चीन के सिल्क रोड में गड्ढे ही गड्ढे
११ जनवरी २०१८बीते साल नवंबर में ही पाकिस्तान में जल प्रशासन ब्यूरो के चेयरमैन ने दियामीर-भाषा बांध के स्वामित्व को लेकर सवाल उठाए थे. चेयरमैन का कहना था कि चीन इस पनबिजली परियोजना के स्वामित्व में हिस्सेदारी चाहता है. उन्होंने चीन के इस दावे को पाकिस्तानी हितों के खिलाफ बताकर ठुकरा दिया था.
चीन ने इस बात से इनकार किया लेकिन चीनी अधिकारियों ने इस परियोजना से अपने हाथ खींच लिए. पाकिस्तान से लेकर तंजानिया, हंगरी और कई और देशों में वन बेल्ट वन रोड पहल के तहत किए गए करार रद्द हो रहे हैं, उनमें फेरबदल हो रहा है या फिर उनमें देरी हो रही है. इसकी वजह है परियोजना का खर्च या फिर जिन देशों में ये परियोजनाएं हैं उनकी यह शिकायत कि उन्हें इनका बहुत कम लाभ मिल रहा है. इन परियोजनाओं में ठेके चीनी कंपनियों को मिले हैं और इसके लिए धन कर्ज के रूप में चीन दे रहा है जिसे वापस किया जाना है. कुछ जगहों पर चीन को राजनीतिक मुश्किलों से भी जूझना पड़ रहा है क्योंकि कई देशों को लगता है कि एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था उन पर दबदबा कायम करना चाहती है.
हांगकांग की रिसर्च कंपनी इकोनॉमिस्ट कॉर्पोरेशन नेटवर्क के विश्लेषक रॉबर्ट कोएप कहते हैं, "पाकिस्तान उन देशों में है जो चीन की पिछली जेब में रहते हैं और ऐसे में पाकिस्तान का उठकर यह कहना कि 'मैं आपके साथ यह नहीं करना चाहता' दिखाता है कि चीन के लिए केवल फायदा ही फायदा नहीं है."
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में बेल्ट एंड रोड पहलकदमी की शुरुआत की थी. इसके तहत चीन ने दक्षिण प्रशांत से लेकर एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 65 देशों के साथ परियोजनाओं का एक खाका तैयार किया जिसके लिए पैसा चीन दे रहा है. इनमें साइबेरिया में तेल की खुदाई से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया में बंदरगाहों का निर्माण, पूर्वी यूरोप में रेलवे और मध्यपूर्व में बिजली की परियोजनाएं भी शामिल हैं.
अमेरिका से लेकर रूस और भारत तक चीन की इस परियोजना से असहज हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे इन इलाकों पर उनके असर में सेंध लगेगी. पाकिस्तान के लिए चीन का निवेश के एक बड़े जरिये के रूप में उभरना अमेरिका को अखर रहा है. खासतौर से 5 जनवरी के उस फैसले के बाद जिसमें पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बंद करने की बात है.
चीन की कैबिनेट से जुड़े एक अधिकारी ने बीते साल अप्रैल में कहा था कि "बेल्ट एंड रोड" एक कारोबारी उपक्रम है, सहायता का नहीं. इसके तहत जो भी पैसा दिया जा रहा है वह कारोबारी शर्तों पर दिया जा रहा है. उनका यह भी कहना था कि चीन गैर चीनी निवेशकों को भी इसमें शामिल करना चाहता है. हालांकि इसमें मुट्ठीभर परियोजनाएं ही ऐसी हैं जिसमें दूसरे निवेशकों ने हाथ डाला है.
जो परियोजनाएं खटाई में पड़ गई हैं उनमें नेपाल की बूढ़ी गंडकी पनबिजली परियोजना भी है. इसी तरह यूरोपीय संघ इस बात की पड़ताल कर रहा है कि हंगरी ने सर्बिया में हाई स्पीड रेललाइन बनाने के ठेके में क्या नियमों का उल्लंघन किया है. म्यांमार में 3 अरब डॉलर की लागत से बनने वाली ऑयल रिफाइनरी की योजना आर्थिक दिक्कतों के कारण रद्द कर दी गई है.
परियोजनाओँ की आधिकारिक सूची तो कोई नहीं है लेकिन कंसल्टेंसी फर्म बीएमआई रिसर्च ने एक डाटाबेस तैयार किया है. इसके मुताबिक एशिया, अफ्रीका और मध्यपूर्व में 1800 अरब डॉलर के बुनियादी निर्माण की परियोजनाओं की घोषणा हुई है जिसके लिए चीन या तो पैसा दे रहा है या फिर दूसरे तरीकों से सहयोग.
