जर्मनी: लॉकडाउन में ढील, लगा साइकिलों का जाम
१३ मई २०२०कोरोना वायरस ने दुनिया भर में दहशत पैदा कर दी है. अब कुछ हफ्ते बीतने के बाद उहापोह का माहौल है. लोग सुरक्षित भी रहना चाहते हैं और घर से बाहर भी निकलना चाहते हैं. लॉकडाउन में जैसे जैसे ढील दी जा रही है, दफ्तर भी खुलने लगे हैं. दफ्तरों के खुलने से सड़कों पर कारों की और सार्वजनिक परिवहन में लोगों की भीड़ होने लगी है. लॉकडाउन के हफ्तों में बस, ट्राम और ट्रेन एकदम खाली दिखाई देते थे, तो अब उनमें सफर करने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है. जर्मनी में भी सामाजिक दूरी और मुंह और नाक को मास्क से ढकने का नियम है. बसों और ट्रामों में डेढ़ मीटर की सामाजिक दूरी बनाना आसान नहीं. ऐसे में बहुत से लोग सफर के लिए साइकिल का सहारा ले रहे हैं. म्यूनिख हो या बर्लिन, बॉन हो या आखेन, चौराहों पर जाम लगने लगे हैं.
गर्मी के मौसम में लोग यूं भी साइकिलों का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं. दफ्तर आने जाने के लिए न सही, तो शनिवार रविवार को छुट्टी के दिनों घर से बाहर सैर के लिए निकलने के लिए. मस्ती की मस्ती और कसरत भी. बरसात हो रही हो तो मुश्किल होती है, वरना गर्मियों में साइकिल जैसी सवारी कहां मिलेगी. कोरोना ने लोगों को बहुत परेशान किया है लेकिन अच्छे मौसम की सौगात भी दी है. जब से वायरस को रोकने के लिए दुकान, रेस्तरां, थिएटर और म्यूजियम बंद हुए हैं, सड़कें सूनी हो गई हैं. जब बाहर कुछ हो ही न रहा हो, तो बाहर निकल कर क्या फायदा.
साइकिल के दीवाने
जब गैर जरूरी दफ्तर और स्कूल कॉलेज बंद हुए तो लोगों का बाहर निकलना भी बंद हो गया. जब कई दफ्तरों ने वर्क फ्रॉम होम शुरू किया तो और भी कम लोगों को घर से बाहर निकलने की जरूरत रही. तीन लोगों से ज्यादा के बाहर मिलने पर रोक के बाद तो वह आकर्षण भी जाता रहा. लेकिन व्यायाम के लिए और खरीदारी के लिए घर से बाहर निकलना संभव था. खाने पीने और दवा की दुकानें खुली थीं. यहां लोगों ने साइकिल का इस्तेमाल शुरू किया और अब जब दफ्तर खुल गए हैं बहुत से लोग साइकिल से ही दफ्तर भी आ रहे हैं. जर्मनी के लोग साइकिल कितने दीवाने हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि आठ करोड़ की आबादी वाले देश में साढ़े सात करोड़ साइकिलें हैं.
भले ही तेज स्पीड वाली सड़कों पर साइकिल चलाते लोग कार वालों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हों, लेकिन सड़कों का बंटवारा फिर से हो रहा है. जर्मनी के 16 राज्यों में नॉर्थराइन वेस्टफेलिया और ब्रांडेनबुर्ग ऐसे राज्य हैं जहां सबसे ज्यादा साइकिल की लेन हैं. लोगों के पैदल चलने के लिए पर्याप्त फुटपाथ भी है. फिर भी सड़कों को देखकर अक्सर लगता है कि इस्तेमाल करने वालों के बीच उसका बंटवारा बराबरी वाला नहीं है.
हालांकि पिछले सालों में बहुत कुछ हुआ है. शहरों के बाहर भी साइकिल की लेनें बनी हैं ताकि एक गांव से दूसरे गांव या एक शहर से दूसरे शहर साइकिल से जाने वाले लोगों को कार वाली सड़क का सहारा न लेना पड़े और खुद को जोखिम में न डालना पड़े. शहरों के अंदर भी साइकिल चलाने वालों के लिए अलग लेन बन रही है, मोटरगाड़ी की लेनों में कमी की जा रही है. इसका एक मकसद शहरों के बीच से कारों को कम करना और इस तरह से पर्यावरण पर कार्बन डाय ऑक्साइड का दबाव भी कम करना है. जर्मनी का टूरिस्ट साइकिल नेटवर्क 75,000 किलोमीटर लंबा है.
