जलवायु परिवर्तन से और बिगड़ा एलर्जी का मौसम
९ अप्रैल २०२२वनस्पति विज्ञानी योहानस मासोमाइट धूसर और सूखी पड़ चुकी झाड़ियों से भरे खेत में निकले हैं. अगर गर्मियों का मौसम होता तो योहानस एक सुरक्षात्मक पोशाक पहनकर निकलते. लेकिन सर्दियां हैं और इन पौधों में पराग आने में अभी समय है.
ये खेत रैगवीड (वैज्ञानिक नामः एम्ब्रोसिया आर्टेमिसीफोलिया) से भरा पड़ा है. ये एक जंगली और तेजी से फैलने वाली पादप प्रजाति है और एलर्जी करने वाले दुनिया के सबसे ज्यादा कुख्यात पौधों में से एक है.
मासोमाइट ने डीडब्ल्यू को बताया, "पराग के जरा से कण एलर्जी को उकसाने के लिए काफी होते हैं, यहां तक कि उन लोगों में भी जिन्हें पहले कभी किसी चीज से एलर्जी न हुई हो. ये हर किसी पर मार कर सकते हैं.”
रैगवीड के पराग की एलर्जी में लोगों को बेशुमार छींके आती हैं, नाक बहती है और आंखों में खुजली मची रहती है. वो कुछ और गंभीर प्रतिक्रियाएं भी शरीर में भड़का सकती है जैसे कि दमा का दौरा. त्वचा की एलर्जी भी उससे हो सकती है.
वर्षों से माजोमाइट अपने गृह-राज्य राइनलैंड-पैलाटिनैट को फैलते रैगवीड से निजात दिलाने में जुटे हैं. उसे बेकाबू होने से रोकना, उनका काम है. वो कहते हैं, हाल के दशकों में ये पौधा बहुत तेजी से फैला है. जंगलों की रेतीली मिट्टी पर, सड़कों के किनारे, घरों के बागीचों और खेतों में झुरमुट के झुरमुट उभर आते हैं.
एलर्जी में बढ़ोत्तरी
रैगवीड पौधा मूल रूप से उत्तरी अमेरिका में पाया जाता है. इसकी जड़ों और फर्न जैसी पत्तियों को आदिवासी समुदाय दवाओं के रूप में इस्तेमाल करने के लिए काट ले जाते हैं. एंटीसेप्टिक के रूप में उसका इस्तेमाल होता है. ये पौधा खरगोश और पक्षियों समेत कुछ जंगली जानवरों को भोजन और सुरक्षा भी मुहैया कराता है.
रैगवीड का बीज 19वीं सदी में यूरोप लाया गया था. लेकिन पिछले कुछ दशकों से ही ये पौधा समस्याएं पैदा करने लगा है. गरम होता तापमान इसके फैलने के लिए अनुकूल स्थितियां मुहैया कराता है और यूरोप में, जर्मनी समेत ये अब तीस देशों में पाया जाता है.
एक पौधा कई सौ किलोमीटर दूर उड़ कर चले जाने वाले तीन अरब पराग कण पैदा कर सकता है. ये कण आकार में इतने अत्यधिक छोटे होते हैं कि किसी और पौधे के परागकणों की अपेक्षा फेफड़ों में भी आसानी से घुसकर यहां से वहां पहुंच सकते हैं.
यही चीज रैगवीड के फैलाव को खासतौर पर चिंताजनक बनाती है- ये कहना है प्रोफेसर क्लाउदिया ट्रैडल-हॉफमान का, जो ऑग्सबुर्ग यूनिवर्सिटी में पर्यावरणीय औषधि विभाग की प्रमुख हैं और "अतितप्तः हमारे स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव” ("ओवरहीटडः द कॉन्सीक्वेन्सेस ऑफ क्लाइमेट चेंज फॉर अवर हेल्थ”) पुस्तक की लेखिका हैं.
यूरोप में एलर्जी एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिंहित है. रैगवीड का विस्तार इस आग में घी डालने का काम कर रहा है. प्रोफेसर ट्रैडल-हॉफमान के मुताबिक करीब 40 फीसदी यूरोपीय, किसी न किसी पोलन एलर्जी से पीड़ित रहते हैं. और इस सदी के मध्य तक उनकी संख्या 50 फीसदी तक जा सकती है.
वो उन अध्ययनों का हवाला भी देती हैं जिनमें बताया गया है कि एलर्जी वाले दमा के मामलों की संख्या, जर्मनी में 2007 और 2017 के दरमियान 10-20 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. ये दमा अन्य कारणों के अलावा परागकणों से होने वाली एलर्जी से भी हो सकता है. प्रोफेसर ट्रैडल-हॉफमान कहती हैं कि हालात बदतर हो रहे हैं "क्योंकि जलवायु परिवर्तन से परागकणों पर असर पड़ा है.”
