क्या राजस्थान में कांग्रेस के लिए संकट का अंत हो चुका है?
११ अगस्त २०२०सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमों के बीच लड़ाई करीब एक महीने तक चली और इसकी वजह से दोनों खेमों का बहुत नुकसान हुआ. पायलट को उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पदों से हाथ धोना पड़ा और गहलोत की सरकार गिरने के कगार पर पहुंच गई थी.
यहां तक कि विधान सभा अध्यक्ष ने पायलट और बाकी विधायकों को अयोग्य तक घोषित करने का नोटिस जारी कर दिया, जिसके खिलाफ पायलट खेमे ने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी. यही नहीं, हाई कोर्ट के इस नोटिस पर रोक लगाने पर अध्यक्ष ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी.
पायलट खेमे के विद्रोह के खत्म हो जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि एक तरफ अदालती लड़ाई चल रही थी और दूसरी तरफ पूरे मामले को पार्टी के अंदर ही सुलझाने लेने की कोशिश चल रही थी. बताया जा रहा है कि जिस तरह मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ देने से पार्टी कमजोर हो गई, पार्टी हाई कमान राजस्थान में भी वैसी ही स्थिति बन जाने को लेकर चिंतित था.
फिर से मेल होने की शर्तें
इसीलिए गहलोत के पायलट को खरी-खोटी सुनाने के बावजूद गांधी परिवार ने पायलट के साथ संवाद के द्वार हमेशा खुले रखे. सही समय आने पर खुद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाडरा पायलट से मिले और उनकी वापसी की शर्तें तय कीं.
सोमवार 10 अगस्त को पार्टी ने आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि पायलट राहुल गांधी से मिले, उनके समक्ष अपनी शिकायतें रखीं और दोनों के बीच "स्पष्ट, खुली और निर्णायक" चर्चा हुई. बयान में यह भी बताया गया कि पायलट ने राजस्थान में पार्टी और पार्टी की सरकार के हित में काम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई.
फिर से मेल होने की शर्तों के अनुसार अब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पायलट और उनके साथी विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन करेंगी. पायलट और 18 विधायक जयपुर लौट कर पार्टी की बैठकों में भाग लेंगे और फिर 14 अगस्त से शुरू होने वाले विधान सभा के सत्र की बैठकों में भी शामिल होंगे.
गहरा वैमनस्य
इससे कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर सदन में सरकार को विश्वास मत का सामना करना भी पड़ता है तो सत्ता पक्ष के पास पूर्ण बहुमत होगा. लेकिन पार्टी के राजस्थान में भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि गहलोत और पायलट के बीच की दूरियां कितनी कम हुई हैं.
बताया जा रहा है कि पायलट लंबे समय से गहलोत द्वारा नजरअंदाज किए जाने की शिकायत कर रहे थे और खुद अपने लिए मुख्यमंत्री पद की मांग कर रहे थे. स्पष्ट है कि उनकी यह मांग तो मानी नहीं गई है. दूसरी तरफ गहलोत ने तो सार्वजनिक रूप से पायलट को "निकम्मा" और "षडयंत्रकारी दिमाग वाला" तक कह दिया था. इतने वैमनस्य के बाद पार्टी इन दोनों नेताओं के बीच सामंजस्य कैसे बनाएगी?
माना जा रहा है कि पायलट को राज्य के बाहर पार्टी में कोई केंद्रीय जिम्मेदारी दी जाएगी ताकि दोनों नेता अलग अलग काम कर सकें और एक दूसरे के रास्ते में नहीं आएं. लेकिन यह व्यवस्था आखिर कब तक सुचारु रूप से चल पाएगी, यह तो भविष्य ही बताएगा.
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