साइकिल के फायदे
खासकर चौराहे साइकिल चलाने वालों के लिए बहुत खतरनाक रहे हैं. चौराहे, जहां गाड़ियां आती जाती हैं, लोग सड़क क्रॉस करते हैं और उस पर साइकिल वाले. अब रास्तों को गाड़ी, साइकिल और पैदल चलने वालों के बीच उचित तरीके से बंटने की कोशिश हो रही है. और जैसे जैसे सड़कें पैदल चलने वालों और साइकिल चलाने वालों के लिए सुरक्षित हो रही हैं, उनका इस्तेमाल भी बढ़ रहा है.
अब कोरोना ने साइकिल चलाने वालों की संख्या में और इजाफा किया. जिन जिन लोगों के घर में साइकिलें थी, उन्होंने उसे निकाल कर साफ कर लिया है और उसे चला रहे हैं. घर में बैठे बैठे बहुत से लोगों को कसरत करने या कोई भी शारीरिक हलचल करने का मौका नहीं मिल रहा था. दिन भर का रूटीन कुछ ऐसा हो गया था कि खाना खाओ, आराम करो और फिर खाना खाओ और आराम करो. जिन लोगों के पास अपना घर है या छोटा सा गार्डन है, उन्हें फिर भी थोड़ा कुछ टहलने का मौका मिल रहा था, लेकिन उनकी सोचिए जो छोटे छोटे फ्लैटों में रहते हैं.
ऐसे लोगों को साइकिल ने नई आजादी दी है. कोरोना से बचने की भी. अगर कोई अकेला साइकिल चलाकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचे तो पराए लोगों के संपर्क में आने का मसला नहीं रहा है. और शरीर की कसरत अलग से हो जाती है. और जिनके पास साइकिल नहीं है, वे साइकिल की दुकानों में लाइन लगाने लगे हैं. पिछले दो-ढ़ाई हफ्तों से 800 वर्गमीटर से छोटी दुकानें खुल गई हैं. उन्हें इस शर्त पर दुकान खोलने की इजाजत मिली है कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को लागू किया जाएगा. उनमें साइकिल की दुकानें भी हैं.
कोरोना ने घटाई बिक्री
ग्राहक बहुत दिनों बाद लाइन लगाने का अभ्यास कर रहे हैं. जर्मनी में आम तौर पर सामान की सप्लाई ऐसी है कि कुछ भी खरीदने के लिए बहुत इंतजार नहीं करना पड़ता. लेकिन कोरोना ने हालत बदल दी है. डेढ़ मीटर की दूरी बनाए रखने के लिए जरूरी है कि दुकानों के अंदर कम लोगों को जाने दिया जाए. तो खाने पीने की दुकान हो या साइकिल की, इन दिनों अक्सर लोग लाइनों में खड़े दिखते हैं. मार्च और अप्रैल का महीना साइकिलों की बिक्री के लिए सबसे अहम महीना होता है. इन महीनों में लोग नई साइकिलें खरीद लेते हैं ताकि गर्मियों में उनका इस्तेमाल कर सकें. लेकिन इस साल कोरोना ने सारा गुड़ गोबर कर दिया. साइकिल उद्योग संघ का कहना है कि कोरोना की वजह से बिक्री में 30 से 60 फीसदी की कमी आई है. साइकिल की दुकानें हों या ग्राहक, दोनों ही इस समय उसकी भरपाई करने में लगे हैं.
जर्मनी में पिछले सालों में साइकिल के इस्तेमाल का चलन बढ़ा है. और जब से ई-बाइक बाजार में आए हैं साइकिलों की लोकप्रियता और कारोबार और बढ़ गए हैं. आम साइकिलें 200 से 1000 यूरो की होती थीं तो ई-बाइकों की रेंज ही 1000 यूरो से शुरू होती है. पिछले साल साइकिल उद्योग ने साल भर में 4.2 अरब यूरो की साइकिल बेची. यह 2018 के मुकाबले 34 फीसदी ज्यादा थी. अर्थव्यवस्था के लिए साइकिलों का महत्व इस बात से पता चलता है कि जर्मनी में लोग हर साल 15 करोड़ दिनों का साइकिल टूर करते हैं. ये लोग 2.2 करोड़ रातें होटलों में गुजारते हैं. साइकिल टूरिस्ट हर साल सवा नौ अरब यूरो से ज्यादा खर्च करते हैं. साइकिल बनाने वाली पुरानी जर्मन कंपनी डियामंट लोगों में साइकिल खरीदने की रुझान देख रही है. यहां तक कि मोटरगाड़ी चालकों के क्लब ओडीएसी का मानना है कि सड़कों पर साइकिलों का महत्व बढ़ेगा. और साइकिलें बढ़ेगी तो साइकिल ठीक करने वाले वर्कशॉपों का काम भी बढ़ेगा.
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