इनमें से ज्यादातर फिलहाल योजना बनाने के दौर में हैं और कुछ के पूरा होने में तीन दशक तक का समय लगेगा. बीएमआई के विश्लेषक क्रिश्चियान झांग का कहना है, "यह बताना कि परियोजनाओं पर कितना अमल हुआ फिलहाल जल्दबाजी होगी." लंदन के किंग्स कॉलेज में चीनी राजनीति के विशेषज्ञ प्रोफेसर केरी ब्राउन कहते हैं, "इस बात की बहुत संभावना है कि चीन को बहुत सारी असहमतियों और गलतफहमियों का सामना करना पड़ेगा."
यहां तक कि पाकिस्तान के साथ भी, जो चीन का मजबूत साथी और पड़ोसी है, एक प्रमुख परियोजना पर असहमति है. दोनों देशों की सरकारों के बीच 60 अरब डॉलर की लागत वाली बिजली, रेल, बंदरगाह और सड़क की परियोजनाएं तैयार की गई हैं.
चीन के सहायक विदेश मंत्री ने नवंबर में पाकिस्तान का दौरा किया लेकिन कराची में 10 अरब डॉलर की रेलवे और ग्वादर में 26 करोड़ डॉलर के एयरपोर्ट की परियोजना को लेकर सहमति नहीं बन सकी. इसी महीने में पाकिस्तान के पानी और बिजली विकास प्राधिकरण ने एलान किया कि दियामीर-भाषा डैम को संयुक्त रूप से विकसित करने की योजना रद्द कर दी गई है. यह बांध गिलगित बल्तिस्तान के इलाके में बनना था जो पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर में है और जिस पर भारत भी अपना दावा करता है.
पाकिस्तानी प्राधिकरण के अधिकारी मुजम्मिल हुसैन ने पिछले दिनों सांसदों से कहा, "दियामीर-भाषा बांध बनाने के लिए चीन ने पैसा देने की जो शर्त रखी वह मानने लायक नहीं है और हमारे हितों के खिलाफ है." उधर चीन की कैबिनेट ने एक लिखित बयान जारी कर कहा है कि चीन की तरफ से स्वामित्व में हिस्सेदारी की कोई बात नहीं हुई और परियोजना को लेकर दोनों पक्षों ने केवल शुरुआती बातचीत की है.
पाकिस्तान की कैबिनेट के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर समाचार एजेंसी एपी को बताया कि चीनी पक्ष ने इसलिए स्वामित्व को लेकर सवाल उठाए क्योंकि गिलगित बल्तिस्तान आधिकारिक रूप से पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है. उन्होंने प्राधिकरण ने चेयरमैन के बयान को स्पष्ट करने के लिए पूछे सवाल का जवाब नहीं दिया.
थाईलैंड में 15 अरब डॉलर की लागत वाली हाई स्पीड रेलवे के निर्माण का काम 2016 में बंद कर दिया गया क्योंकि इसमें थाई कंपनियों को ज्यादा काम नहीं मिला. कई दौर की बातचीत के बाद आखिरकार थाई नेताओँ ने जुलाई में पहली लाईन बनाने का एलान किया. इसमें शर्त रखी गई कि इसका निर्माण थाई कंपनियां करेंगी और चीन तकनीक देगा.
तंजानिया में भी बागमोयो बंदरगाह को लेकर मुश्किल हुई और अब इस पर चीन सहित कई और देशों से बातचीत फिर शुरू की गई है. इन सबके बावजूद चीन का कहना है कि बेल्ट एंड रोड की परियोजनाएं आगे बढ़ रही हैं कुछ मुश्किलों के साथ ही सही. चीन के सरकारी बैंक चाइना डेवलपमेंट बैंक ने 2015 में कहा था कि उसने 60 देशों में 900 से ज्यादा परियोजनाओं के लिए 890 अरब डॉलर की रकम अलग निकाल कर रख दी है. इनमें गैस, खनिज, बिजली, टेलिकॉम, बुनियादी निर्माण और कृषि की परियोजनाएं हैं. उधर चीन के एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक ने भी कहा है कि वह 49 देशों में 1000 परियोजनाओं के लिए धन देगा.
बैंकर के रूप में चीन के पास यह तय करने की सुविधा है कि वह चीनी बिल्डरों और तकनीकों को मौका दे. लेकिन इसके साथ ही सहयोगी देशों के साथ उसे शर्तों को तय करने में भी दिक्कत हो रही है.
एनआर/एमजे (एपी)