यूरोप से अफगानिस्तान का 'वर्चुअल टूर' करा रही प्रवासी महिला
१६ फ़रवरी २०२३इटली में रहने वाली फातिमा हैदरी इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि अफगानिस्तान में ट्रैवल एजेंसी खोलने का उनका सपना कम से कम तब तक अधूरा है, जब तक वहां तालिबान का शासन है. इसलिए वह अब लोगों को अपने देश के जूम टूर पर ले जाती हैं. और इन वर्चुअल टूर से होने वाली आय अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए गोपनीय अंग्रेजी कक्षाओं में मदद करती है.
2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद फातिमा को अफगानिस्तान छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा . इससे पहले वह हेरात में एक टूर गाइड के रूप में काम करती थीं. फिलहाल वह इटली के मिलान में बोक्कोनी विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की पढ़ाई कर रही हैं. इसके साथ ही वह बाकी दुनिया को अफगानिस्तान की खूबसूरती से रूबरू कराने का भी काम कर रही हैं.
मिलान में अपनी साथी छात्रा के फ्लैट में रहने वाली फातिमा हेरात के उन खूबसूरत नजारों को साइबर टूरिस्ट को दिखाती हैं जो अब वहां जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. जूम का इस्तेमाल करते हुए वह हेरात की खूबसूरत मस्जिदें, बाजार और अन्य जगहों की सैर कराती हैं.
"खूबसूरत है अफगानिस्तान"
समाचार एजेंससी एएफपी से फातिमा कहती हैं, "जब आप अफगानिस्तान के बारे में सोचते हैं, तो आप युद्ध, आतंक और बम के बारे में सोचते हैं, लेकिन मैं दुनिया को इसकी सुंदरता, संस्कृति और इतिहास दिखाना चाहती हूं,"
मिलान में फातिमा चार अन्य छात्राओं के साथ एक फ्लैट में रहती हैं, जहां से वह जूम के जरिए 'साइबर टूरिस्ट' को हेरात की सैर कराती हैं. इन दौरों के दौरान पर्यटकों को हेरात की जामा मस्जिद, ऐतिहासिक किला और चहल-पहल भरा बाजार देखने को मिलता है. ये टूर ब्रिटिश टूर ऑपरेटर अनटेम्ड बॉर्डर्स द्वारा आयोजित किए जाते हैं, जिसमें यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और भारत के लोग अफगानिस्तान जाने की इच्छा वर्चुअली पूरी करते हैं.
महिला की अंग्रेजी की शिक्षा के लिए पैसों का इस्तेमाल
इन वर्चुअल टूर से जो आमदनी होती है उसका एक तिहाई हिस्सा अफगानिस्तान में युवा महिलाओं की अंग्रेजी शिक्षा की क्लास के लिए इस्तेमाल होता है. तालिबान ने सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में महिलाओं पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें उनके स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जाने पर प्रतिबंध भी शामिल है.
फातिमा को अफगानिस्तान में प्रतिबंधों और कठिन परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा था. पहली महिला अफगान टूर गाइड बनने के बाद उन्हें अपमान का भी सामना करना पड़ा और उनपर स्थानीय मौलानाओं द्वारा "शैतानी कार्य" का आरोप भी लगाया गया. ऐसा खासकर तब हुआ जब उनके साथ पुरुष पर्यटक होते थे. फातिमा के मुताबिक ऐसे मौकों पर गली के लड़के उन पर पत्थर फेंकते थे.
फातिमा जब अफगानिस्तान में थी तब भी उन्हें शिक्षा पाने और किताबों तक पहुंच के लिए संघर्ष करना पड़ता था . उनका बचपन अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाके में बीता. वह सात भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं और कम उम्र में ही उनके माता-पिता ने उन्हें भेड़ों की देखभाल करने का जिम्मा सौंप दिया था.
संघर्ष भरा जीवन
फातिमा ने उस समय को याद करते हुए को बताया कि वह नदी के किनारे भेड़ चराने जाती थीं, जहां लड़कों के लिए एक स्कूल भी था. इस स्कूल में फातिमा चोरी छिपे लड़कों को पढ़ते देखते और सुनती. कलम न होने के कारण वह मिट्टी या रेत पर उंगली से ही पाठ लिखा करती थी. जब वह दस साल की थी, तब उसका परिवार हेरात चला गया, लेकिन गरीबी के कारण वह वहां भी स्कूल में दाखिला नहीं ले सकी. फातिमा का कहना है कि वह तीन साल तक पूरी रात घर पर पारंपरिक कपड़े बनाने में लगी रही ताकि वह स्कूल की फीस भरने और किताबें खरीदने के लिए पैसे जमा सके.
आखिरकार फातिमा अपने माता-पिता को उसे हेरात में विश्वविद्यालय जाने देने के लिए मनाने में सफल रहीं, जहां उन्होंने 2019 में पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू की. वह कहती हैं कि उनके माता-पिता चाहते थे कि वह एक "गृहिणी" बनें, लेकिन वह अपनी दो बहनों की तरह अरेंज मैरिज नहीं चाहती थीं. इसलिए, उन्होंने शिक्षा जारी रखी और पिछले साल सितंबर में वह उन 20 अफगान शरणार्थी छात्राओं में शामिल थीं, जिन्हें मिलान में बोक्कोनी विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था.
आज जब फातिमा एक काले रंग का दुपट्टा, चमड़े की जैकेट, जींस और जूते पहनकर विश्वविद्यालय जाती हैं, तो वह बाकी छात्राओं से अलग नहीं होती हैं. वह उनमें से ही एक लगती हैं. लेकिन वह अफगानिस्तान में महिलाओं की दुर्दशा को नहीं भूली हैं. फातिमा ने वहां की महिलाओं की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा, "वे अपने घरों में कैद हैं, जैसे उन्हें जेल में बंद कर दिया गया हो या कब्र में जिंदा दफन कर दिया गया हो."
एए/सीके (एएफपी)