घातक अल्जाइमर की जल्द पहचान मुमकिन
१९ जुलाई २०११फ्रांस की राजधानी पैरिस में अल्जाइमर एसोसिएशन इंटरनेशनल कांफ्रेंस में दुनिया भर के वैज्ञानिक और डॉक्टर अल्जाइमर के आगे फिर बेबस दिखे. यूनिवर्सिटी ऑफ पीट्सबुर्ग मेडिकल सेंटर के डॉक्टर विलियम क्लुंक ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि इलाज के लिए हम इस बात का इंतजार कर सकते है कि लोगों को पहले अल्जाइमर हो. हमें ऐसा होने से पहले ही कुछ करना होगा."
अल्जाइमर का पता लगाने के लिए अक्सर दिमाग का स्कैन और रीढ़ की हड्डी के द्रव का परीक्षण किया जाता है. यह प्रक्रिया काफी महंगी है और कई बार स्कैन करने के बाद ही अल्जाइमर का पता लग पाता है. इन परिस्थितियों के बीच वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि किसी अन्य तरीके से अल्जाइमर का पहले पता लगाया जाए.
गिरने से संबंध
इस बारे में उम्मीद की कुछ किरण भी दिखाई पड़ रही है. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की सुजान स्टार्क के मुताबिक अगर लोग यह दर्ज करें कि वह कितनी बार गिरे हैं, तो अल्जाइमर का पता लगाया जा सकता है. स्टार्क ने दिमाग का स्कैन और रीढ़ की हड्डी के द्रव का परीक्षण कराने वाले 125 लोगों पर शोध किया. सभी लोगों को एक डायरी दी गई और उनसे कहा गया कि वह जब भी गिरें तो उस घटना को डायरी में दर्ज करें. आठ महीने तक किए गए इस प्रयोग के बाद रिसर्चरों को पता चला कि जिन लोगों में अल्जाइमर के संकेत मिले हैं वे दोगुनी बार गिरे.
स्टार्क कहती हैं, "यह पहला अध्ययन है जिसमें देखा गया कि अस्पताल जाने से पहले ही गिरने की घटनाओं से अल्जाइमर की बीमारी का पता लगा है. रिसर्च बताती है कि ज्यादा गिरने वाले लोगों में अल्जाइमर शुरुआती चरण में होता है."
पुतली की जांच
एक अन्य अध्ययन में कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन और ऑस्ट्रेलिया की नेशनल साइंस एजेंसी ने पाया है कि आंखों की पुतली की जांच से भी अल्जाइमर पकड़ में आ सकता है. शॉन फ्रॉस्ट के अल्जाइमर के रोगियों की कुछ खास नसें स्वस्थ्य लोगों से काफी अलग होती हैं. फ्रॉस्ट के मुताबिक अलग किस्म की नसों वाले लोगों की आंख के रेटिना में अल्जाइमर वाला प्रोटीन जमा हो जाता है. वह कहते हैं, "यह नतीजे संकेत देते हैं कि रेटिना में बदलाव और दिमाग में जमा हो रहे प्रोटीन में संबंध है. दिमाग का स्कैन करने के बजाए पुतली की जांच करना ज्यादा आसान है."
फ्रॉस्ट की रिसर्च टीम के मुताबिक अल्जाइमर के रोगियों की पुतली और दिमाग में बीटा एमीलॉएड नाम का प्रोटीन जमा होने लगता है. फिलहाल इसका पता पीईटी ब्रेन स्कैन से ही चल पाता है. हालांकि फ्रॉस्ट के शोध की अभी बड़े पैमाने पर पुष्टि होनी बाकी है.
क्या है अल्जाइमर
अल्जाइमर बेहद असामान्य दिमागी बीमारी है. औसतन 65 वर्ष की आयु के बाद यह बीमारी पकड़ में आती है. अब तक हुए वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक अल्जाइमर के रोगियों के दिमाग का आकार समय से साथ बदलने लगता है. स्वस्थ्य मनुष्य के दिमाग के बीचों बीच और बाएं व दाहिने स्थान पर बहुत छोटा सा खाली हिस्सा रहता है. लेकिन अल्जाइमर के रोगियों के दिमाग का यह खाली हिस्सा फैलता जाता है.
रोगी चीजों को तेजी से भूलने लगता है. बढ़ती उम्र के साथ उसमें चिड़चिड़ापन और अचानक मूड बदलने का स्वभाव आ जाता है. बातचीत करने में भी वह गड़बड़ाने लगता है. बात करते करते शब्द भूलने लगता है. अल्जाइमर के रोगियों को यह बात करते हुए यह भी याद नहीं रहता कि वे क्या कह रहे हैं, उन्होंने क्या जिक्र छेड़ा है. धीरे धीरे मरीजों की हर चीज को महसूस करने की क्षमता इतनी गिर जाती है कि उनका बच पाना असंभव हो जाता है. भूखे होने के बावजूद वह खाना भूल जाते हैं. कई बार प्यासे रह जाते हैं.
1906 में जर्मन मनोविज्ञानी और न्यूरोपाथॉलॉसिजिस्ट अलोइज अल्जाइमर ने इस बीमारी का पता लगाया था. लेकिन तब से आज तक इसके लिए न तो कोई दवा बन सकी है और न ही ऑपरेशन के जरिए अल्जाइमर का तोड़ निकाला गया है. दुनिया भर में इस वक्त अल्जाइमर के करीब ढाई करोड़ मरीज हैं. 2050 तक हर 85 में से एक व्यक्ति इस बीमारी का शिकार होगा. अल्जाइमर पर दुनिया भर के वैज्ञानिक और डॉक्टर हर साल अपने अनुभव साझा करते हैं. वैज्ञानिक और मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ आशा जताते हैं कि अगर शुरुआती चरण में अल्जाइमर का पता लग सके तो इसकी वृद्धि रोकने के लिए कोई दवा बनाई जा सकती है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ईशा भाटिया