जानलेवा होता जल संकट
२२ मार्च २०१२दिल्ली के नजफगढ़ में रहने वाले 50 वर्षीय राजेंद्र सिंह पेशे से दुकानदार हैं. उनके पूरे परिवार का दिन सार्वजनिक नल पर पानी के इंतजार से शुरू होता है. जैसे ही पानी की पहली बूंद नल से बाल्टी में गिरती है, पूरा परिवार पानी भरने में जुट जाता है. लेकिन कभी कभी यह इंतजार आधे घंटे से एक दिन तक पहुंच जाता है.
राजेंद्र सिंह की पत्नी विमला के अनुसार, "हमारा बहुत बड़ा समय पानी के इंतजार और उसके इंतजाम में ही गुजर जाता है. क्या कभी हमें पर्याप्त पानी मिलेगा." कभी तो हम कुछ बाल्टी पानी में गुजारा कर लेते हैं लेकिन कभी हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता और हमें पानी खरीदना होता है."
यह स्थिति अकेले नजफगढ़ या दिल्ली की नहीं बल्कि भारत के ज्यादातर बड़े शहरों की है. हर दिन लोग यहां सार्वजनिक नलों या पानी के टैंकरों पर लाइन लगाकर खड़े रहते हैं. गर्मी के मौसम में दिल्ली वालों को कड़ी परीक्षा देना होती है. चिलचिलाती धूप में खाली पड़े नलों को छोड़कर पानी के इंतजाम में यहां वहां भटकना होता है.
पानी के बहता खून
पानी भरने की यह आपाधापी खूनी संघर्ष का रूप भी ले लेती है. दिल्ली के अलीपुर में एक महिला द्वारा हैंडपंप पर ताला लगाने का विवाद इतना भड़क गया कि एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई. उधर मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर में भी नल से पहले पानी भरने के विवाद में एक महिला सहित दो लोगों को जान गंवाना पड़ी थी.
गंदा पानी पीने को मजबूर
इन शहरों के लोग अकेले पानी की कमी का ही सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि इन्हें गंदे पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. शहरों में पीने के पानी में कीटनाशक और नुकसानदेह भारी धातु की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई है. 100 से भी अधिक शहरों में सीवेज सिस्टम ठीक नहीं होने से पीने के पानी में गंदा पानी मिल जाता है.
नजफगढ़ के ही बीएस यादव के अनुसार, "हम जहरीला पानी पीकर धीमी मौत की और बढ़ रहे हैं. लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है."
कुछ लोग वाटर फिल्टर और पानी साफ करने की दूसरे तरीके अपना सकते हैं लेकिन यह काम सबकी हैसियत में नहीं. गंदे पानी से पीलिया, हैजा और चर्म रोग हो सकता है. समय के पहले बाल सफेद हो सकते हैं.
बढ़ती आबादी और शहरीकरण की वजह से भारत में हर जगह पानी की सही सप्लाई नहीं हो पा रही है. उसकी स्थिति एशिया के दूसरे देशों से खराब है. 2011 के एक सर्वे के अनुसार 20 प्रतिशत लोगों को पीने का पानी लेने घर से आधा किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यह दूरी गांवों में और बढ़ जाती है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस वक्त देश में पानी की मांग 830 अरब घन मीटर है. जबकि उपलब्धता 1.123 अरब घन मीटर है. 2050 तक देश को 1 हजार 447 अरब घन मीटर पानी की जरूरत होगी. तब कैसे इंतजाम होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
मौत को गले लगाते किसान
विशेषज्ञों के अनुसार भारत में पानी की कमी से फसल नहीं हो पाने और उससे बढ़ते कर्ज के कारण लगभग 16000 किसान हर साल मौत को गले लगा लेते हैं. विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के अध्ययन में कहा गया कि दिल्ली और मुंबई सहित देश के 71 बड़े शहरों में पानी की सही सप्लाई की व्यवस्था और योजना नहीं है. इन शहरों में वितरित किया जाने वाले पानी का एक तिहाई हिस्सा लीकेज और खराब पाइपों से बह जाता है.
संपन्न लोग करते हैं दुरुपयोग
एक और जहां सामान्य लोगों को पीने तक के लिए पानी नहीं मिलता, वहीं संपन्न लोग इसका जम कर दुरुपयोग करते हैं. दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाके में रहने वाले एक व्यापारी ने अपने पड़ोसियों की शिकायत करते हुए बताया कि वे रोजाना 3000 लीटर से ज्यादा पानी लॉन और कार धोने में बहा देते हैं. वे बड़े पंप की सहायता से पाइपलाइन से वैसे ही अधिक पानी खींचते हैं लेकिन उन्हें वह भी कम लगता है और वे पानी बेचने वालों से भी पानी मंगाते हैं.
जल संसाधन मंत्री विंसेंट पॉल के अनुसार पानी के गलत इस्तेमाल को रोकने और बेहतर वितरण व्यवस्था के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्ययोजना की जरूरत है.
रिपोर्टः डीपीए/जितेन्द्र व्यास
संपादनः ए जमाल