जलवायु परिवर्तन की भूमिका
तापमान में आ रही गर्मी से कुछ पौधे तेजी से बढ़ने लगते हैं, समय से पहले ही पराग तैयार कर लेते हैं और उनमें परागण देर तक होता रहता है. प्रोफेसर ट्रैडल-हॉफमान कहती हैं, पराग-मुक्त सीजन छोटा होता जा रहा है. इस हद तक कि पूरे साल हवा में पराग बने रहते हैं. वो कहती हैं कि, और तो और हवा में प्रदूषण और कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी पराग उत्पादन को और तेज कर रही है और पराग का प्रोटीन भी बदल रही है जिससे वो और आक्रामक बन गया है.
हाल के एक अमेरिकी अध्ययन में पता चला है कि अपेक्षाकृत गरम मौसम और वायुमंडल में सीओटू के उच्च स्तर के चलते, 1990 से उत्तरी अमेरिका में पराग का मौसम औसतन 20 दिन पहले ही शुरू होने लगा है. इस दरमियान पेड़ों ने करीब 20 फीसदी ज्यादा पराग छोड़ा है.
बर्च, ओलिव और साइप्रेस जैसे एलर्जीकारक वृक्षों पर हुए एक इतालवी अध्ययन का भी नतीजा यही था कि पराग के मौसम लंबे खिंचने लगे हैं, और पराग की मात्रा, और पराग से एलर्जी रखने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है.
वैज्ञानिकों ने ये भी बताया है कि साल 2000 में 370 पीपीएम (पार्ट्स पर मीलियन) कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता झेल रहे रैगवीड के पौधों ने 132 फीसदी ज्यादा पराग पैदा किया था. जबकि 1890 में रैगवीड के पौधों में सीओटू सांद्रता 280 पीपीएम पाई गई थी. 2050 में सीओटू सांद्रता 600 पीपीएम होने का अनुमान लगाया गया है और इसी के साथ पराग में भी 90 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई है.
हमारी सेहत के लिए इस सबका क्या मतलब है?
परागण की लंबी अवधियां और हवा में पराग की ज्यादा मात्रा, एलर्जी से पीड़ित रहने वालों के लिए निश्चित रूप से बुरी खबरें हैं. प्रोफेसर ट्रैडल-हॉफमान कहती हैं कि समय के साथ और लोग भी एलर्जी से ग्रस्त होते जाएंगे जिसका असर हमारी उत्पादकता और स्वास्थ्य पर पड़ेगा. वो कहती हैं, "आखिरकार ये सिर्फ हमारी सेहत के लिए चुनौती नहीं है, बल्कि आर्थिक नजरिए से भी हमारे समाजों के लिए चुनौती है.”
अध्ययन दिखाते हैं कि एलर्जीग्रस्त विद्यार्थी परागण के मौसम में स्कूलों मे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं. ट्रैडल-हॉफमान समझाती हैं कि एलर्जी की वजह से कक्षा या कार्यस्थल में प्रदर्शन मे 30 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है. उनके मुताबिक यूरोपीय संघ को हर साल एलर्जी के चलते काम के नुकसान और इलाज के खर्च में 150 अरब यूरो की चपत लग जाती है.
कोरोनावायरस जैसे संक्रमणों की चपेट में आने का खतरा भी पराग से बढ़ जाता है. हमें चाहे एलर्जी हो या न हो. ट्रैडल-हॉफमान हाल के एक अध्ययन की सहलेखिका भी रही हैं जिसमें उच्च पराग वाले इलाकों में कोविड संक्रमण की उच्च दरें नोट की गई थीं. अध्ययन के मुताबिक पराग शरीर में दाखिल होकर उसकी एंटीवायरल प्रतिरोध प्रणाली को बाधित कर देते हैं. हालांकि जानकारों का कहना है कि इस बारे में अभी और शोध की आवश्यकता है.
पराग के मौसम की तैयारी
जब परागण का मौसम चल रहा होता है, तो दमा या दूसरी दाहक बीमारियों से पीड़ित रहने वाले लोगों को आवाजाही में या बाहर निकलने में एहतियात बरतना चाहिए. घर के अंदर रहना और हवा में पराग की उच्च मौजूदगी के दिनों में खिड़कियों को बंद रखना सही है. इन दिनों बाहर निकलते समय मास्क पहनने की सलाह भी दी जाती है.
इस बीच वनस्पतिविज्ञानी योहानस मासोमाइट इस बात पर जोर देते हैं कि रैगवीड के संपर्क में आने वाले व्यक्ति को दस्ताने पहनने चाहिए और अपना चेहरा ढकना चाहिए. पौधे को सही ढंग से हटाने के लिए "उसे जड़ों से उखाड़कर और सावधानी से एक प्लास्टिक बैग में लपेटकर कूड़ेदान में रख देना चाहिए. लेकिन भूल कर भी उसे खाद के ढेर में न डाल दें वरना लेने के देने पड़ जाएंगे.”
रिपोर्टः नताली मुलर, नाइल किंग