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जर्मनी में ऐसी बरसात पहले नहीं हुई

DW Mitarbeiterportrait | Mahesh Jha
महेश झा
१६ जुलाई २०२१

जर्मनी में अचानक हुई भारी बरसात के नतीजे सामने आए तो पता चला वह आम बारिश नहीं, एक आपदा थी. बहुत से घर गिरे, गाड़ियां कीचड़ में डूबीं और दर्जनों की मौत हो गई. आखिर हुआ क्या?

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Deutschland Unwetter Schäden | Rheinland-Pfalz
तस्वीर: Abdulhamid Hosbas/AA/picture alliance

मैं सालों से जर्मनी में रह रहा हूं, लेकिन बहुत कम ऐसी बरसात देखी और एक बरसात से हुआ ऐसा नुकसान तो मुझे याद ही नहीं है. जर्मनी के जो दो राज्य बरसात और उसके बाद आई बाढ़ से प्रभावित हैं, वे पहाड़ी इलाके हैं. वहां खेत हैं, जंगल हैं, छोटे छोटे पहाड़ी नाले हैं और नदियां हैं. पहाड़ी इलाकों में जब तेज बरसात होती है तो पानी तेजी से नीचे की ओर जाता है और अक्सर अपने साथ मिट्टी भी काटता जाता है.

ऐसी ही बरसात बुधवार को हुई. पहले तेज हवाओं की आहट, फिर हल्की हल्की बरसात और फिर तड़तड़ाती बारिश. और कुछ देर में ऊपर से नीचे आते पानी की रफ्तार बढ़ने लगी. छोटी धारा हो, नाला या नदी, सबसे पानी बढ़ने लगा और कुछ देर के बाद पानी सैलाब बन किनारे को भरने लगा और फिर घरों में घुसने लगा. बेसमेंट डूब गए, वहां आम तौर पर रहने वाली हीटिंग की मशीनें और स्टोर का सामान भी. कई जगहों पर इस पानी में बिजली का करंट भी था. अधिकारियों ने ये चेतावनी देनी शुरू की कि वाशिंग मशीन में कपड़े न धोएं. सीवर में बाढ़ का मटमैला पानी भरा था, चेतावनी में यह भी कहा गया कि घर में अगर पानी भरा है, तो उसमें न दाखिल न हों, बिजली का करंट हो सकता है.

हुआ एक अलग तरह का अनुभव

और मुझे याद आ रहा था अपना बचपन. कितना खेला करते थे हम बरसात में और बरसात के पानी में. स्कूल का मैदान तो अकसर बरसात में भर जाया करता था. कभी चिंता नहीं की कि उस पानी में न जाएं. बिजली उस जमाने में हर जगह हुआ ही नहीं करती थी, इसलिए करंट की चिंता करने की जरूरत नहीं थी. लेकिन फिर भी बरसात की सोच मेरे लिए इतनी खौफनाक कभी नहीं रही, जितनी पिछले दो दिन की घटनाओं को सुनने के बाद हो गई है.

Deutschland Schäden nach Starkregen in Essen
एसेन में नदी का पानी ऐसे हिल्कोरें मार रहा था तस्वीर: Jochen Tack/dpa/picture alliance

पटना में पढ़ाई के दौरान अक्सर गंगा में पानी को बढ़ते, चढ़ते और उफनते देखा था. जर्मनी में गंगा जैसी कोई नदी नहीं. यहां की सबसे बड़ी नदी राइन है जो बॉन से होकर बहती है और आपने हमारे वीडियो में उसे अक्सर देखा भी होगा. बुधवार की बरसात के बाद तो हमेशा शांत रहने वाली नदियों का नजारा ही कुछ और था. बारिश से आने वाली मिट्टी की वजह से मटमैला रंग बिल्कुल जुलाई अगस्त की गंगा नदी के पानी जैसा और तेज बरसात के कारण बदहवासी और उत्श्रृंखलता कोसी जैसी.

चूंकि जर्मनी में आम तौर पर ऐसी बरसात नहीं होती, इसलिए पहाड़ों पर घर बने हैं. जहां मोहल्ले बसे हैं, वहां तो पानी की निकासी का इंतजाम है, लेकिन निचले इलाकों में बसे घरों को खतरा तो रहता ही है. देहाती इलाकों में जहां छोटी छोटी बस्तियां हैं, वहां पानी की निकासी का पुख्ता इंतजाम नहीं. इसीलिए जब बुधवार की रात बरसात हुई तो नीचे की ओर जाते हुए पानी ने सारे बंधन तोड़ दिए. तेज पानी ने सड़कों को तोड़ दिया और उसके साथ आए कीचड़ ने बहुत से रास्तों को बंद भी कर दिया. बरसात ने क्या किया इसका पता बहुत से लोगों को गुरुवार सुबह चला. कुछ इलाकों में तो 24 घंटे में प्रति वर्गमीटर 158 लीटर पानी बरसा. अब संभालिए इस पानी को.

