एयर-कंडीशनर का इस्तेमाल बढ़ा रहा है गर्मी
२९ जनवरी २०२२कई जगहों पर जब पारा चढ़ता है, तब घरों को ठंडा रखने के लिए एयर-कंडीशनर का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि हम आराम से रह सकें. हालांकि, अब यह सिर्फ आराम की बात नहीं रह गई है. बढ़ती गर्मी हमारे स्वास्थ्य, हमारी उत्पादकता, हमारी अर्थव्यवस्था और यहां तक कि हमारे अस्तित्व को भी प्रभावित कर सकती है.
पूर्व-औद्योगिक स्तर से केवल 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फॉरनहाइट) की वृद्धि 230 करोड़ लोगों को भीषण गर्मी की लहरों के खतरे में डाल सकती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करते हैं, तो 2030 के दशक की शुरुआत तक तापमान में वृद्धि काफी ज्यादा लोगों को प्रभावित कर सकती है.
गर्म मौसम पहले से ही हर साल 12,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भविष्यवाणी की है कि 2030 तक गर्मी की वजह से हर साल 38,000 ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है. इनमें सबसे ज्यादा संख्या बुजुर्गों की होगी. भीषण गर्मी से बचने के लिए एयर-कंडीशनर खरीदना तत्कालीन और आसान समाधान हो सकता है, लेकिन ऊर्जा की खपत करने वाले ये उपकरण केवल समस्याओं को बढ़ा रहे हैं. ये उपकरण समस्या का समाधान नहीं हैं.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की लिली रियाही ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें इस चक्र से बाहर निकलने की जरूरत है. जिस तरह हम मौजूदा समय में अपने घर और कार्यालय को ठंडा करते हैं, वह जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारक है. यह जलवायु परिवर्तन की गति को और तेज करता है."
ऊर्जा की बढ़ती मांग
एयर कंडीशनर हानिकारक रेफ्रिजरेंट का रिसाव करते हैं जो ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ाते हैं. साथ ही, दुनिया भर की इमारतों में उपयोग की जाने वाली कुल बिजली का लगभग 20% हिस्सा एसी और पंखे चलाने में खर्च होता है. इनमें से अधिकांश बिजली का उत्पादन अभी भी जीवाश्म ईंधन से होता है.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, तेजी से गर्म होती धरती, भारत और चीन जैसे देशों में बढ़ती आबादी और लोगों की आय में वृद्धि की वजह से एसी का इस्तेमाल बढ़ रहा है. मौजूदा समय में दुनिया भर में इस्तेमाल किए जा रहे एसी की कुल संख्या करीब 200 करोड़ है, जो 2050 तक बढ़कर 560 करोड़ हो सकती है.
एजेंसी का यह भी अनुमान है कि इस सदी के मध्य तक घरों को ठंडा रखने के लिए ऊर्जा की मांग तीन गुना बढ़ सकती है. यह उतनी ही ऊर्जा होगी जितनी आज के समय में भारत और चीन बिजली की खपत कर रहे हैं.
रियाही ग्लोबल कूल कोएलिशन नेटवर्क की समन्वयक भी हैं. यह नेटवर्क घरों और धरती को स्थायी तौर पर ठंडा रखने के उपायों को बढ़ावा देने पर काम कर रहा है. रियाही कहती हैं, "घरों को ठंडा रखने के लिए जो तत्कालीन उपाय किए जा रहे हैं उससे बिजली ग्रिड पर भी काफी दबाव पड़ेगा. अंतत: यह जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करेगा."
वह कहती हैं, "अनुमान के मुताबिक, 2050 तक सिर्फ घरों और कार्यालयों को ठंडा रखने के लिए कई देशों में 30 से 50 फीसदी बिजली खर्च होगी, जो अभी सिर्फ 15 फीसदी है. इसका साफ मतलब है कि ग्रिड पर काफी ज्यादा दबाव होगा और कई ग्रिड काम करना बंद कर सकते हैं."
आखिर विकल्प क्या है?
जिन देशों में ज्यादा गर्मी पड़ती है वहां के लोग आराम से रह सकें और काम कर सकें, इसमें एयर-कंडीशनर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. साथ ही, इनकी बिक्री से अर्थव्यवस्था का पहिया भी घूमता है. हालांकि, जब तक एसी काफी अधिक जलवायु के अनुकूल नहीं बन जाते, तब तक उनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि एक बड़ी चुनौती बन सकती है.
रियाही का कहना है कि घरों को ठंडा रखने के विकल्पों के बारे में जागरूकता की कमी है. साथ ही, पैसे की कमी की वजह से भी लोग कम उत्सर्जन वाले और ऊर्जा की बचत करने वाले एसी नहीं खरीद पाते.
वह कहती हैं, "एसी का मतलब बाजार का सबसे सस्ता एयर-कंडीशनर नहीं है. एसी का मतलब यह होना चाहिए कि हम अपने शहरों और इमारतों को किस तरह डिजाइन करें कि वहां ठंडक बनी रहे. बढ़ते तापमान का ज्यादा असर न हो. इसके लिए, बाजार में बेहतर तकनीक लाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का तरीका ढूंढना होगा."
