चार दिन पहले मौत का पता लगा सकता है हार्ट रडार
२६ फ़रवरी २०२१जर्मनी की टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ हैम्बर्ग के प्रोफेसर अलेक्सांडर कोएल्पिन का विचार है कि अगर किसी रडार का इस्तेमाल समुद्री जहाज का पता लगाने, हाइवे पर गाड़ियों की रफ्तार का पता लगाने और हवाई जहाज की ऊंचाई का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, तो संपर्क-रहित इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मेडिसिन और चिकित्सा के क्षेत्र में भी किया जा सकता है. वे कहते हैं, "रेडियो सेंसर में मेडिकल और चिकित्सा से जुड़े परीक्षणों को अधिक सुविधाजनक, सुरक्षित और अधिक कुशल बनाने की काफी संभावनाएं हैं.”
उदाहरण के तौर पर, रडार के जरिए सांस लेने की दर और दिल की धड़कन का पता लगाकर ऐसे लोगों को खोजने का विचार नया नहीं है, जिन्हें जिंदा दफन किया गया है. हालांकि, यूरोप में पहली बार कोएल्पिन और उनकी टीम ने मेडिसिन के क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए रडार सिस्टम को विकसित किया है. साथ ही, अस्पताल में भर्ती रोगियों पर परीक्षण करके दिखाया है.
इंस्टीट्यूट ऑफ हाई फ्रीक्वेंसी टेक्नोलॉजी में इस टीम ने रोगियों की मेडिकल मॉनिटरिंग के लिए काफी ज्यादा संवेदनशील सेंसर सिस्टम को विकसित किया है. इस नई रडार टेक्नोलॉजी की मदद से दिल की धड़कन और सांस दोनों का लगातार विश्लेषण किया जा सकता है.
क्लासिक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम की मदद से दिल की धड़कन का पता इलेक्ट्रोड और केबल के जरिए लगाया जाता है जो रोगी के शरीर और मशीन से जुड़े रहते हैं. वहीं, रडार टेक्नोलॉजी के जरिए बिना किसी संपर्क के और रिमोट की मदद से, रोगी की निगरानी की जा जाती है.
कोएल्पिन ने जिस रडार सिस्टम को विकसित किया है वह कपड़ों, बेड कवर और यहां तक कि गद्दों के माध्यम से दिल की धड़कन और सांस लेने की दर का पता लगा सकता है और उन्हें निगरानी वाले उपकरणों तक पहुंच सकता है. वे कहते हैं, "हमारे रडार सेंसर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब छोड़ते हैं जो शरीर से रिफ्लेक्ट होते हैं. यह कुछ इस तरह से काम करता है: हृदय से पंप किया गया खून, पल्स वेब के तौर पर नसों से गुजरता है जिससे शरीर में कंपन होती है. हम इसे सेंसर की मदद से माप सकते हैं. साथ ही, इससे हृदय प्रणाली के चिकित्सा से जुड़े कई पहलुओं को तय कर सकते हैं.”
जब ह्रदय, नसों के जरिए खून को पंप करता है, तो शरीर की त्वचा में हल्का खिंचाव होता है और वह बढ़ जाती है. इसकी वजह से ही कलाई पर ऊंगली रखकर पल्स को मापा जाता है. नया रडार सिस्टम त्वचा में होने वाले इस खिंचाव का पता लगा सकता है और उसका विश्लेषण कर सकता है.
यह सेंसर इतने सटीक हैं कि वे हृदय की गति, हृदय के तनाव और पल्स वेव वेलॉसिटी को सटीक तौर पर माप सकते हैं. इसका इस्तेमाल धमनियों को सख्त होने और इस तरह के स्ट्रोक के खतरों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है. अगर दिल नियमित तौर पर धड़कना बंद कर देता है या इसमें किसी तरह की समस्या होती है, तो नया डिवाइस इसकी चेतावनी देता है. इसका मतलब यह है कि हार्ट अटैक जैसे संभावित खतरों से बचने और जिंदगी को बचाने के लिए, पहले से ही इलाज शुरू किए जा सकते है.
फिलहाल इस रिसर्च प्रोजेक्ट में समय से पहले जन्में बच्चों और नवजात शिशुओं की मेडिकल निगरानी के लिए ध्यान दिया जा रहा है. कोएल्पिन कहते हैं, "अभी हम मुख्य तौर पर मिर्गी के दौरे की बीमारी पर ध्यान दे रहे हैं. माना जाता है कि अचानक होने वाली मौत में 20 प्रतिशत मौत मिर्गी के दौरे की वजह से होती है. समस्या यह है कि बच्चों को आने वाले इन दौरों का इलाज नहीं हो पाता क्योंकि इसे पता लगाने का कोई उपकरण नहीं है.”
दूर से मापने के लिए सेंसर का इस्तेमाल करके बच्चों की लगातार निगरानी की जाती है. इससे उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती है. इस तरह से दौरे का पता लगाया जा सकता है और समय रहते उसका इलाज किया जा सकता है.
कोएल्पिन कहते हैं कि कोराना वायरस महामारी के दौर में भी इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल काफी उपयोगी साबित हो सकता है, "हम दिल की धड़कन, सांस लेने की दर के साथ-साथ शरीर के तापमान को भी दूर से माप सकते हैं. इसका मतलब यह है कि कोरोना वायरस के संभावित संक्रमण के संबंध में किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की पूरी जांच की जा सकती है.” वे कहते हैं कि इस तरीके से संपर्क में आए बिना जांच हो सकती है और स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण फैलने का खतरा कम हो सकता है.
हाल ही में विकसित हुआ हार्ट रडार चार दिन पहले मरीजों की मौत के बारे में पता लगा सकता है. इस तरह से मरीजों और उनके रिश्तेदारों को पता चल सकता है कि एक दूसरे को अलविदा कहने का समय कब आने वाला है.
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