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गुमनामी में महिला क्रांतिकारी

८ मार्च २०१३

भारत के स्वाधीनता आंदोलन में महिलाओं की काफी अहम भूमिका रही. हालांकि उनमें से कई महिलाओं के नाम दस्तावेजों में गुम गए. पूर्वी भारत की करीब 200 महिलाओं के नाम सामने आए हैं जिन्हें ब्रिटेन उस काल में आतंकवादी कहता.

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Auf dem Bild: Archivist Dr. Madhurima Sen says that the details about the unknown women revolutionaries of Bengal opens a new chapter of the history of the Indian Freedom Movement. These are displayed in an exhibition in Kolkata on 07-03-2013. Keywords--Freedom movement, Bengal, women, Exhibition, Kolkata Rechte: Prabhakar Mani Tewari / DW
तस्वीर: DW/P.M.Tewari

कुछ महिला क्रांतिकारी ऐसी भी हुईं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी. लेकिन आज भी लोग उनकी शहादत से अनजान हैं. बीना दास, सुनीति चौधरी और शांति घोष ऐसे ही कुछ नाम हैं, जो इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं हो पाए. नमक कानून भंग होने के बाद हजारों की तादाद में महिलाओं ने शराब की दुकानों पर धरना दिया और नमक भी बेचा. मणिपुर की रानी गेडिलियो महज 13 वर्ष की उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ी थीं और पूर्वी क्षेत्र के संघर्ष में अपना योगदान देती रहीं. आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा सुना दी. ऐसे न जाने कितने नाम हैं. सब गोपनीय तरीके से अपना योगदान देते रहे और देश को आजादी की राह पर ले जाने के लिए जान पर खेल गए.

खास प्रदर्शनी

खुफिया विभाग की हजारों फाइलों से गहरी छानबीन के बाद निकली इन महिला क्रांतिकारियों पर फिलहाल कोलकाता में एक फोटो प्रदर्शनी चल रही है.

चटगांव (अब बांग्लादेश) की रहने वाली पार्वती नलिनी मित्र (1908-1935) ऐसी ही महिलाओं में शामिल हैं. तब के प्रमुख संगठन युगांतर से जुड़ी पार्वती को आतंकवादी गतिविधियों के आरोप में 18 मार्च, 1934 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. लेकिन बीमारी की हालत में 14 अगस्त 1935 को दमदम (कोलकाता) के टीबी अस्पताल में उनका निधन हो गया. इसी तरह बांकुड़ा की भक्ति घोष और बरीसाल की शैलबाला राय को भी क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े होने के आरोप में लंबी सजा सुनाई गई थी. लेकिन अब तक यह नाम ज्यादातर लोगों और इतिहासकारों के लिए भी अनजान थे.

प्रदर्शनी में कई महिलाएं ऐसी भी हैं जिनके नाम तो मालूम हैं लेकिन फाइलों में उनकी गतिविधियों या उनको दी गई सजा का पूरा ब्योरा नहीं है. सरकारी अभिलेखागार (स्टेट आर्काइव्स) की निदेशक सिमोंती सेन कहती हैं, ‘खुफिया विभाग की फाइलों में झांकने के दौरान हमें कई ऐसी महिला क्रांतिकारियों के बारे में पता चला जिनके बारे में हमने स्कूली किताबों में नहीं पढ़ा था. इतिहास ने इन महिलाओं को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था.' सेन खुद भी एक इतिहासकार हैं और ब्रिटिश शासनकाल के इतिहास में उनकी खास दिलचस्पी है.

