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समाज

पुलिस का मनोबल कमजोर न होने पाए

समीरात्मज मिश्र
२६ अगस्त २०१९

आम लोग उस व्यवस्था पर कैसे भरोसा करें, जिसमें उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली पुलिस ही सुरक्षित नहीं है.

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Indische Aktivistin Rehana Fathima
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

अपराधियों के साथ मुठभेड़ में या फिर कुछ अन्य परिस्थितियों में पुलिसवालों और पुलिस टीम पर हमला होना कोई नई बात नहीं है लेकिन यदि हमलावरों का महिमामंडन किया जाने लगे और पुलिसकर्मियों की पहचान करके उन पर हमले होने लगें तो यह स्थिति चिंताजनक हो जाती है.

पिछले साल बुलंदशहर हिंसा में मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या के अभियुक्तों की रिहाई पर उनके जोरदार स्वागत ने मीडिया में सुर्खियां बटोरीं तो वहीं गुजरात में एक पुलिस कांस्टेबल के साथ इस वजह से कुछ लोगों ने मारपीट की क्योंकि वे मुसलमान थे.

बुलंदशहर हिंसा के अभियुक्त जब जमानत पर जेल से बाहर आए तो उनके समर्थकों ने ‘जय श्री राम' और ‘वंदे मातरम' के नारों के बीच उनका स्वागत किया. छह अभियुक्तों को लोगों ने फूलों की माला पहनाई और उनके साथ एक-एक कर सेल्फी ली.

पिछले साल तीन दिसंबर को बुलंदशहर के स्याना इलाके में गोकशी की कथित अफवाह के बाद हिंसा भड़क गई थी. इस हिंसा में भीड़ ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस मामले ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं और इसमें हिन्दू संगठनों से जुड़े कई लोगों का नाम आया था.

लंबी जद्दोजहद के बाद पुलिस ने मामला दर्ज करके 38 लोगों को जेल भेजा था. इन्हीं में से छह लोग शनिवार को जमानत पर जेल से बाहर आए थे. कांग्रेस पार्टी ने कानून को हाथ में लेने वाले ऐसे लोगों के स्वागत पर सवाल उठाया है, हालांकि बीजेपी का कहना है कि यह लोगों की निजी पसंद और इच्छा है जिससे सरकार और पार्टी का कोई लेना-देना नहीं.

गुजरात में पुलिस कॉस्टेबल की पिटाई

वहीं दूसरी ओर, गुजरात के वडोदरा में एक पुलिस कांस्टेबल से मारपीट का मामला सामने आया है. पीड़ित पुलिस कांस्टेबल आरिफ इस्माइल शेख वडोदरा रूरल मुख्यालय में तैनात हैं. आरिफ जब ड्यूटी खत्म करके अपने घर लौट रहे थे, तभी उनकी स्थानीय लड़कों से कहासुनी हो गई और फिर चार लड़कों ने आरिफ शेख को जमकर पीटा.

आरिफ शेख ने बताया कि जब कुछ लड़कों ने उन पर हमला किया, उस समय वह सिविल ड्रेस में थे. उन्होंने एफआईआर में आरोप लगाया है कि उनके साथ मारपीट इसलिए की गई क्योंकि वह मुसलमान हैं.

न सिर्फ गुजरात और उत्तर प्रदेश बल्कि देश के दूसरे राज्यों से भी पुलिस वालों पर बढ़ रहे हमलों की खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं. सरकारी आंकड़ों की मानें तो देश भर में हर साल पुलिसकर्मियों पर हमले की सैकड़ों वारदातें होती हैं जिनमें कई पुलिसकर्मियों की मौत भी हो चुकी है. इसी साल जनवरी में उत्तर प्रदेश में ही भीड़ ने दो पुलिसकर्मियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी तो बिहार में भी पुलिसकर्मियों पर हमले होने की कई खबरें आईं.

सहारनपुर में एसएसपी पर निशाना

कुछ दिन पहले सहारनपुर में एसएसपी दफ्तर को ही कुछ लोगों ने घेर लिया था जिससे एसएसपी का परिवार दहशत में आ गया था. खुद एसएसपी बब्लू कुमार ने इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था कि उनकी पत्नी और बच्चे डर के मारे कई दिनों तक घर से बाहर नहीं निकले. बताया जाता है कि इसी वजह से बब्लू कुमार ने उस समय सहारनपुर से अपना ट्रांसफर करा लिया था.

दरअसल, एनकाउंटर में अपराधियों से पुलिस का आमना-सामना होता है तो उसमें पुलिसकर्मियों का चोटिल होना या फिर उनकी मौत हो जाना स्वाभाविक है लेकिन यदि भीड़ ही पुलिस पर हमला करने लगे या फिर थानों पर हमला होने लगे, आए दिन पुलिस वालों को भीड़ के हमले का शिकार होना पड़े या फिर आम लोगों से अपमानित होना पड़े तो यह पुलिस के मनोबल को भी प्रभावित करता है.

ऐसे मामलों में कई बार अभियुक्त सत्ता पक्ष से जुड़े होते हैं, हालांकि यह कोई जरूरी नहीं है. जहां तक बुलंदशहर हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या के अभियुक्तों का सवाल है तो उनमें से ज्यादातर हिन्दू संगठनों से जुड़े हुए थे. इसीलिए उनकी गिरफ्तारी में भी काफी समय लगा था. अब जबकि उनके जमानत पर छूटने के बाद उनका कथित तौर पर महिमा मंडन हो रहा है तो सवाल बीजेपी और सत्तारूढ़ पार्टी पर भी उठ रहे हैं.

लेकिन राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का साफतौर पर कहना है कि इससे सरकार का कोई लेना-देना नहीं है. केशव मौर्य कहते हैं, "राई का पहाड़ बनाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. अगर किसी आरोपी के समर्थक जेल से उसके बाहर आने पर स्वागत करते हैं तो इससे सरकार और बीजेपी का कुछ भी लेना-देना नहीं है. विपक्ष इस बात को बेवजह तूल न दे.”

लेकिन इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की पत्नी ने इस पर खासी नाराजगी जताई है और कहा है कि वह इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से करेंगी. ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आम लोग उस व्यवस्था पर कैसे भरोसा करें, जिसमें उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली पुलिस ही सुरक्षित नहीं है.

क्या कहते हैं अधिकारी

उत्तर प्रदेश में कई अहम पदों पर रहे अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय कहते हैं, ''कानून-व्यवस्था सही करने और सही रखने का दावा हर सरकार करती है लेकिन आजकल स्थिति यह हो गई है कि सरकारें पुलिस को हत्यारों का एक गिरोह बनाने का प्रयास कर रही हैं. उन्हें फर्जी एनकाउंटर के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और इससे पुलिस की छवि आम जनता में खलनायक की बनती जा रही है. दूसरे, सत्ता पक्ष से जुड़े लोग कई बार पुलिस पर हावी होने की कोशिश करते हैं. लेकिन यदि उन्हें सरकार से समर्थन न मिले तो ऐसी स्थितियां नहीं आने पाएंगी."

वहीं वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं से लोगों का विश्वास वैसे ही सिस्टम से उठता जा रहा है लेकिन जब पुलिस वालों की भी लिंचिंग हो रही हो तो स्थिति और भयावह हो जाती है, "पुलिस पर हमले पिछली सरकारों में भी हुए हैं लेकिन इस सरकार में अन्य लोगों की तरह पुलिस वालों को भी कई बदलाव की उम्मीद थी लेकिन उन्हें कोई बदलाव दिख नहीं रहा."

हालांकि सरकार ऐसी घटनाओं के बाद सख्ती दिखाती जरूर है लेकिन जब कुछ घटनाओं में सरकार समर्थित लोगों का नाम आता है तो वह भी पीछे हो जाती है. यही नहीं, कुछ नेताओं के खिलाफ मुकदमों को वापस लेने की प्रवृत्ति को भी पुलिस का मनोबल तोड़ने वाली कार्रवाई बताया जा रहा है.

पुलिस की कार्यशैली चिंताजनक

विशेषज्ञ पुलिस की कार्यशैली पर ज्यादा सरकारी हस्तक्षेप को बहुत ही चिंताजनक और भविष्य में ‘खतरनाक परिणाम वाला' बताते हैं. वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि ऐसी स्थितियां पुलिस को सरकार के खिलाफ जाने को भी प्रोत्साहित कर सकती हैं. पिछले दिनों लखनऊ में विवेक त्रिपाठी हत्याकांड में पुलिस वालों की गिरफ्तारी और फिर पुलिस वालों की कथित बगावत को शरद प्रधान उदाहरण के तौर पर रखते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि ऐसी घटनाओं में सरकार को जितनी कठोरता से कार्रवाई करनी चाहिए, वह नहीं कर रही है. उनके मुताबिक, कार्रवाई में ढिलाई के पीछे वजह चाहे जो हो, लेकिन इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं. हालांकि कुछ लोग इसके पीछे कथित तौर पर पुलिस के राजनीतिकरण और खुद पुलिसवालों के राजनीतिक गुटबाजी में बंटने को भी जिम्मेदार मानते हैं.

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