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सख्त कानून भी महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम

मनीषा पांडेय
९ अक्टूबर २०२०

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. एक ओर सरकार महिला सशक्तिकरण के कदम उठा रही है तो दूसरी ओर घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम है. सोच और हकीकत में इतना अंतर क्यों?

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Indien Ahmadabad vor Besuch Donald Trump
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

2018 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें भारत को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क बताया गया था. 193 देशों में हुए इस सर्वे में महिलाओं का स्वास्थ्य, शिक्षा, उनके साथ होने वाली यौन हिंसा, हत्या और भेदभाव जैसे कुछ पैमाने थे, जिन पर दुनिया के 193 देशों का आकलन किया गया था. भारत हर पैमाने में पीछे था. वहां औरतों के स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति सबसे खराब थी.

औरतों के साथ सेक्शुअल और नॉन सेक्शुअल वॉयलेंस में हम अव्वल थे और भेदभाव करने में तो हमारा कोई सानी ही नहीं था. छह साल पहले भारत में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा पर एक रिपोर्ट तैयार करते हुए यूएन ने लिखा था, "यूं तो पूरी दुनिया में औरतें मारी जाती हैं, लेकिन भारत में सबसे ज्यादा बर्बर और क्रूर तरीके से लगातार लड़कियों को मारा जा रहा है."

Indien Uttar Pradesh | Proteste nach Vergewaltigung
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images

महिलाओं के साथ हिंसा में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक 19 साल की दलित लड़की के साथ बर्बर सामूहिक बलात्कार की घटना हुई. उसे गहरी चोटें लगी थीं. उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी. घटना के 15 दिन बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई. इस घटना के कुछ ही दिन बाद यूपी के ही बलरामपुर में कॉलेज में एडमिशन लेने जा रही एक लड़की को रास्ते से कुछ लोगों ने अगवा कर लिया. सामूहिक बलात्कार के बाद उसे भी इतनी बुरी तरह लाठियों से पीटा गया, उसकी हड्डियां तोड़ दीं कि लड़की की मौत हो गई.

कुछ रोज पहले तेलंगाना के खम्मम जिले में एक आदमी ने एक 13 साल की लड़की का रेप करने की कोशिश की. लड़की ने विरोध किया तो उसने लड़की पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी. वह 70 फीसदी से ज्यादा जल चुकी है और अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रही है. इन तमाम घटनाओं के मद्देनजर एक बार फिर स्त्रियों की सुरक्षा का सवाल मुख्यधारा की बहस में सुनाई दे रहा है कि आखिर कब तक लड़कियां और औरतें इस तरह बलात्कार का शिकार होती और मरती रहेंगी?

जिस दिन उस लड़की का शव पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया, उसी दिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने वर्ष 2019 की रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट के मुताबिक इस साल औरतों के साथ होने वाली हिंसा में 7.3 फीसदी का इजाफा हुआ है. इतना ही इजाफा दलित महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में भी हुआ है. महिलाओं के साथ हिंसा की वारदातों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है.

Indien: Vier Männer wegen Vergewaltigung einer Studentin hingerichtet
तस्वीर: picture-alliance/AP/O. Anand

लगातार बढ़ता ही गया है हिंसा का ग्राफ

2012 में निर्भया कांड के बाद हमें ऐसा लगा था कि महिलाओं की सुरक्षा का सवाल देश की प्रमुख चिंता बन गया है. रेप कानूनों को और सख्त करने की मांग हुई और उस मांग पर तत्काल अमल भी किया गया. जस्टिस जेएस वर्मा की अगुआई में बनी कमिटी ने 29 दिनों के भीतर जनवरी 2013 में 631 पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंपी.

रिपोर्ट आने के महज तीन महीने के भीतर अप्रैल 2013 में संसद के दोनों सदनों से पास होते हुए यह कानून भी बन गया. महिला सुरक्षा के सवाल पर जितनी तत्परता के साथ कानून में बदलाव हुआ, उसकी नजीर आजाद भारत के इतिहास में कम ही देखने को मिलती है.

कुछ वक्त के लिए तो सभी को यह यकीन सा हो चला था कि अब औरतों की स्थिति इस देश में बदलने वाली है. लेकिन अगले साल जब फिर से एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट जारी की, तो पता चला कि औरतों के साथ हिंसा और बलात्कार की घटनाएं 13 फीसदी बढ़ चुकी थीं. उसके बाद से यह ग्राफ लगातार बढ़ता ही गया है. 2016-17 में अकेले देश की राजधानी में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में 26.4 फीसदी का इजाफा हुआ था.

यह सारे तथ्य और आंकड़े एक ही सच की ओर इशारा कर रहे हैं कि अपनी महिलाओं को एक सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी देने में हम बुरी तरह विफल रहे हैं. सिर्फ छोटे शहरों, गांवों और कस्बों में ही नहीं, महानगरों में भी मेरे जैसी लड़कियां अंधेरा होने के बाद किसी खाली, अकेली सड़क पर चलने में डरती हैं. हमें हर वक्त इस बात का डर सताता रहता है कि हमारे साथ कभी भी कोई हादसा हो सकता है. हमारी बहुत सारी उर्जा सिर्फ खुद को सुरक्षित रखने में खर्च होती है. अगर किसी देश की आधी आबादी लगातार इस भय में जिए कि उसके साथ कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है, तो यह उस देश के लिए गौरव की बात तो कतई नहीं है.

Indien Energie | Kochen ohne Elektrizität in Nisarpura
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

कानून से नहीं तो फिर कैसे रुकेंगे बलात्कार?

दूसरा सबसे जरूरी सवाल यह है कि कानून से नहीं तो फिर कैसे रुकेंगे बलात्कार? कैसे बनेगा एक ऐसा समाज, जहां लड़कियां बेखौफ होकर घूम सकें, जी सकें. इस सवाल का जवाब कानून की किताब और एनसीआरबी के आंकड़ों में नहीं है. इसका जवाब है हमारे समाज और परिवार के पितृसत्तात्मक ढांचे में, जिसने मर्दों के लिए सारे विशेषाधिकार सुरक्षित कर रखे हैं और औरतों के लिए सौ नियम-कानून बनाए हैं.

जो बलात्कार होने पर लड़की के कपड़ों की इंक्वायरी करने लगता है. जो अपनी लड़कियों को बलात्कार से बचने के सौ सबक सिखाता है, लेकिन अपने बेटों को कभी नहीं सिखाता कि किसी लड़की के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए. जो छेड़खानी के डर से लड़कियों को घर में कैद कर देता है और लड़कों को छेड़ने के लिए सड़कों पर आजाद घूमने देता है.

जिस समाज ने अपनी इज्जत का सारा ठेका औरतों के सिर डाल दिया हो और जिस समाज में इज्जत बलात्कारी की नहीं, बलात्कार का शिकार होने वाली लड़की की जा रही हो. उस समाज में औरतों के लिए गरिमापूर्ण जगह मुमकिन नहीं. यही हैं वे सबसे जरूरी, सबसे बुनियादी सवाल, जिसे पूछे बिना और जिसका ईमानदारी से जवाब दिए बिना औरतों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित समाज बनाने का सपना पूरा हो ही नहीं सकता.

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