सपने सच होने जैसा है जर्मनी में किफायती घर मिलना
२२ अप्रैल २०२४आमिर श्राफ (बदला हुआ नाम) की मुसीबत 24 दिसंबर, 2022 से शुरू हुई. मूल रूप से अफगानिस्तान के रहने वाले श्राफ सिंगल फादर हैं. वे 16 साल से अधिक समय से जर्मनी में रह रहे हैं. 24 दिसंबर को उन्हें बॉन शहर के पास स्थित उनके किराये के मकान को खाली करने का नोटिस मिला, क्योंकि मकान मालिक खुद यहां रहने की योजना बना रहे थे. इसके बाद वही हुआ जो जर्मनी में इस समय लाखों लोगों के साथ हो रहा है, रहने के लिए किफायती जगह ढूंढने के लिए महीनों की मशक्कत.
जर्मनी में घर ढूंढना काफी मुश्किल हो गया है. दर्जनों ईमेल का जवाब नहीं मिलता, सैकड़ों लोग एक ही फ्लैट के लिए आवेदन करते हैं और उसे देखने के लिए भी लंबी लाइन लगानी पड़ती है. अगर आप इतने भाग्यशाली हैं कि आपको घर देखने के लिए बुला लिया जाता है, फिर भी घर मिलने की गारंटी नहीं है. आखिर में वही जवाब मिलता है, "माफ कीजिए, हमने यह घर किसी और को दे दिया है!”
घरों का संकट दूर करने के लिए जर्मनी की नई योजना
श्राफ ने अपने घर की लीज खत्म किए जाने के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जर्मनी में घर की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.”
आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि जर्मनी में हाउसिंग मार्केट की स्थिति वास्तव में कितनी गंभीर है. यहां आठ लाख से ज्यादा घरों की कमी है. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. संघीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, 95 लाख से अधिक लोग बहुत ही छोटी जगहों में तंगहाल स्थिति में रहने को मजबूर हैं. इनमें ज्यादातर सिंगल पैरेंट और उनके बच्चे शामिल हैं.
हर साल चार लाख नए अपार्टमेंट का लक्ष्य
उच्च ब्याज दरों और निर्माण में आने वाली लागत की वजह से जर्मन सरकार सरकारी सब्सिडी वाले एक लाख घर सहित हर साल चार लाख नए घर बनाने के अपने लक्ष्य से काफी दूर है.इफो इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार, 2023 में लगभग 245,000 अपार्टमेंट बनाए गए थे. इस साल सिर्फ 210,000 अपार्टमेंट बनाए गए हैं.
जर्मनी में घरों की संख्या कम होने और मांग काफी ज्यादा होने की वजह से किराया भी आसमान छू रहा है. इस वजह से लोग काफी ज्यादा हताश और परेशान हो रहे हैं. श्राफ जैसे ज्यादा से ज्यादा लोग जर्मन किरायेदार एसोसिएशन डॉयचेन मीटरबुंड जैसे संगठनों की ओर रुख कर रहे हैं, जो किराएदारों के पक्ष में अभियान चलाते हैं.
डॉयचेन मीटरबुंड बॉन/राइन-सीग/आहर के प्रबंध निदेशक पीटर कोक्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "ड्यूसेलडोर्फ, कोलोन और बॉन जैसे बड़े शहरों में लगभग 50 फीसदी लोगों को उनकी आय के आधार पर सब्सिडी वाले आवास मिलने चाहिए. इन दिनों ना सिर्फ सरकारी मदद पाने वाले, बल्कि सामान्य लोग भी हमारे पास मदद के लिए आ रहे हैं.”
जर्मनी में घरों की किल्लत से बहुत परेशान हैं विदेशी छात्र
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स का कहना है कि जर्मनी में आवास सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है. इससे सिंगल पैरेंट के साथ-साथ बेरोजगार लोग, छात्र, शरणार्थी और मध्यम वर्ग के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं. यह स्थिति काफी चिंताजनक होती जा रही है.
कॉक्स का कहना है कि उनके संगठन में शामिल सदस्यों की संख्या करीब 25,000 तक पहुंच गई है, जो अब तक की सबसे ज्यादा संख्या है. हर दिन उनके संगठन में लोग शामिल हो रहे हैं. वह आगे कहते हैं, "लोग काफी ज्यादा हताश हो रहे हैं. हाल के वर्षों में हमने देखा कि हमारे पास हर तरह के लोग मदद के लिए आ रहे हैं. कुछ ऐसे लोग हैं जिनको अचानक से कोई बड़ी दिक्कत आ गई है. वहीं, कुछ ऐसे लोग भी मदद मांगने आए हैं जो बिजली का बिल नहीं भर पा रहे हैं.”
कॉक्स आगे बताते हैं, "कुछ ऐसे भी सदस्य घर की तलाश के लिए मदद मांगने आ रहे हैं जो पिछले कई वर्षों से उनके संपर्क में नहीं थे. इसकी वजह यह है कि उनके मकान मालिक उनसे छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे अपने अपार्टमेंट को फिर से ज्यादा किराये पर दे सकें.”
तमाम जद्दोजहद के बावजूद कुछ लोगों को घर नहीं मिल पा रहा है. कॉक्स के मुताबिक, ऐसे लोग किसी खुली जगह पर डेरा डालने को मजबूर हैं. कुछ लोग कभी किसी एक दोस्त के पास रहते हैं, तो कभी दूसरे दोस्त के पास चले जाते हैं या सार्वजनिक आश्रय गृहों में रात बिताते हैं.
बॉन में जर्मन किराएदार एसोसिएशन के प्रबंध निदेशक कॉक्स का अनुमान है कि उनके इलाके में अभी भी 3,500 लोग बेघर हैं. कुछ साल पहले की तुलना में यह आंकड़ा 10 गुना अधिक है.
