क्यों खास होते हैं हीरे
बिना तराशा हुआ दुनिया का सबसे बड़ा हीरा नीलामी में नाकाम साबित हुआ. उसे कोई खरीदार नहीं मिला. आखिर हीरों की दुनिया इतनी चमकीली क्यों होती है.
टेनिस बॉल के बराबर
1.109 कैरेट के इस हीरे का नाम है लेसेडी ला रोना. इसका आकार एक टेनिस बॉल के बराबर है. इसे नवंबर में बोत्स्वाना की खदान से निकाला गया.
अरबों साल पुराना
यह हीरा करीब 2.5 अरब साल पुराना बताया जा रहा है. नीलामी घर सदबी ने इस हीरे की न्यूनतम बोली 7 करोड़ डॉलर रखी थी. लेकिन बोली लगाने वाले 6.1 करो़ड़ से ऊपर नहीं गए.
पहली बार ऐसी नीलामी
सदबी के मुताबिक पहली बार इतने बड़े गैर तराशे हीरे की नीलामी आयोजित की गई. बोत्स्वाना की तस्वाना भाषा में लेसेडी ला रोना का अर्थ होता है हमारा प्रकाश.
बड़े हीरों की बाढ़
बीते एक दशक में अक्सर बड़े बड़े हीरे सामने आ रहे हैं. इससे पहले नवंबर 2015 में भी बोत्स्वाना में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हीरा मिला था.
क्यों रिझाते हैं हीरे
हीरे सदियों से राजसी वैभव और विलासिता के प्रतीक रहे हैं. भारत हजारों साल से इनके कारोबार का केंद्र रहा है. रोमन इन्हें भगवान के आंसू कहते थे. दुनिया भर के राजा इन्हें शीर्ष उपहारों की श्रेणी में रखते थे. तस्वीर में कोहिनूर.
भारत की देन
कभी हीरों के लिए सिर्फ भारत को जाना जाता था. गोलकुंडा की खान आज भी हीरों के लिए मशहूर है. 14वीं शताब्दी में वेनिस और यूरोप के कारोबारियों तक भारतीय हीरे पहुंचने लगे. सन 1700 के आस पास ब्राजील में भी हीरे की खदान मिली. अब तो दुनिया के कई देशों में हीरे की खदाने मिली हैं.
कहां होते हैं हीरे
वैज्ञानिकों के मुताबिक जमीन से करीब 160 किलोमीटर नीचे, बेहद गर्म माहौल में हीरे बनते हैं. इसके बाद ज्वालामुखीय गतिविधियां इन्हें ऊपर की ओर लाती है. ग्रहों या पिंडों की टक्कर से भी हीरे मिलते हैं.
हीरे की खासियत
हीरे पूरी तरह एक ही तत्व से बने होते हैं. उनमें बिल्कुल मिलावट नहीं होती है. वे पूरी तरह 100 फीसदी कार्बन से बनते हैं. अथाह गहराई में बहुत ज्यादा दबाव और तापमान के बीच कार्बन के अणु बेहद अनोखे ढंग से जुड़ते हैं और हीरे जैसे दुलर्भ पत्थर में बदलते हैं.
स्वच्छ और शुद्ध
अमेरिका के जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट के शोध के मुताबिक बेहद गहराई से निकलने वाले हीरे रासायनिक रूप से शुद्ध होते हैं और ये अद्भुत रूप से पारदर्शी होते हैं.
अब लैब में बन रहे हैं हीरे
प्रयोगशाला में बनाए जा रहे हीरे भी अब बाजार में बिकने लगे हैं. इन्हें सिंथेटिक डायमंड कहा जाता है. लैब में कुछ रसायनों की मदद से कार्बन के अणुओं को बेहद उच्च दबाव में 1,400 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर गर्म किया जाता है. इसके बाद कई चरण होते हैं और आखिरकार हीरा बनता है.