क्या है पीएसए, जिसके तहत फारूख अब्दुल्ला हुए गिरफ्तार
१७ सितम्बर २०१९पब्लिक सेफ्टी एक्ट, पीएसए को वर्ष 1978 में लागू किया गया था. उस समय फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. इस एक्ट को लागू करने का मकसद ऐसे लोगों को हिरासत में लेना है जो किसी प्रकार से राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं. यह एक 'प्रिवेंटिव एक्ट' यानि 'सुरक्षात्मक कानून' है न कि 'प्यूनिटेटिव' अर्थात 'दंडात्मक कानून.'
पीएसए लगभग नेशनल सिक्योरिटी एक्ट की तरह ही है, जिसका उपयोग भारत के कई राज्यों में 'खतरा उत्पन्न करने वाले व्यक्ति' को हिरासत में लेने के लिए किया जाता है. किसी भी व्यक्ति को पीएसए एक्ट के तहत तभी गिरफ्तार किया जा सकता है जब इसकी इजाजत जिलाधिकारी दे या फिर डिविजनल कमिश्नर. पुलिस द्वारा किसी तरह का आरोप लगाए जाने या फिर कोई कानून तोड़ने पर इस धारा के तहत गिरफ्तारी नहीं होती है.
कैसे हुई शुरुआत
शुरूआत में पीएसए का मकसद राज्य में लकड़ी के तस्करों को रोकना था. सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि 1989 के बाद से इस एक्ट का इस्तेमाल भारत सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को गिरफ्तार करने के लिए किया जाने लगा. पीएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार किया जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है या कोर्ट से जमानत मिलने पर तुरंत उसकी रिहाई हुई है, उस स्थिति में भी उसे पीएसए के तहत हिरासत में लिया जा सकता है. यह हिरासत दो वर्ष तक की हो सकती है.
यदि किसी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिया जाता है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून के तहत उसे 24 घंटे के अंदर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है. लेकिन पीएसए के तहत हिरासत में लिए जाने पर ऐसा नहीं होता है. हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पास जमानत के लिए कोर्ट जाने का कोई अधिकार नहीं होता है और न ही कोई वकील उसका बचाव कर सकता है.
चुनौती का क्या है रास्ता
पीएसए के तहत हिरासत में लिए जाने को चुनौती देने का एकमात्र तरीका यह है कि उस व्यक्ति का कोई रिश्तेदार 'हेबीयस कॉर्पस' याचिका दायर कर सकता है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई कर सकती है और पीएसए हटाने का आदेश दे सकती है. हालांकि, कोर्ट द्वारा पीएसए हटाने का आदेश देने के बाद सरकार दूसरा आदेश पारित कर फिर से पीएसए के तहत फिर हिरासत में ले सकती है. 2018 में पारित हुए एक्ट के एक संशोधन के अनुसार जिस व्यक्ति को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया है, उसे जम्मू-कश्मीर या राज्य के बाहर भी किसी जेल में रखा जा सकता है.
एएफपी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने 2018 में कहा था कि कश्मीर में पीएसए सहित अन्य विशेष कानूनों के कारण "ऐसे ढांचे बन गए हैं जो आम कानून के पालन में बाधा डालते हैं. मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में ये जवाबदेही और उपाय के अधिकार का इस्तेमाल करने के राह में बाधाएं डालते हैं." वहीं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी जून में कहा था कि पीएसए "जम्मू-कश्मीर में आपराधिक न्याय प्रणाली के मानवाधिकारों के प्रति जवाबदेही, पारदर्शिता और सम्मान को कमजोर करता है."
कैसी है कश्मीर की स्थिति
वर्ष 1947 में भारत के बंटवारे के समय से ही कश्मीर विवादित क्षेत्र बन गया था. इसके कुछ हिस्से भारत के कब्जे में है तो कुछ पाकिस्तान के. बीते 5 अगस्त को भारत सरकार ने अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया. किसी तरह की अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए संचार के तमाम साधन बंद कर दिए गए थे.
हर जगह सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया गया. छह हफ्ते बाद भी कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है. लैंडलाइन को छोड़ मोबाइल सहित संचार के अन्य साधन ठप्प हैं. इस दौरान चार हजार से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया, जिनमें करीब तीन हजार लोगों को रिहा कर दिया गया. विरोध-प्रदर्शन की वजह से करीब 200 आम लोग और 400 के आसपास सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं.
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