छतों को ठंडा रखना
एसी की तकनीक में सुधार लाने से ज्यादा जरूरी है उच्च तापमान से बचाव करना और उत्सर्जन को कम करना. उदाहरण के लिए, इस तरह से इमारत का निर्माण किया जाए कि उनकी बाहरी दीवारों पर छाया रहे, छतों पर छोटे-छोटे पौधे लगाना या सूर्य की किरणों को परावर्तित करने वाला पेंट करना, इलाके में हरियाली बढ़ाना, घरों और गलियारों को हवादार बनाना वगैरह. इल न उपायों से घर ज्यादा गर्म नहीं होते हैं और एसी चलाने की जरूरत कम हो जाती है.
भारत में महिला हाउसिंग ट्रस्ट झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि इनके घरों को ठंडा रखा जा सके. ये ऐसे लोग हैं जो एसी का खर्च वहन नहीं कर सकते. यह संगठन कम लागत वाले उपायों को प्राथमिकता देता है. जैसे, घरों की छतों पर मौजूद टिन को सफेद रंग से पेंट करना, घरों के आसपास पेड़ लगाना, टिन की चादर की जगह बांस की चटाई से छतों का निर्माण करना वगैरह.
ट्रस्ट की निदेशक बीजल ब्रह्मभट्ट का कहना है कि सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट से छतों की कोटिंग करने पर घर के अंदर के तापमान में 6 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आ सकती है. वह कहती हैं, "इसका काफी ज्यादा फायदा होता है. लोगों की काम करने की क्षमता 1 से 2 घंटे बढ़ जाती है. उनके घर में बिजली की खपत कम हो जाती है, क्योंकि पंखे का इस्तेमाल कम करना पड़ता है. इससे यहां रहने वाले लोगों के पैसे भी बचते हैं."
रेगिस्तान से सबक लेने की जरूरत
मिस्र के रेगिस्तान में भी गर्मी से निपटने के लिए एक परियोजना चलाई जा रही है. यहां गर्मी में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. गर्मी से निजात पाने के लिए यहां पूरी तरह से स्मार्ट बिल्डिंग डिजाइन की गई है.
ग्रीन बिल्डिंग फर्म ई-कंसल्ट की संस्थापक आर्किटेक्ट सारा अल बतूती ने कहा कि वह बिना किसी उपकरण के इमारतों के तापमान को लगभग 10 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में सफल रहीं. उनकी कंपनी मिस्र सरकार के साथ मिलकर 4,000 गांवों को अपग्रेड करने के लिए काम कर रही है ताकि यहां रहने वाले लोग भीषण गर्मी से बेहतर तरीके से निपट सकें. यहां करीब 5.8 करोड़ लोग रहते हैं.
बतूती का कहना है कि हाई-टेक समाधान की जगह उन्होंने स्थानीय जानकारी का इस्तेमाल किया. वह कहती हैं, "ये गांव बच गए हैं, क्योंकि हजारों सालों से यहां के लोग कठोर परिस्थिति से निपटने के लिए स्थानीय ज्ञान और जानकारी का इस्तेमाल कर रहे हैं. हम पता लगाते हैं कि कौन सा तरीका यहां बेहतर काम करेगा."
यहां इमारतें बनाने के लिए स्थानीय सामग्री जैसे झरझरा चूना पत्थर और बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया, ताकि दीवारों के माध्यम से हवा आर-पार हो सके. जमीन की गर्मी का घर पर कोई असर न हो, इसके लिए घर को जमीन से थोड़ा ऊपर बनाया गया. घर में प्रवेश करने के रास्ते को अंधेरा कर दिया गया. छतों को इस तरह से डिजाइन किया गया कि सूर्य का ज्यादा से ज्यादा प्रकाश परावर्तित हो जाए. घर में रोशनी हो, लेकिन गर्मी नहीं, इसके लिए कोण वाली खिड़कियां लगाई गईं.
घरों के निर्माण पर ध्यान देने की जरूरत
अल बतूती का कहना है कि वास्तुकला क्षेत्र में फिर से विचार करने की जरूरत है, ताकि इमारतों को शुरुआत से ही इस तरह डिजाइन किया जा सके कि वह ठंडा रहे. वह कहती हैं, "घर जितना अधिक गर्म होगा, उतनी ही ज्यादा देर तक गर्मी रहेगी. लोग घरों को ठंडा रखने के लिए एयर-कंडीशनर जैसे उपायों की तलाश करेंगे. हमें घरों के निर्माण के तरीके पर ही सवाल उठाना होगा कि क्या ये इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि गर्मी का ज्यादा असर न हो."
अल बतूती कहती हैं, "गर्मी को कम करने में इमारतों की भूमिका को लेकर ग्लासगो में हाल ही में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन जैसे आयोजनों में भी विशेष चर्चा होनी चाहिए थी. घरों को ठंडा रखना उतना ही जरूरी है जितना नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना."