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गहरी आवाज वाले नेता भाते हैं वोटरों को

१४ मार्च २०१२

चुनाव का दौर हो या न हो नेताओं के भाषण चलते रहते हैं.वोटरों को लुभाना हो या लड़ाना, उन्हें शांत करना हो या भड़काना हर जगह काम आता है नेताओं का भाषण. अब पता चला है कि भाषण की आवाज ही दिलाती है वोट.

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तस्वीर: Fotolia/V.Kolobov

याद करके देखिए मायावती की गरजती, अखिलेश यादव की बहलाती, मुलायम सिंह की लड़खड़ाती, राहुल गांधी की शिकायती और उमा भारती की चीखती आवाजों में से कौन आपके दिल में ज्यादा गहरे उतरी. चुनाव के नतीजे तो अखिलेश के पक्ष में गए तो क्या मुद्दों के अलावा किसी और बात ने भी इन पर असर डाला होगा. भाषण में की गई बातों का तो असर होता ही है लेकिन असर उस आवाज का भी बहुत ज्यादा है जिसमें ढल कर बातें लोगों के कान तक पहुंचती है. अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक शोध ने यह बात साबित कर दी है.

बुधवार को जारी हुए एक रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि जिन राजनेताओं की आवाज अच्छी होती है उन्हें वोट भी ज्यादा मिलते हैं. रॉयल सोसायटी की कार्यवाही में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक एक काल्पनिक राजनीतिक उम्मीदवार को जब सिर्फ आवाज के आधार पर चुनने के लिए लोगों को विकल्प दिए गए तो लगातार लोगों ने उस उम्मीदवार को चुना जिसकी आवाज गहरी थी.

पुराने शोध

इस बारे में पहले भी रिसर्च हुए हैं और उनसे पता चला था कि लोगों की पसंद नापसंद पर आवाज का असर पड़ता है. पिछले रिसर्च में शामिल लोगों को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों की रिकॉर्ड की हुई आवाजें सुनाई गईं. लोग उन आवाजों को पहचानते थे और इस वजह से उन्होंने फैसला करते वक्त अपने राजनीतिक रुझानों का भी ख्याल रखा. इसके अलावा पिछले रिसर्च में किसी महिला आवाज को शामिल नहीं किया गया था. पिछले अनुभव से सबक लेकर इस बार रिसर्च के दौरान लोगों को एक रिकॉर्डे आवाज सुनाई गई. इसमें कहा गया,"मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस नवंबर में मेरे लिए वोट दें." रिकॉर्डिंग को डिजिटल तरीके से अलग अलग रूपों में ठाला गया. किसी की पिच ऊंची तो किसी की नीची की गई और लोगों को अपने पसंद की आवाज चुनने को कहा गया. एक दूसरे प्रयोग में लोगों से आवाज की योग्यता और भरोसेमंद जैसे दूसरे गुणों के आधार पर आवाजों की रेटिंग करने को भी कहा गया.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

मर्दों की आवाज बेहतर

मियामी यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर कासे क्लॉफ्सटाड ने बताया, "हमारे नतीजों ने इस बात की संभावना बढ़ा दी है कि महिला उम्मीदवारों के चुने जाने के पीछे मर्दों की तुलना में उनकी ऊंची आवाज के बेहतर असर का हाथ होता है."

इसके साथ ही क्लॉफ्सटाड ने यह भी कहा, "दुनिया भर में महिलाएं नेतृत्व करने की स्थिति में बहुत कम हैं, जाहिर है कि महिलाओं का नेतृत्व न होने के पीछे लिंगभेद एक बड़ी वजह है, हमारे नतीजे बताते हैं कि पुरुष और महिला के बीच जैविक अंतर और उनके प्रति हमारा व्यवहार एक और अहम वजह हो सकती है जिस पर विचार होना चाहिए." वैज्ञानिकों का कहना है,"नेताओं का चुनाव आमतौर पर उनकी छवियों के बारे में हमारे फैसले पर निर्भर करता है." यह रिसर्च बताती है, "आवाज के बारे में धारणा एक वह कारण हो सकती है जिसे वोटर अपने जेहन में रखते हैं." रिसर्च में कॉल्फ्सटाड के अलावा उत्तरी कैरोलाइना की ड्यूक यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर सी एंडरसन और सूजान पीटर्स ने भी हिस्सा लिया.

तो अब तो आप जान गए होंगे कि लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के हजारों तरीके होने के बावजूद नेताजी का चुनावी भाषण इतना अहम क्यों होता है, भारत ही नहीं पूरी दुनिया में.

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः आभा मोंढे

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