गिर गई हथियारों की बिक्री
१८ फ़रवरी २०१३सोमवार को एक प्रमुख थिंक टैंक की रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें 2011 के आंकड़े बताए गए हैं. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) का कहना है कि बिक्री में करीब पांच फीसदी की कमी आई है. रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में 410 अरब डॉलर के हथियार बिके, जबकि 2010 में 411 अरब डॉलर के. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की बदलती स्थिति को देखते हुए इस बदलाव को पांच फीसदी आंका गया है.
यह संस्था 1989 से हथियारों की बिक्री की सूची तैयार कर रही है. इसका कहना है कि चीनी कंपनियों को इसमें शामिल नहीं किया जा सका है क्योंकि उनके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है.
एक बयान जारी कर स्टॉकहोम की संस्था ने कहा, "बचत योजनाओं और रक्षा बजट में कटौती के अलावा पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हथियार प्रोग्राम टाले गए हैं, जिसकी वजह से यह आंकड़े सामने आए हैं." इसमें कहा गया, "इराक और अफगानिस्तान में युद्ध में कमी और लीबिया से हथियार स्थानांतरण पर रोक भी इसकी वजहें हैं."
सिप्री की एक रिसर्चर सूजन जैकसन का कहना है कि शीत युद्ध के बाद 1990 के दशक में हथियारों की बिक्री में कमी आई थी और उसके बाद यह पहला मौका है. हालांकि बिक्री की गति 2010 में ही कम हो गई थी. उससे पिछले साल 2009 में जहां आठ फीसदी विकास हुआ था, वहीं 2010 में यह सिर्फ एक फीसदी बढ़ा था.
हथियार निर्माताओं पर डिलीवरी में होने वाली देरी और सरकार के साथ समझौते खत्म होने की भी मार पड़ी है. सिप्री के मुताबिक 2011 की बिक्री में अमेरिकी और पश्चिमी यूरोपीय देशों की 74 कंपनियां थीं, जिन्होंने उस साल 90 फीसदी हथियार बेची. अमेरिकी की लॉकहीड मार्टिन अभी भी हथियार बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी है, जबकि बोइंग दूसरे नंबर पर पहुंच गई है.
सिप्री का कहना है कि हथियार बनाने वाली कंपनियों ने हाल के सालों में कंप्यूटर सुरक्षा और साइबर हमलों से बचने के तरीकों पर ध्यान दिया है क्योंकि बचत के बावजूद पश्चिमी देशों में इस मद पर खर्च कम नहीं किया गया है. इसका कहना है कि इससे हथियार बनाने वाली कंपनियां गैर सरकारी और असैनिक संस्थाओं के साथ भी कारोबार करने में सक्षम हो पा रही हैं.
एजेए/एमजी (रॉयटर्स)