गायब भारतीय सिक्कों के गहने
७ अक्टूबर २०१२
बांग्लादेश से लगी भारतीय सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल के कमांडर सुरेश जाधव ने डॉयचे वेले को बताया, "हाल के साल में हमने दो बार बांग्लादेश के नागरिकों के भारतीय सिक्कों से भरी थैलियां जब्त की हैं. इन्हें ले जा रहे लोगों ने माना कि सिक्के बांग्लादेश ले जाए जा रहे थे. उन्होंने यह भी कहा कि सिक्के की धातु को शेविंग ब्लेड और स्टील के गहने बनाने में इस्तेमाल किया जाता है."
पश्चिम बंगाल की पुलिस ने एक रुपये, दो रुपये और पांच रुपये के सिक्कों वाले बैग भारत बांग्लादेशी सीमा पर कई बार जब्त किए हैं. भारतीय सिक्कों के गायब होने की शिकायत पहली बार 2007 में व्यापारियों ने की थी. यह मुश्किल जारी रही और दो साल बाद पश्चिम बंगाल की सरकार ने केंद्र से इस समस्या को रोकने के लिए मदद मांगी.
संगठित गैंग्स
भारत के राजस्व खुफिया विभाग (आरआई) ने हाल ही में पश्चिम बंगाल को एक गोपनीय रिपोर्ट में लिखा कि पूर्वी भारत से कुछ संगठित गैंग सिक्के गायब कर रही है और इसके लिए वह सिक्के जमा करने वालों को 10 से 15 फीसदी देते हैं. सिक्के की धातु बांग्लादेश की फैक्ट्रियों में रेजर और गहने बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती है.
कोलकाता के अस्थाई ढलाइखाने में फेरेटिक स्टील के सिक्कों को पिघला कर उनका बार बनाया जाता है और उनकी फिर सीमा पार तस्करी की जाती है. कोलकाता पुलिस के खुफिया विभाग में काम करने वाले जूनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने कई फैक्ट्रियों पर छापे मारे और उन्हें सिक्के पिघलाने के सबूत मिले हैं. "अब भारतीय सीमा में पुलिस निगरानी बढ़ने के कारण यह काम कम हो गया है. अगर कोई बड़ी फेरेटिक स्टील का बिस्किट ले कर कहीं जा रहा हो तो उस पर संदेह किया जा सकता है, लेकिन अगर कोई थोड़े से सिक्के ले कर कहीं जा रहा हो तो उस पर संदेह होना मुश्किल है और उस पर तेजी से कार्रवाई भी नहीं कर सकते. इसलिए अब इन सिक्कों की सीमा पार तस्करी होती है और वहां इनकी ढलाई होती है.ऐसा हमें कई सूत्रों ने बताया है."
आरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि सिक्कों की तस्करी करने वाले भारतीय सिक्कों के पीछे इसलिए हैं क्योंकि इन सिक्कों में धातु की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है.
बड़ा फायदा
ढाका में स्टील के व्यापारी जहीरुद्दीन ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि स्टील की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण फेरेटिक स्टील की मांग बढ़ी. इनकी मोटाई बांग्लादेशी सिक्कों से ज्यादा है और पिघलाने पर उनकी कीमत ज्यादा है. सिक्के पिघलाने वाले माफिया, स्टील कंपनियां, रेजर और गहने बनाने वाले बहुत मुनाफा कमा रहे हैं. एक एक रुपये के सिक्के से चार या पांच शेविंग ब्लेड बनती हैं. और हर रेजर की कीमत चार से पांच टका होती है.
कोलकाता में धातु विशेषज्ञ का कहना है कि भारत में सिक्के पिघला कर उद्योगों में इस्तेमाल करने की परंपरा पुरानी है. पुलिस की जांच के डर से डॉयचे वेले को नाम नहीं बताने की शर्त पर एक व्यापारी ने बताया, "1980 में निकल से बने सिक्कों से गहने और दूसरी चीजें बनाई जाती थी. 1990 में फेरेटिक स्टील के सिक्के पिघलाने पर मुनाफा मिलता. 2000 के बाद जब पैसों का इस्तेमाल बंद हो गया तो एक, दो और पांच रुपए के सिक्के माफिया का शिकार बने."
भिखारियों से
सिक्कों के बाजार से गायब होने का असर व्यापार पर होता है. क्योंकि छुट्टे देने के लिए पैसों की कमी पड़ जाती है. कई लोग और सिक्कों के व्यापारी रिजर्व बैंक के बाहर नोटों के एवज में सिक्कों के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते हैं. रिजर्व बैंक से सिक्के जमा करने वाली पार्वती दास का धंधा अच्छा चल रहा है. "12 साल पहले जब मैंने यह काम शुरू किया तो मुझे एक एक के 100 सिक्के बेचने पर 102 रुपये मिलते थे. सात साल पहले 103 रुपये मिलते थे लेकिन अब मैं इस एक थैली को 110 रुपये में बेचती हूं. पिछले पांच साल में सिक्कों की मांग तेजी से बढ़ी है."
सिक्कों की इतनी कमी है कि व्यापारी भिखारियों से सिक्के मांग रहे हैं. कोलकाता की ट्रेनों में भीख मांगने धेनू मंडल बताते हैं, "90 एक रुपये के लिए सिक्के देने पर मुझे सौ रुपये मिलते हैं. मेरे लिए यह अच्छा सौदा है."
रिपोर्टः शेख अजीजुर रहमान/एएम
संपादनः निखिल रंजन