जर्मनी में विदेशी मानसिक रोगियों के लिए खास केंद्र
११ मई २०११बीमारियों के बारे में मरीजों की समझ अलग होती है और कई बार वे डॉक्टरों को सच नहीं बताते. कई अस्पतालों में इसलिए खास विभाग बनाए गए हैं ताकि दूसरे देशों और संस्कृतियों से आ रहे लोगों का खास ध्यान रखा जा सके.
एक महिला इराक से आईं और पिछले 30 साल से जर्मनी में रह रही हैं. उन्हें माइग्रेन यानी कई दिनों तक चलने वाले सरदर्द की परेशानी है. वह बताती हैं, "50 साल से मुझे माइग्रेन है. यह बहुत ही बुरा है...हर दिन मुझे दर्द होता है."
कैसे समझाएं बीमारी
लगभग 60 साल की यह महिला अपनी बीमारी को शब्दों में सही तरह से जाहिर नहीं कर सकती. उन्हें डिप्रेशन भी हो गया है. वह कहती हैं, "जब मैं टीवी में अपने देश के बारे में कुछ देखती हूं तो मुझे दो तीन रातों तक नींद नहीं आती. और मैं इंतजार करती हूं. पता नहीं किस चीज का, लेकिन मैं इंतजार करती रहती हूं. इराक में कुछ होता है तो मुझे सरदर्द हो जाता है."
जिस तरह से यह महिला अपनी बीमारी के लक्षण बता रही थीं, उससे डॉक्टरों को बीमारी का पता लगाने में काफी परेशानी हुई. लेकिन फिर बॉन के इंटरकल्चरल ऐंबुलेंस में उन्हें मदद मिली. बॉन के एक बड़े क्लीनिक में काम कर रहे डॉ. गेलास हाबाश कहते हैं कि जो व्यक्ति जर्मनी में पैदा नहीं हुआ है, वह अपने मानसिक तनाव को दूसरे तरीके से जाहिर करेगा.
केंद्र में मदद
हाबाश खुद उत्तर इराक के हैं. उनके मुताबिक अरब देशों में मानसिक बीमारी वैसे भी काफी शर्मनाक मानी जाती है. वह कहते हैं, "मिसाल के तौर पर डिप्रेशन कहें तो इनमें से कई लोगों को समझ में नहीं आएगा. मानसिक तनाव के बारे में पूछने पर वे शारीरिक परेशानियों के बारे में बोलने लगते हैं. वे सिर दर्द कहेंगे, पेट दर्द या पीठ दर्द कहेंगे."
करीब नौ साल से बॉन में इंटरकल्चरल ऐंबुलेंस यानी एक तरह का केंद्र काम कर रहा है, जहां विदेशों से आए कई लोग अपनी मानसिक स्थिति मनोवैज्ञानिकों को आसानी से कह सकते हैं. डॉ हाबाश कुर्दी, अरबी और रूसी भाषा बोल रहे मरीजों के साथ बात कर सकते हैं. इस तरह मरीज अपनी भाषा में अपनी समस्या बताकर सही इलाज तक पहुंच सकते हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी
संपादनः वी कुमार