जर्मनी के लिए सिरदर्द बन गई है कामगारों की कमी
२८ फ़रवरी २०२४बीते कई वर्षों से जर्मनी की अर्थव्यवस्था कुशल कामगारों की कमी से जूझ रही है. शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र है, जहां बड़ी संख्या में लोगों की कमी ना हो. पिछले कुछ वर्षों से तो यह कमी लगातार बढ़ती जा रही है.
इस मामले पर चर्चा के लिए 26 फरवरी को बर्लिन में सरकार की ओर से एक सभा बुलाई गई. उद्योग, कई संगठनों और समाज के कई वर्गों के 700 से ज्यादा प्रतिनिधियों की इस सभा में जर्मनी के श्रम मंत्री हुबर्टस हाइल भी शामिल हुए. उन्होंने चेतावनी के स्वर में कहा, "अगर हम कामगारों की कमी की समस्या का समाधान तुरंत नहीं करेंगे, तो यह जर्मनी के विकास की राह में प्रमुख बाधा बन जाएगी."
विदेशों से कामगारों को जर्मन गांवों में बुलाने की चुनौती
इसी सम्मेलन में जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने कहा, "वो सारे लोग, जो देश में काम करना चाहते हैं उन्हें काम देने और ट्रेनिंग में रखने" की जरूरत बढ़ती जा रही है. उनका कहना है, "लंबे समय में यह निर्णायक सवाल होगा कि क्या जर्मनी विकास करेगा और क्या देश की समृद्धि बढ़ेगी या फिर इसकी मौजूदा स्थिति भी बनी रह सकेगी."
कामगारों की समस्या
जर्मनी में लाखों नौकरियों और प्रशिक्षणों की जगहें खाली पड़ी हैं और उन्हें भरने के लिए पर्याप्त लोग नहीं मिल रहे हैं. हाबेक ने तो यहां तक कहा, "अगर आप यह ना देख सकें कि यह संख्या भविष्य में और बढ़ेगी, तो आपको अंधा होना पड़ेगा." श्रम मंत्री हुबर्टस हाइल ने ऊर्जा की आपूर्ति में स्थिरता, बेहतर योजना और कुशल कामगारों का आधार सुरक्षित बनाने को जर्मन अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी कदम बताया. हाइल का कहना है "देश वास्तव में मजबूत है, लेकिन हमें सुधार की जरूरत है." हाइल ने माना है कि जर्मनी "समय के विपरीत काम कर रहा था."
पढ़ाई पूरी नहीं कर रहे हैं छात्र
इसी सम्मेलन में श्रम मंत्री ने इंस्टिट्यूट ऑफ एंप्लॉयमेंट रिसर्च की एक रिपोर्ट का हवाला देकर बताया कि 20 से 29 साल की उम्र के 16 लाख लोगों को कोई शुरुआती वोकेशनल ट्रेनिंग नहीं मिली. शिक्षा मंत्री बेटीना स्टार वाट्सिंगर ने बताया कि हर साल 45,000 से ज्यादा लोग पढ़ाई पूरी किए बगैर स्कूल छोड़ दे रहे हैं.
कामगारों की कमी से निबटने के लिए जर्मनी ने खोले दरवाजे
दूसरी तरफ सम्मेलन में आए युवाओं ने स्कूलों में पर्याप्त वोकेशनल ट्रेनिंग नहीं होने की शिकायत की. इसके साथ ही उनका यह भी कहना था कि अप्रेंटिसशिप या फिर वोकेशनल ट्रेनिंग को अब भी जर्मनी में यूनिवर्सिटी की पढ़ाई की तुलना में कमतर माना जाता है.
श्रम मंत्री ने समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में कहा कि कुशल कामगारों की मौजूदगी सुनिश्चित करने से ही समृद्धि सुरक्षित होगी. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल हमेशा से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं, लेकिन जर्मनी को और ज्यादा लोगों की जरूरत है. श्रम मंत्री के मुताबिक, फिलहाल जर्मनी में कामगारों की संख्या 4.6 करोड़ है. सरकार का कहना है कि जर्मनी कुशल कामगारों को काम पर रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है.
अर्थव्यवस्था की मुश्किल
इस बीच यह भी खबर आई है कि मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए कई कंपनियों ने कहा है कि वो कम लोगों को नौकरी पर रखने की योजना बना रहे हैं. आर्थिक संस्था 'द आईएफओ इंस्टिट्यूट' ने बताया कि उसका एंप्लॉयमेंट बैरोमीटर पिछले तीन साल में गिर कर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यह फरवरी में 94.9 पर आ गया. इससे पहले जनवरी में यह 95.5 और दिसंबर में 96.5 था. इंस्टिट्यूट के सर्वे डायरेक्टर क्लाउस वोलराबे का कहना है, "अर्थव्यवस्था इतनी ठहरी हुई है कि कंपनियां नई नियुक्तियों को रोक रही हैं. यहां तक कि लोगों को काम से हटाए जाने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता."
म्युनिख की यह संस्था हर महीने 9,500 कंपनियों का सर्वे करती है. इसमें औद्योगिक, निर्माण, रिटेल और सेवा क्षेत्र की कंपनियां हैं. उनसे अगले तीन महीने की योजना के बारे में पूछा जाता है. इससे पहले यह बैरोमीटर इतना नीचे कोरोना वायरस की महामारी के समय फरवरी 2021 में गया था.
एक तरफ कामगारों की कमी है, दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार. ऐसे में कंपनियां कम लोगों के साथ ही अपना काम चलाने की फिराक में हैं. हालांकि आईटी और कंसल्टेंट में नौकरी के लिए लोगों की मांग पर्याप्त रूप से तेज है.
एनआर/एसएम (डीपीए)