Frauen Aktivistinnen Bengal Bangladesch Indien
कोलकाता में महिला क्रांतिकारियों पर प्रदर्शनीतस्वीर: DW/P.M.Tewari

वह बताती हैं, ‘यह महिलाएं विभिन्न क्रांतिकारी संगठनों के साथ काम करती थीं. पहले इन महिलाओं का इस्तेमाल सिर्फ गोपनीय सूचनाएं या कागजात छिपाने के लिए किया जाता था. लेकिन बाद में वह संगठन में शामिल हो गईं.' ज्यादातर महिलाएं 20वीं सदी की शुरूआत में सक्रिय दो सबसे ताकतवर क्रांतिकारी संगठनों--अनुशीलन समिति व युगांतर के साथ जुड़ी थीं. यह संगठन दूसरे कार्यों के अलावा गोरे अधिकारियों की हत्याओं में भी शामिल था. बाद में इन महिलाओं को या तो उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया था या फिर जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया. इन तमाम क्रांतिकारियों को वर्ष 1920 से 1940 के बीच बगावत की सजा दी गई थी.

स्टेट आर्काइव की आर्काइविस्ट डॉ.मधुरिमा सेन कहती हैं, 'यह इतिहास का एक नया अध्याय है. इससे स्वाधीनता आंदोलन में अविभाजित बंगाल की महिलाओं के सक्रिय योगदान को समझने में काफी सहायता मिलेगी.' वह कहती हैं कि यह अपनी किस्म की पहली प्रदर्शनी है. आगे चल कर ऐसी कई और प्रदर्शनियों के आयोजन की योजना है.

कई जानकारियां

खुफिया विभाग की फाइलों के अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को कुछ दिलचस्प जानकारियां मिलीं. सबसे पहली बात यह थी कि ज्यादातर महिला क्रांतिकारी सवर्ण थीं. मधुरिमा सेन कहती हैं, 'इससे पता चलता है कि क्रांतिकारी गतिविधियों का सामाजिक दायरा काफी संकीर्ण था. उस दौरान झांसीरानी रेजिमेंट में विभिन्न जिलों से जिस तादाद में महिलाओं की भर्ती हुई वह भी स्वाधीनता आंदोलन का एक बेमिसाल अध्याय है.'

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फाइलों में खो चुके नामतस्वीर: DW/P.M.Tewari

 इसके अलावा यह महिलाएं जिन जगहों से आई थी वह सब अब बांग्लादेश में हैं. लेकिन आखिर वह कौन सी ऐसी बात थी जिसने उस समय इन महिलाओं को ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने की प्रेरणा दी थी ? इस सवाल का जवाब अब तक नहीं मिला है. असिस्टेंट आर्काइविस्ट मौमिता चक्रवर्ती कहती हैं, ‘शायद उस समय के पूर्वी बंगाल की सामाजिक परिस्थिति और महिलाओं की शिक्षा के स्तर ने उनको इसके लिए प्रेरित किया था. यह तथ्य काफी दिलचस्प है. इतिहासकारों को इस बारे में शोध करना होगा.'  मौमिता बताती हैं कि इस प्रदर्शनी में चुनिंदा तस्वीरें और दस्तावेज रखे गए हैं. इनसे उस समय की हालत और महिलाओं की जागरुकता का पता चलता है.

इतिहासकार देवाशीष बसु कहते हैं, ‘भारत के स्वाधीनता आंदोलन में इन गुमनाम महिला क्रांतिकारियों की भूमिका बेहद अहम है. इनके योगदान पर नए सिरे से शोध की जरूरत है.' कोलकाता स्थित इंडियन म्यूजियम के पूर्व निदेशक व इतिहासकार सीआर पांडा कहते हैं, ‘इतिहास की स्कूली पुस्तकों में महज कल्पना दत्त व प्रीतिलता वड्डेदार जैसी कुछ महिला क्रांतिकारियों का ही जिक्र है. तब के इतिहासकारों ने बाकी महिलाओं के योगदान का कहीं कोई जिक्र नहीं किया है. लेकिन अब नए तथ्यों की रोशनी में स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में अविभाजित बंगाल की इन महिला क्रांतिकारियों की भूमिका पर नए सिरे से शोध कर उनके योगदान को रेखांकित करना जरूरी है.' पांडा कहते हैं कि बीसवीं सदी के शुरूआती दौर का इतिहास दोबारा लिखा जाना चाहिए.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे