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जब डॉनल्ड ट्रंप ने ट्विटर पर फैलाई फेक न्यूज

१३ सितम्बर २०१९

डॉनल्ड ट्रंप रोजाना बहुत सारे ट्वीट करते रहते हैं लेकिन उनके कई ट्वीट तो वास्तविकता से कोई लेना-देना ही नहीं होता है. जैसे 2018 में किया गया यह ट्वीट.

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Donald Trump
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Watson

डॉनल्ड ट्रंप बार-बार लगातार फेक न्यूज के बारे में शिकायत करते हैं. लेकिन जब खुद फेक न्यूज फैलाने की बात आती है तो वे इस काम में उस्ताद हैं. वे ट्विटर का बहुत ही ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और फेक न्यूज संवाद के तरीके और उनकी बातचीत की नियमित शब्दावली का एक हिस्सा बन गई है.

2018 में उन्होंने एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि ओबामा के राष्ट्रपति रहते समय गूगल उनके स्टेट ऑफ द यूनियन के भाषणों को अपने होमपेज पर दिखाता था. लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद गूगल ने ऐसा करना बंद कर दिया है. लेकिन यह दावा गलत निकला.

क्या आप जानते हैं कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज कैसे फैलती है? यह कैसे लोगों को प्रभावित करती है? कैसे यह मीडिया के पुराने माध्यमों के इतर दूसरे देशों तक पहुंच जाती है? और कैसे इसे ठीक किया जा सकता है?

जर्मनी के कोलोन शहर में काम कर रही एक कंपनी यूनीसेप्टर, मीडिया एनालिसिस की विशेषज्ञ है. कंपनी ने इसका विश्लेषण किया कि ट्रंप का गूगल वाला ट्वीट कैसे दुनिया भर में फैला. कंपनी के शोध प्रमुख वोल्फ डीटर रूल इस बात को लेकर बहुत उत्साहित हैं क्योंकि यह पहली बार है जब कोई राष्ट्रपति एक नियोजित तरीके से झूठी या भ्रामक सूचनाएं फैला रहा है. ट्रंप इसमें कितने सफल हैं और वे ऐसा क्यों करते हैं?

मीडिया एनालिस्ट वोल्फ डीटर रूल कहते हैं कि ट्रंप ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने झूठों के पकड़े जाने की चिंता नहीं है. रूल के अनुसार, "उनका असली लक्ष्य अपने समर्थकों तक बात पहुंचाना है जो उन पर भरोसा करते हैं." ट्रंप अपने समर्थकों की तादाद को और बढ़ाना चाहते हैं, जो उनसे किसी बात पर थोड़ा भी सहमत है उन्हें वे अपने समर्थकों में शामिल करना चाहते हैं. वे मीडिया के समांतर एक और मीडिया माध्यम खड़ा कर रहे हैं.

ट्रंप के समर्थकों को देखकर पता चलता है कि उनकी एक बड़ी ऑडियंस है. गूगल पर आरोप लगाने वाला उनका वीडियो करीब 47 लाख बार देखा गया. इसे 40 हजार से ज्यादा रिट्वीट और 1 लाख 8 हजार से ज्यादा लाइक्स मिले. वोल्फ डीटर रूल इस ट्वीट के बारे में कहते हैं, "फेक न्यूज तेजी से फैलती है और इसे ट्रंप के समर्थकों द्वारा तेजी से फैलाया जाता है." ऐसी फेक न्यूज की सच्चाई बताने वाला पहला मीडिया रिएक्शन अकसर जल्दी आ जाता है. लेकिन इस मामले में करीब डेढ़ घंटे बाद ऐसा हुआ.

बजफीड के एक पत्रकार ने ट्वीट किया कि 2017 में डॉनल्ड ट्रंप ने कोई भी स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण दिया ही नहीं था जैसा कि अकसर नए राष्ट्रपति देते हैं. उन्होंने पहला ऐसा भाषण 2018 में दिया था जिसका लिंक गूगल ने अपने होमपेज पर लगाया था. लेकिन इस ट्वीट को ट्रंप के ट्वीट जैसा समर्थन नहीं मिला. इस ट्वीट को बस तीन हजार के आसपास रिट्वीट मिले, झूठे ट्वीट से 12 गुना कम. मीडिया एनालिस्ट वोल्फ डीटर रूल कहते हैं कि यह एक सामान्य पैटर्न है. फेक न्यूज हमेशा सच्चाई से ज्यादा तेजी से फैलती है.

फेक न्यूज को फैलाने का काम अकसर मुख्यधारा की मीडिया भी करती है. ऐसा ही ट्रंप के ट्वीट के साथ हुआ. बहुत सी मीडिया कंपनियों ने  इस मुद्दे को बिना सच्चाई जाने छापना शुरू कर दिया. पहले अमेरिका में और फिर पूरी दुनिया में इसे छापा गया. ट्रंप ने सिर्फ एक झूठ बोलकर कम से कम प्रयास किए और ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया.

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