क्या है उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया का विवाद
लेफ्ट लिबरल माने जाने वाले मून जे इन दक्षिण कोरिया के नये राष्ट्रपति बने हैं. मून का जोर अर्थव्यवस्था और उत्तर कोरिया के साथ संबंध बहाली पर रहेगा. लेकिन इनके बीच संबंध बहाली आसान नहीं. एक नजर पूरे विवाद पर
जापान का कब्जा
साल 1910 से लेकर साल 1945 तक कोरियाई प्रायद्वीप जापान के कब्जे में रहा. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में रूस और अमेरिका का निशाना जर्मनी के साथ धुरी बनाने वाला जापान था और कोरिया जंग का मैदान था.
रूस अमेरिका में बांट
युद्ध के बाद मित्र देशों के फैसले के अनुसार सोवियत रूस की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को कब्जे में ले लिया. समझौते के अनुसार दक्षिणी हिस्सा अमेरिका के कब्जे में चला गया.
कोरिया का विभाजन
कोरिया प्रायद्वीप के दो भागों, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया में विभाजन कर ये दोनों देश संयुक्त रूप से उन पर प्रशासन करने लगे. कोरियाई नेताओं को अगले पांच साल में आजादी का भरोसा दिया गया.
सरकारें बनी
लेकिन कोरियाई जनता इसके पक्ष में नहीं थी और जल्द ही यहां विरोध प्रदर्शन होने लगे जिसके बाद साल 1948 में दक्षिण कोरिया में अमेरिका के समर्थन वाली और उत्तर कोरिया में चीन और रूस के समर्थन वाली सरकार बनी.
विचारधारा का संघर्ष
इसके बाद संघर्ष शुरू हुआ हुआ साम्यवाद और लोकतंत्र के बीच. संघर्ष इतना गहरा गया कि साल 1950 में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला कर दिया जिसके चलते दक्षिण कोरिया का एक बड़ा हिस्सा उत्तर कोरिया में चला गया.
अमेरिका ने उठाये कदम
युद्ध में दक्षिण कोरिया कमजोर पड़ गया और उस वक्त अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पारित करा कर दक्षिण कोरिया की मदद करने का अधिकार हासिल कर लिया.
गुट निरपेक्ष भारत
दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया के कब्जे में आता इसके पहले ही अमेरिका के सैनिक वहां दाखिल हो गये. यही वह वक्त था जब भारत सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य था और उत्तर कोरिया के खिलाफ आक्रमण प्रस्ताव के दौरान मौजूद नहीं था.
कोरियाई युद्ध
सितंबर 1950 तक अमेरिकी नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र की सेना ने दक्षिण कोरिया का एक बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया था. अब यह सेना उत्तर कोरिया में चीन की सीमा के नजदीक बढ़ रही थी. चीन की कम्युनिस्ट सरकार के लिए ये परिस्थितियां स्वीकार्य नहीं थी.
चीन-अमेरिका आमने-सामने
नवंबर में अचानक चीन ने अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और पहली बार इस युद्ध में अमेरिकी सेना को पीछे हटना पड़ा. लेकिन लड़ाई खिंचने के आसार थे. तब भारत ने ब्रिटेन के सहयोग से चीन को युद्ध विराम के लिये तैयार कर लिया लेकिन तब अमेरिका तैयार नहीं था.
पीछे हटने को तैयार नहीं
लंबे समय तक चीन-उत्तर कोरिया और अमेरिका-सहयोगी देशों की सेनाएं अपने मोर्चों पर जमी रहीं लेकिन अब तक दोनों पक्षों को यह समझ आ गया था कि इस युद्ध का कोई नतीजा नहीं निकलना है. इसलिये अब दौर शुरू हुआ आखिरी सहमति का.
अस्थायी शांति
लंबी कोशिशों के बाद एक अस्थायी शांति स्थापित कर ली गई. माना जाता है कि यह वही वक्त था जब भारत विश्व पटल पर गुट निरपेक्षता की पैरवी करने वाला एक तटस्थ देश बन कर उभरा था और इस युद्ध के बाद ही पंडित नेहरू विश्व नेता के रूप में भी उभरे
गरीबी का आलम
विभाजन के समय दोनों ही देशों की माली हालत खराब थी. लेकिन दक्षिण कोरिया अमेरिकी सहयोग में खूब फला-फूला. जनरल पार्क चुंग-ही ने सैनिक विद्रोह कर दक्षिण कोरिया की सत्ता पर कब्जा कर किया. साल 1979 में उनकी हत्या हो गई.
कोरियाई तानाशाही
उत्तर कोरिया ने अपने नेता किम इल सुंग के नेतृत्व में तानाशाही व्यवस्था को अपनाया, जबकि दक्षिण कोरिया में बाद में लोकतंत्र बन गया. दक्षिण कोरिया ने खुद को तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ाया. यहां तक कि उसने 1988 में ओलंपिक खेलों की भी मेजबानी की.
तनाव अब भी बरकरार
दोनों देशों के छह दशक पुराने संबंध अब तक नहीं सुधरे है. उत्तर कोरिया पर दक्षिण कोरिया में हमले करवाने के आरोप लगे और अब उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों ने दक्षिण कोरिया की नाक में दम कर दिया है.
राष्ट्रपति की चुनौती
ऐसे में दक्षिण कोरिया के नये राष्ट्रपति मून के सामने उत्तर कोरिया के साथ संबंध सुधारना मजबूरी भी है और चुनौती भी. मून जानते हैं कि अमेरिका की सुरक्षा गारंटी और रॉकेटरोधी प्रणालियों की तैनाती के बावजूद लड़ाई होने पर बर्बादी दक्षिण कोरिया की होगी और पीढ़ियों की मेहनत नष्ट हो जायेगी.