चीन-भूटान सीमा विवाद पर बातचीत से क्या भारत की चिंता बढ़ेगी
२६ अक्टूबर २०२३भूटान और चीनकी सीमा विवाद पर बातचीत वर्ष 2016 से रुकी पड़ी थी. इस महीने हुई बातचीत में चीन ने सीमा विवाद को शीघ्र हल करने का भरोसा दिया है. विवादित इलाकों में वह डोकलाम भी है जिस पर वर्ष 2017 में भारत और चीन आमने-सामने आ गए थे. वह इलाका पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम है. डोकलाम इस कॉरिडोर से ज्यादा दूर नहीं है.
सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि चीन से भूटान की करीबी पूर्वी और पूर्वोत्तर सीमा पर भारत के लिए सिरदर्द बन सकती है. भारत पर दबाव बढ़ाने के मकसद से ही सीमा विवाद के मुद्दे पर चीन भूटान पर बार-बार दबाव बनाता है. इससे पहले उसने भूटान के एक वन्यजीव अभयारण्य पर भी दावा पेश किया था जो सामरिक लिहाज से पूर्वोत्तर भारत में आवाजाही के लिए बेहद अहम था. लेकिन भूटान ने उसका दावा खारिज कर दिया था.
अब भारतकी चिंता यह है कि कहीं चीन से विवाद सुलझाने के लिए भूटान उसे डोकलाम सौंपने पर हामी ना भर दे. यह भारत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. इसलिए भारत सरकार इन दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के बीच होने वाली बातचीत पर बारीकी से निगाह रख रही है.
क्या है चीन-भूटान सीमा विवाद
भूटान और चीन के बीच 764 किलोमीटर लंबे इलाके पर मालिकाना हक को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है. चीन भूटान के इस इलाके पर अपना दावा करता रहा है. इस विवाद को सुलझाने के लिए वर्ष 1984 से ही दोनों देशों के बीच बातचीत होती रही है. हालांकि वर्ष 2016 तक इसका नतीजा सिफर ही रहा था. उसके अगले साल ही चीन ने डोकलाम में सड़क बनाने का काम शुरू किया.
भारत ने इसका कड़ा विरोध किया. नतीजतन लंबे समय तक दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने जमी रहीं. भारत के कड़े विरोध के बाद चीन ने सड़क बनाने का काम तो रोक दिया, लेकिन उससे कुछ दूरी पर ही भूटान के दूसरे इलाके पर कब्जा कर वहां अपने कई गांव बसा दिए. हालांकि भूटान ने कभी यह बात कबूल नहीं की.
भूटान सरकार की चिंता तब बढ़ी जब चीन ने इसके एक वन्यजीव अभयारण्य पर अपना दावा ठोक दिया. वह इलाका भारत के लिए भी बेहद अहम है. भारत उस इलाके से होकर असम की राजधानी गुवाहाटी से अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाके तवांग तक एक सड़क बनाना चाहता था. उस योजना के विरोध में ही चीन ने उस अभयारण्य पर अपना दावा ठोका था.
डोकलाम विवाद
चीन डोकलाम पर भी दावाकरता रहा है. डोकलाम के सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत भूटान से लगातार कहता रहा है कि वह डोकलाम सौंपने की शर्त पर चीन के साथ किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करे. डोकलाम पर चीन का मालिकाना हक कायम होने की स्थिति में सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए खतरा बढ़ जाएगा. चीन रातों-रात अपने सैनिक और सैन्य साजो-सामान उस इलाके में भेज कर उस कॉरिडोर पर कब्जा कर के पूर्वोत्तर को देश के बाकी हिस्से से काट सकता है.
हाल के दिनों में भूटान के बदलते रुख ने भी भारत की चिंता बढ़ाई है. प्रधानमंत्री लोते शेरिंग ने इस साल की शुरुआत में एक बयान में कहा था कि डोकलाम विवाद को सुलझाने में भूटान, भारत और चीन की भूमिका समान है और तीनों देशों को मिलकर इसका हल निकालना होगा.
इससे पहले वर्ष 2019 में उनका कहना था कि डोकलाम में कोई भी देश मनमाने तरीके से कोई बदलाव नहीं कर सकता. भूटान के रुख में यह बदलाव भारत के लिए चिंता की बात है. अब सीमा विवाद पर ताजा बातचीत में दोनों देशों ने कूटनीतिक संबंध कायम करने और सीमा विवाद के शीघ्र हल होने का भरोसा जताया है.
भारत के लिए खतरे की घंटी है भूटान के रुख में आया बदलाव
भूटान के प्रधानमंत्री ने बीते महीने कहा था कि चीन के साथ सीमा विवाद पर बातचीत में शीघ्र तीन बिंदुओं पर सहमति बन सकती है. इसमें सीमांकन को लेकर सहमति, विवादास्पद इलाकों का संयुक्त दौरा और सीमा निर्धारण की लकीर खींचना शामिल है.
भारत की चिंता
औपचारिक रूप से भूटान सरकार लगातार कहती रही है कि वह भारत के हितों के खिलाफ जाकर चीन के साथ कोई सीमा समझौता नहीं करेगी और डोकलाम पर बातचीत की स्थिति में तीनों देश शामिल रहेंगे. लेकिन ताजा बातचीत में आखिर किन शर्तों पर समझौते की सहमति बनी है, इसकी जानकारी अब तक ना तो चीन ने दी है और ना ही भूटान ने.
सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि चीन-भूटान सीमा विवाद खासकर डोकलाम इलाके से भारत के हित भी जुड़े हैं. रक्षा विशेषज्ञ प्रोफेसर (रिटार्यड) जीवन लामा कहते है, भूटान चक्की के दो पाटों बीच फंसा है. उसके हित भारत से भी जुड़े हैं और वह चार दशक से चीन के साथ जारी सीमा विवाद भी हल करना चाहता है. लेकिन वह इन दोनों ताकतवर पड़ोसियों में से किसी को भी नाराज करने का खतरा नहीं मोल ले सकता. इसके साथ ही वह भारत-चीन विवाद में पिसना भी नहीं चाहता. जाहिर वह इस विवाद में फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है."
प्रोफेसर लामा यह भी कहते हैं कि एक बार समझौते के तहत अगर डोकलाम का इलाका चीन के नियंत्रण में चला गया तो भारत की मुसीबतें काफी बढ़ जाएगी. भारत सरकार भी आंख मूंद कर भूटान पर भरोसा करने की बजाय इस मामले पर बारीकी से निगाह रख रही है.