Deutschland Unwetter Schäden | Rheinland-Pfalz
नदी में पानी इतना बढ़ा कि पुल भी टूट गयातस्वीर: Abdulhamid Hosbas/AA/picture alliance

बहुत से शहर डूब गए, कई शहरों में मकानों के बेसमेंट में पानी भर गया. कुछ मौतें तो मकान के जमीन के नीचे वाले माले में भरे पानी में बिजली के करंट से हुईं. कई घर गिर गए. बहुत से लोग लापता भी हैं. जर्मनी में इस समय स्कूलों में छुट्टियां चल रही हैं, बहुत से लोग छुट्टी पर निकले हुए हैं. इसलिए राहतकर्मी ये पता करने में लगे हैं कि लापता लोग बाढ़ का शिकार हुए हैं या कहीं और छुट्टियां बिता रहे हैं. सबके बारे में पता चलने में समय लगेगा. तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी और उसके साथ एक अजीब तरह का अहसास भी.

आपदा तो आपदा है, भले ही मदद मिले

लोग सकते में हैं. जो लोग बाढ़ से सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं, वे तो परेशान हैं ही, जो लोग सीधे प्रभावित नहीं हुए हैं, वे भी ये सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसा हुआ क्यों? सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं लोगों की मदद करने में लगी हैं. पुलिस और फायर ब्रिगेड तो हैं ही फौरी मदद के लिए, जर्मनी में तैराकों की संस्था जर्मन जीवन रक्षा संघ के सदस्य भी मदद कर रहे हैं. लोगों को अपना घर छोड़कर इमरजेंसी शेल्टर में रहना पड़ रहा है. बहुत से लोगों को पता नहीं कि उनके घर की क्या हालत है और वे वहां कब लौट पाएंगे. असुरक्षा और अनिश्चितता का माहौल लोगों का चैन छीन रहा है.

Weltspiegel | Liege, Belgien | Schwere Überschwemmungen nach Unwetter
गलियों में भरा पानीतस्वीर: Bruno Fathy/Belga/AFP/Getty Images

दुनिया में हर जगह मौसम का मिजाज बदल रहा है. जर्मनी में भी पिछले सालों में तेज बरसात होने लगी है या अचानक तूफान आने लगा है. लोग भी इस पर बंटे हुए हैं. पर्यावरण की चिंता करने वालों का मानना है कि इसका बहुत कुछ जलवायु परिवर्तन से लेना देना है. ग्लोबल वार्मिंग का असर मौसम चक्र पर भी हो रहा है. जिन लोगों को पुरानी बातें याद रहती हैं, वे कहेंगे कि ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं. घटनाओं की याद उसके आयाम और उससे पड़े प्रभाव से जुड़ी होती है. हर घटना का असर एक जैसा नहीं होता इसलिए उसकी छाप भी अलग होती है. लेकिन ये तय है कि तूफान या अचानक तेज बरसात जैसी घटनाएं अक्सर होने लगी हैं.

जलवायु परिवर्तन को रोकना जरूरी

हर कोई पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को रोकने की बात कर रहा है, लेकिन अगर आसपास देखिए और पूछिए कि उसके लिए हो कितना कुछ रहा है तो पता लगेगा कि शायद कुछ भी नहीं. हम अपनी जिंदगी जिए जा रहे हैं और लगातार उसे आसान बनाने में लगे हैं, दूसरों की कीमत पर, भले ही उसका नाम पर्यावरण क्यों न हो. जर्मनी में कहर बरपाने वाला लो प्रेशर एरिया बैर्न्ड था. वह काफी समय तक एक ही इलाके में जमा हुआ था.

Unwetter in Schuld I Rheinland-Pfalz
बहुत से पुराने घर टूट गएतस्वीर: Boris Roessler/dpa/picture alliance

मौसमविज्ञानी ठीक से बताएंगे कि हाई और लो प्रेशर एरिया को पश्चिम से पूरब की ओर ले जाने वाली जेट स्ट्रीम लगातार कमजोर क्यों होती जा रही है. लेकिन ये हकीकत है. धरती के उत्तर और दक्षिणी हिस्से के तापमान की अंतर लगातार कम होता जा रहा है, और यही जेट स्ट्रीम को हवा देता रहा है. जेट स्ट्रीम कमजोर होगी और ये लो प्रेशर वाले बैर्न्ड को खदेड़ नहीं पाएगी तो उस जगह पर बरसात होगी और तेज बरसात के झटके लंबे समय तक होने वाली बरसात में बदल जाएंगे.

अब समय आ गया है कि जल्द से जल्द धरती को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम करने के कदम उठाए जाएं. सरकारें सालों से गपशप और विचार विमर्श करने में लगी हैं और अपने अपने फायदे की सोच रही हैं. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग ग्लोबल है, वह सिर्फ एक इलाके को गर्म नहीं कर रही है. सरकारों पर भी अब दबाव बनाने की जरूरत है. विकास के नाम पर पर्यावरण की चिंता नहीं की जाती, लेकिन उस विकास का क्या जिसके बाद इंसान ही न रहे. सरकारों को अपना काम करने दीजिए, हमें अपना काम करना चाहिए. यानि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का काम.

DW Mitarbeiterportrait | Mahesh Jha
महेश झा सीनियर एडिटर