंचाया है. सोशल मीडिया कंपनियां करोड़ों लोगों के संदेश अपने प्लेटफॉर्म पर रख सकती हैं और इसके लिए उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती. सेक्शन 230 की कानूनी व्याख्या सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को इस बात का भी अधिकार देती है कि वे अपनी सेवाओं को नियंत्रित करने के लिए उन पोस्ट को हटा सकती हैं जो अश्लील है या फिर उनकी सेवा मानकों के स्तर का उल्लंघन करती है. हालांकि यह अधिकार तभी तक है जब तक कि उनके कदमों पर "भरोसा" कायम है.

सेक्शन 230 आया कहां से?

इस धारा के बनने का इतिहास तकरीबन 70 साल पुराना है. 1950 के दशक में किताब की एक दुकान के मालिक पर "अश्लील" सामग्री वाली किताबें बेचने के लिए मुकदमा किया गया. पहले संशोधन में इसके लिए सुरक्षा नहीं थी. इस तरह का मुकदमा आखिरकार सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा और फैसला आया कि किसी और की सामग्री के लिए किसी और को दोषी ठहराया गया है. तब यह व्यवस्था दी गई कि मुकदमा दायर करने वाले को यह साबित करना होगा कि किताब बेचने वाला इस बात को जानता था कि इसमें अश्लील सामग्री है.

इसके कुछ दशकों के बाद जब कारोबारी इंटरनेट ने पंख फड़फड़ाने शुरू किए तो कॉम्पुसर्व और प्रोडिजी नाम की दो सेवाएं चालू हुईं. दोनों ऑनलाइन फोरम थे लेकन कॉम्पुसर्व ने इसे नियंत्रित नहीं करने का फैसला किया जबकि प्रोडिजी ने ऐसा किया क्योंकि वह पारिवारिक छवि बनाना चाहती थी. कॉम्पुसर्व के खिलाफ जब मुकदमा हुआ, तो उसे खारिज कर दिया गया लेकिन प्रोडिजी मुसीबत में आ गई. तब जज ने इस मामले में फैसला दिया, "इन्होंने संपादकीय नियंत्रण रखा है.. तो आप एक अखबार की तरह है ना कि अखबार का स्टॉल."

राजनेताओं को यह उचित नहीं लगा, उन्हें चिंता थी कि इससे नई कंपनियां नियंत्रण से खुद को दूर कर लेंगी और तब सेक्शन 230 बनाया गया. आज कंपनियों को ना सिर्फ यूजर के पोस्ट की जिम्मेदारी बल्कि उन्हें नियंत्रित करने के मामले में भी कानूनी सुरक्षा है.

USA Washington | Chefs von Tech-Konzernen wehren sich gegen Wettbewerbsvorwürfe
सुंदर पिचाई, गूगल के सीईओतस्वीर: picture-alliance/CNP/AdMedia/C. Ngan

सेक्शन 230 हटाने पर क्या होगा?

सोशल मीडिया की बड़ी कंपनियों का आधार ही यूजर का बनाया कंटेंट है. अगर उन्हें उसके लिए दोषी ठहाराया जाने लगा, तो वे उसे अपने प्लेटफॉर्म पर डालना बंद कर देंगे और नतीजा ऐसी कंपनियों के अस्तित्व पर संकट के रूप में सामने आएगा. सेक्शन 230 पर किताब लिखने वाले जेफ कासेफ का कहना है, "मुझे नहीं लगता कि बिना सेक्शन 230 के इनमें से किसी भी कंपनी का अस्तित्व आज के रूप में होता.उन्होंने अपना बिजनेस मॉडल ही यूजर कंटेंट के बड़े प्लेटफॉर्म के रूप में बनाया है."

इसके दो नतीजे हो सकते हैं. एक तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बहुत सजग हो जाएंगे. जैसा कि क्रेगलिस्ट के मामले में हुआ था. 2018 में सेक्स तस्करी के कानून में सेक्शन 230 का एक अपवाद जोड़ा गया. ऐसी सामग्री जो "देह व्यापार को सुलभ बनाती हो या उसका प्रचार करती हो." इस कानून के पास होने के बाद अमेरिका की विख्यात क्लासिफाइड विज्ञापन एजेंसी क्रेगलिस्ट ने फौरन "निजी" सेक्शन को पूरी तरह से हटा दिया. हालांकि यह देह व्यापार के लिए नहीं बना था लेकिन कंपनी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी. इसका नुकसान सबसे ज्यादा फिलहाल तो खुद राष्ट्रपति को होगा जो नियमित रूप से लोगों पर निजी हमले करते हैं, साजिशों की बात करते हैं और दूसरों पर आरोप लगाते हैं. अगर कंपनियों को कानूनी सुरक्षा नहीं मिली, तो वे ऐसे संदेशों को अपने प्लेटफॉर्म पर नहीं रहने देंगी.

एक दूसरा नतीजा यह हो सकता है कि ट्विटर, फेसबुक और दूसरे प्लेटफॉर्म पूरी तरह से नियंत्रण खत्म कर दें और तब यह पूरी तरह से आजाद हो जाएगा. तब इस पर लोग कुछ भी कहने के लिए आजाद होंगे और फिर ट्रोल्स इन पर कब्जा कर लेंगे. सेंट क्लारा यूनविर्सिटी में कानून के प्रोफेसर एरिक गोल्डमैन का कहना है कि सेक्शन 230 का हटाना, "इंटरनेट के अस्तित्व पर ही एक खतरा है." हालांकि गोल्डमैन का मानना है कि ट्रंप का आदेश इंटरनेट के लिए कोई खतरा नहीं है. यह एक "राजनीतिक ड्रामा" है जो ट्रंप के समर्थकों को पसंद आता है.

भारत में भी सोशल मीडिया को लेकर आए दिन सवाल उठ रहे हैं. भारत में फेसबुक की नीति प्रमुख आंखी दास ने इस्तीफा दे दिया. उन पर सत्ताधारी पार्टी के साथ नरमी बरतने के आरोप लगे थे. आरोप यह था कि सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों ने फेसबुक के नफरती भाषण से जुड़े कानूनों का उल्लंघन कर मुस्लिम विरोधी पोस्ट डाले और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. हालांकि कंपनी ने इससे इनकार किया. कंपनी के सीईओ की संसदीय पैनल के सामने पेशी भी हुई थी.

एनआर/आईबी (एपी)

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