वह कहते हैं, "अगले 20 वर्षों में करीब 30,000 लोगों के बॉन आने की संभावना है. इसलिए, हमें 15,000 मकान की जरूरत होगी. अगर हम मान लें कि बेहतर हाउसिंग मार्केट में 12 से 14 फीसदी फ्लैट सरकारी सब्सिडी और नियंत्रित किराये वाले होने चाहिए, तो 15 हजार में से 10 हजार घर सरकारी सब्सिडी वाले होने चाहिए.”
किराएदारों का देश है जर्मनी
जर्मनी किराएदारों का देश है और इस मामले में यह यूरोप में अब तक सबसे आगे है. यहां आधी से अधिक आबादी के पास अपना घर नहीं है. यह यूरोपीय संघ का एकमात्र ऐसा देश है जहां मकान मालिकों की तुलना में किरायेदार अधिक हैं.
हालांकि, जर्मनी अब अपनी पिछली राजनीतिक गलतियों की बड़ी कीमत चुका रहा है. संघीय सरकार ने निजी निवेशकों को हजारों अपार्टमेंट बेच दिए. दूसरी तरफ उसी समय स्थानीय सरकारों ने सरकारी सब्सिडी वाले घरों के निर्माण को काफी कम कर दिया.
आवास नीति के विशेषज्ञ माथियास बर्न्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे पास सरकारी सब्सिडी वाले 40 लाख और किराये वाले 1.5 करोड़ घर हुआ करते थे यानी करीब 1:4 का अनुपात था. आज हमारे पास सरकारी सब्सिडी वाले 10 लाख और किराये वाले 2.1 करोड़ घर हैं. इसका मतलब है 1:21 का अनुपात हो गया है. सामान्य शब्दों में कहें, तो अगर आपको मौजूदा दौर में सरकारी सब्सिडी वाला घर मिल जाता है, तो समझो आपने कोई लॉटरी जीत ली है.”
बर्न्ट लाइबनिज इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन सोसाइटी एंड स्पेस में ‘राजनीति और योजना' के कार्यवाहक प्रमुख हैं. उन्होंने बताया कि बड़े शहरों और विश्वविद्यालय वाले इलाकों में घरों की समस्या काफी ज्यादा बढ़ गई है. उदाहरण के लिए, राजधानी बर्लिन में सबसे ज्यादा एयरबीएनबी (Airbnb) अपार्टमेंट हैं. साथ ही, घरों के किराए भी करीब दोगुने हो गए हैं.
किराए को नियंत्रित करने से जुड़े कानून में खामियां
जर्मन सरकार इन समस्याओं से निपटने के लिए काफी प्रयास कर रही है. उसने किराये में बढ़ोतरी पर रोक को 2029 तक के लिए बढ़ा दिया है. इसका मतलब यह है कि जब नई लीज पर साइन किया जाता है, तो नया किराया उस क्षेत्र की मौजूदा लीज की तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. हालांकि, नई इमारतों और थोड़े-बहुत फर्निश्ड अपार्टमेंट को इस दायरे से बाहर रखा गया है.
बर्न्ट कहते हैं, "ये अपवाद एक तरह से कानूनी खामियां हैं जिन्हें तत्काल दूर करने की जरूरत है. मुझे लगता है कि फिलहाल हमें किराए के मकानों के बाजार को ज्यादा नियमित करने की जरूरत है. उदाहरण के लिए, बर्लिन में आधे फ्लैट इस तरीके का इस्तेमाल करके फर्निश्ड फ्लैट के तौर पर किराये पर दिए जा रहे हैं. मकान मालिक किराए की सीमा को पार करने के लिए सिर्फ एक टेबल और अलमारी रख देते हैं और काफी ज्यादा किराया मांगते हैं.”
बर्लिन में आवास निर्माण दिवस पर इस उद्योग से जुड़े संघों ने भी चेतावनी दी. उन्होंने आवास निर्माण के कमजोर होते सेक्टर को मजबूत करने के लिए हर साल 23 अरब यूरो की रकम देने की मांग की. साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि अगर आवास निर्माण का संकट ज्यादा गंभीर होगा, तो यह पूरी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है.
दूसरा बड़ा तर्क यह है कि अगर विदेशों से आने वाले कुशल श्रमिकों को किफायती आवास नहीं मिलेगा, तो वे नहीं आएंगे. वहीं, अगर संघीय सरकार हर साल चार लाख नए घर बनाने के अपने वादे को पूरा करने में सफल नहीं हो पाती है, तो मतदाताओं का रुझान कट्टरपंथी राजनीतिक दलों की ओर बढ़ सकता है.
हालांकि, जर्मनी के अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हाबेक और आवास मंत्री क्लारा गेवित्स अपने रुख पर अड़े हुए हैं. साथ ही, उन्होंने और सब्सिडी देने से इनकार कर दिया है.
आवास नीति विशेषज्ञ बर्न्ट इस मामले में अन्य देशों की नीतियों और उनकी योजनाओं से सीख लेने की सलाह देते हैं. उन्होंने कहा, "सिर्फ निर्माण की रणनीति काम नहीं करेगी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निर्माण कम खर्चीला और लंबे समय तक किफायती रहे. ऑस्ट्रिया या स्विट्जरलैंड में भी किराए का बाजार बड़ा है, लेकिन वहां ऐसे मॉडल हैं जिनका इस्तेमाल करके लंबे समय के लिए किफायती मकान उपलब्ध कराए जा सकते हैं. विएना इसका बेहतरीन उदाहरण है. यहां लगभग आधे फ्लैट शहर के स्वामित्व में हैं.”