ग्लेशियर पिघलने से इटली का इलाका स्विट्जरलैंड में आ गया
२६ जुलाई २०२२59 साल के सैलानी फ्रेडरिक एक संकरा दरवाजा खोल कर रेस्तरां में दाखिल होते हैं, यह बाहर की रोशनी से भरा हुआ है. मेन्यू इटैलियन में है जर्मन में नहीं और कीमतें स्विस फ्रैंक की बजाय यूरो में लिखी हैं. हालांकि इतने पर भी वो काउंटर पाई का एक टुकड़ा ऑर्डर करते हुए पूछते हैं, "तो हम स्विट्जरलैंड में हैं या फिर इटली में?
यह सवाल पूछना इस समय जरूरी है क्योंकि 2018 में इस मुद्दे पर राजनयिकों की बातचीत शुरू हुई जो पिछले साल एक समझौते पर खत्म हुई. हालांकि इस बातचीत का ब्यौरा अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है.
इलाके में यह सीमा रेखा एक पहाड़ी नाले के साथ चलती है. यह वो जगह है जहां बर्फ पिघलने से आया पानी पर्वत के दोनों तरफ से इन देशों को जाता है. हालांकि थियोडुल ग्लेशियर के पीछे हटने का मतलब है कि पानी का बहाव रिफ्यूजियो गाइड डेल सर्विनो की तरफ जायेगा. टेटा ग्रिगिया चोटी पर यह सैलानियों की एक आरामगाह है. इमारत तेजी से खिसक रही है.
1984 में जब यह आरामगाह बनाई जा रही थी तब 40 बिस्तरों और काठ की लंबी मेजों वाली यह इमारत पूरी तरह इटली के इलाके में थे. अब इस लॉज का लगभग दो तिहाई हिस्सा जिसमें इसके बिस्तर और रेस्तरां भी शामिल हैं, तकनीकी रूप से दक्षिणी स्विट्जरलैंड में आ गये हैं.
यह मामला इसलिए सामने आया क्योंकि पूरी तरह पर्यटन पर निर्भर यह इलाका दुनिया के सबसे बड़े स्की रिजॉर्ट के ऊपर है. इससे कुछ ही मीटर की दूरी पर एक केबल कार स्टेशन भी बन रहा है. फ्लोरेंस में नवंबर 2021 में इसे लेकर एक समझौता तो हो गया लेकिन इसे सार्वजनिक तब किया जायेगा जब स्विस सरकार इस पर अपनी मुहर लगा देगी. यह काम 2023 के पहले नहीं होगा.
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स्विट्जरलैंड की मानचित्र विभाग स्विसटोपो के प्रमुख सीमा अधिकारी एलायन विष्ट का कहना है, "हम मतभेदों को तोड़ने पर सहमत हुए हैं." विष्ट के काम में स्विट्जरलैंड की ऑस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, इटली और लिष्टेनश्टाइन के साथ लगती 1935 कोलमीटर लंबी सीमा पर 7000 बाउंड्री मार्कर लगाना भी शामिल है. विष्ट उस बातचीत में शामिल थे जहां दोनों पक्ष समाधान पाने के लिए झुके. विष्ट का कहना है, "अगर कोई पक्ष विजेता बना तो भी दूसरे पक्ष का कम से कम कोई नुकसान नहीं हुआ."
इटली और स्विट्जरलैंड की सीमा अल्पाइन ग्लेशियरों के बीच से गुजरती है और सरहदों पर पानी के बहाव से साथ चलते हैं. हालांकि थियोडुल ग्लेशियर ने 1973 से 2010 के बीच अपना करीब एक चौथाई हिस्सा खो दिया है. इसकी वजह से बर्फ के नीचे छिपी चट्टान सामने आ गयी है और नालों से जो लाइन खिंची हुई थी वह बदल गई है. इसी वजह से दोनों पड़ोसियों को सीमा पर करीब 100 मीटर के दायरे में दोबारा सीमा रेखा तय करनी पड़ रही है.
विष्ट का कहना है कि इस तरह के फेरबदल अकसर होते हैं और आम तौर पर सीमावर्ती देशों में सर्वेयरों की रीडिंग्स की तुलना कर के निपटा लिये जाते हैं. ज्यादातर मामलों में तो राजनेताओं को भी इसमें पड़ने की जरूरत नहीं होती. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया, "यह अकेली ऐसी जह है जिसमें एक इमारत भी शामिल है" इससे उस जमीन का आर्थिक महत्व बढ़ गया है. उनके इटैलियन समकक्ष ने मामले को "जटिल अंतरराष्ट्रीय स्थिति" बताते हुए इस पर बयान देने से मना कर दिया.
स्विसटोपो के पूर्व प्रमुख जां फिलिपे अम्सटाइन का कहना हैकि इस तरह के विवाद सतह के बराबर जमीन और उसकी कीमत के लेनदेन से निपटा लिये जाते हैं. उन्होंने समझाया इस मामले में, "स्विट्जरलैंड की दिलचस्पी ग्लेशियर का टुकड़ा पाने में नहीं है और इटैलियन स्विस सतह के इलाके का मुआवजा देने में असमर्थ हैं."
नतीजे का तो पता नहीं लेकिन लॉज के केयरटेकर 51 साल के लुसियो ट्रुको कहते आ रहे हैं कि यह इटली की धरती पर ही रहेगा. ट्रुको ने कहा, "लॉज इटैलियन ही रहेगा क्योंकि हम हमेशा से इटैलियन है, मेन्यू इटैलियन है, वाइन इटैलियन है और टैक्स भी इटैलियन है."
समझौते पर बातचीत के चलते लॉज की मरम्मत का काम भी अटका हुआ है. सीमा के दोनों तरफ के गांव इसे बिल्डिंग परमिट जारी नहीं कर सकते.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)