क्या है पुलिस के हाथ छात्रों तक ले जाने वाला यूएपीए कानून
२२ अप्रैल २०२०भारत में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए का इस्तेमाल अचानक बढ़ गया है. पिछले सप्ताह जम्मू और कश्मीर पुलिस ने फोटो जर्नलिस्ट मसरत जेहरा पर सोशल मीडिया पर 'देश विरोधी' गतिविधियों का गुणगान करने वाली तस्वीरें लगाने का आरोप लगा कर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और उनके खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाए. इस सप्ताह जम्मू और कश्मीर पुलिस ने ही एक और पत्रकार और लेखक गौहर गिलानी के खिलाफ सोशल मीडिया पर गैर कानूनी गतिविधियों का समर्थन करने का आरोप लगाकर उनके खिलाफ भी यूएपीए लगा दिया.
उधर दिल्ली में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के पीछे साजिश में शामिल होने के आरोप में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के दो छात्र मीरान हैदर और सफूरा जरगर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर खालिद और भजनपुरा के एक निवासी दानिश के खिलाफ भी यूएपीए लगा दिया. दिल्ली और जम्मू और कश्मीर दोनों केंद्र शासित प्रदेश हैं इसलिए इनमें पुलिस का संचालन केंद्रीय गृह मंत्रालय करता है. हालांकि यह सामने नहीं आया है कि केंद्र सरकार अचानक क्यों यूएपीए को लेकर इतनी सक्रिय हो गई है. एक बेहद कड़े कानून का इतनी आसानी से इस्तेमाल और वो भी पेशेवर मुजरिमों की जगह छात्रों और पत्रकारों के खिलाफ किया जा रहा है.
क्या है यूएपीए
यूएपीए एक बेहद सख्त कानून है और इसे आतंकवादी और देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया है. यह कानून संसद द्वारा 1967 में पारित किया गया था और उसके बाद इसमें कई संशोधन हो चुके हैं. इस के तहत आरोपी को कम से कम सात साल की जेल हो सकती है. इस कानून के इतिहास में अभी तक जिन लोगों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया गया है उनमें शामिल हैं पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैय्यबा का मुखिया हाफिज सईद, उसका साथी जकी-उर-रहमान लखवी और अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम.
अगस्त 2019 में इस कानून में संशोधन किया गया था जिसके बाद अब इसके तहत संगठनों की जगह व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है. ये कानून राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए को भी कई अधिकार देता है. यह विधेयक जांच करने वाले एनआईए के अफसरों को डाइरेक्टर जनरल की अनुमति से संपत्ति जब्त करने तक की इजाजत देता है.
क्या ये टाडा और पोटा के जैसा है?
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसकी आत्मा टाडा और पोटा के जैसी ही है. बल्कि पोटा को हटा देने के बाद यूएपीए में ही कई बार संशोधन करके पोटा के कई प्रावधान इसमें डाल दिए गए. इनमें हिरासत की शर्तें ठीक से परिभाषित ना होना और खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी दोषी के कंधों पर रखना शामिल हैं.
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इसका इस्तेमाल अकसर सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकारों, टीकाकारों और एक्टिविस्टों के खिलाफ किया जाता है. कुछ जाने माने व्यक्ति जिन्हें यूएपीए लगाकर हिरासत में लिया गया, उनमें डॉक्टर बिनायक सेन, सुधीर धावले, शोमा सेन, रोना विल्सन, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबड़े और अखिल गोगोई शामिल हैं.
इसके तहत कितनों को सजा हुई है?
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की यूएपीए के खिलाफ सबसे बड़ी आलोचना यही है कि इस कानून के तहत आरोपियों के दोषी पाए जाने की दर उतनी ही कम है जितनी टाडा और पोटा की थी. यानी इस कानून का इतिहास यही रहा है कि पुलिस ने इसके तहत मनमाने ढंग से लोगों को हिरासत में ले लिया, जेल में रखा लेकिन अंत में उनका जुर्म साबित नहीं कर पाई. 2015 में 1209 लोगों के खिलाफ यूएपीए के मामले पेंडिंग थे और सुनवाई सिर्फ 76 लोगों में मामलों में पूरी हुई थी. इन 76 में से सिर्फ 11 दोषी पाए गए और 65 बरी कर दिए गए.
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