गांव के पहलवानों के बीच नन्हा गोल्फर
२४ अप्रैल २०१२अब गांव की धरती पर गोल्फ भी शुरू हो चुका है. सात साल के शुभम जुगलान ने हरियाणा में पानीपत के पास इसराना गांव के खेतों में गोल्फ शुरू कर दिल्ली गोल्फ क्लब और देश के बड़े से बड़े गोल्फरों का दिल जीत लिया है. और लगता है वह दिन दूर नहीं जब गांव के खेतों में अनाज के अलावा गोल्फ खिलाडियों की फसल उगेगी.
पहलवानों में नन्हा गोल्फर
शुभम का जन्म 16 अगस्त 2004 में इसराना गांव के साधारण से परिवार में हुआ. घर में चाचा और ताऊ नामी गिरामी पहलवान थे, तो जाहिर है शुभम का ध्यान कुश्ती की ओर ही गया. लेकिन उसके भाग्य में कुछ और ही लिखा था. यह एक संयोग रहा कि एक दिन अचानक अमेरिका में बसे कपूर सिंह गांव लौटे. कपूर खुद एक अच्छे एथलीट थे और अमेरिका में उन्होंने गोल्फ मैनेजमेंट का कोर्से किया. तो फिर स्वाभाविक ही था कि कपूर सिंह गांव में खेल को प्रोत्साहन देते. इसी इरादे से उन्होंने इसराना में एक गोल्फ अकादमी बनाई. गांव में सब कुछ विश्व स्तर का बनाना तो संभव नहीं था लेकिन कपूर सिंह ने नन्हे शुभम के दिल और दिमाग पर गोल्फ का बुखार जरूर चढ़ा दिया. कपूर सिंह के वापस अमेरिका लौटने के बाद कुछ दिन अकादमी भी रुक सी गई, लेकिन शुभम नहीं रुका. गांव के खेतों में ही शुभम के पिता ने नन्हे बालक को गोल्फ खिलाना शुरू कर दिया. और जब पंचकुला में पांच साल के शुभम को कुछ बड़े खिलाडियों ने खेलते देखा तो उन्होंने शुभम को इंडियन गोल्फ यूनियन का रास्ता दिखाया.
व्यापार जगत की मदद
इंडियन गोल्फ यूनियन के अधिकारियों ने शुभम की प्रतिभा को देखते हुए उसे प्रोत्साहित किया और फिर शुभम पर नजर पड़ी भारत के पूर्व चैम्पियन अमित लूथरा की. उन्होंने भी शुभम की सराहना की और भरपूर मदद की. यहीं से सही मायने में शुभम का गोल्फ करियर शुरू हुआ. इसी बीच अमेरिका में गोल्फ का सामान बनाने वाली केल्वे कंपनी ने शुभम को गोल्फ का सामान देना शुरू कर दिया. भारत में केल्वे कंपनी के हेड विवेक मेहता कहते हैं, "कंपनी का मुख्य उद्देश्य शुभम जैसे युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना और उनकी मदद करना है.'' केल्वे ने शुभम और अन्य कई प्रतिभावान खिलाड़ियों के लिए कोच नियुक्त किया है और उनकी पढ़ाई का इंतजाम भी किया है. विवेक मानते हैं, "2016 के ओलंपिक खेलों में गोल्फ को भी रखा गया है और मुझे उम्मीद है कोई भारतीय खिलाड़ी रियो के खेलों में भारत का नाम ऊंचा करेगा.'' इसी इरादे से कपूर सिंह भी इसराना में दोबारा अकादमी चलाना चाहते हैं.
गोल्फ विद हनुमान चालीसा
खुद शुभम के सामने आज सिर्फ एक ही लक्ष्य है और वह है गोल्फ. वह सोते जागते, खाते पीते सिर्फ गोल्फ के बारे में ही सोचता है. इसमें उसके पिता जगपाल की अहम भूमिका है. यहां तक कि अपने बेटे को गोल्फ खिलाने के लिए उसे गांव से दिल्ली ले आए हैं. दक्षिण दिल्ली के आश्रम इलाके में बाप बेटे एक घर लेकर रह रहे हैं जबकि इसराना में घर शुभम की मां संभाल रही हैं. जगपाल ने शुभम को दिल्ली के केंद्रीय विद्यालय में भर्ती करा दिया है. उधर एक कंपनी ने शुभम के लिए घर में टीवी लगवा दिया है. पिता जगपाल के अनुसार "शुभम या तो गोल्फ खेलता है या फिर टीवी पर गोल्फ टूर्नामेंट देखता है.'' शुभम को फिल्म या या टीवी सीरियलों से कोई मतलब नहीं है. "वो कोक या चिप्स नहीं.मैं ही उसके लिए गांव का खाना बनाता हूं.'' शुभम का दिन हनुमान चालीसा के पाठ के साथ शुरू होता है और फिर कोर्स पर खेलने के बाद वह टीवी पर गोल्फ देखता है या यू ट्यूब पर गोल्फ खिलाड़ियों को देख कर खेल सीखता है.
गोल्फ कोर्स पर भारतीय परंपरा
गांव की पगडंडी पर खेलने वाले शुभम के लिए एक कंपनी ने कार भी मुहैया कराई है जिसमे बैठ कर वह दिल्ली गोल्फ क्लब खेलने जाता है. लेकिन इस सबके बीच शुभम अपने रास्ते से भटका नहीं है. वह बड़ों से से पांव छूकर मिलता है ठीक वैसे ही जैसे संस्कार उसे अपने बड़ों से गांव में मिले हैं. शुभम के पास उसकी सबसे बड़ी मिल्कियत एक टोपी है जिस पर दुनिया के मशहूर खिलाड़ी गेरी प्लयेर और भारत के शिव कपूर ने दस्तखत किए हैं. शुभम के सबसे प्रिय खिलाड़ी नोएडा क्लब के केडी दीपक कुमार हैं. वह कहता है, "मैं दीपक जैसा बनना चाहता हूं क्योंकि वो भी मेरी तरह ही नीचे से ऊपर आए हैं.''
रिपोर्ट: नोरिस प्रीतम, नई दिल्ली
संपादन: ओ सिंह