धरती बचाने के लिए किन समस्याओं पर एक साथ काम करना होगा
१९ जनवरी २०२२विशेषज्ञों के एक समूह ने चेतावनी दी है कि जैव विविधता और कई प्रजातियों के विलुप्त होने के जिस संकट से हम गुजर रहे हैं, उससे निपटने के लिए प्रकृति संरक्षण के उपाय नाकाफी हैं. विशेषज्ञों ने यह बयान धरती पर जानवरों और पेड़-पौधों को बचाने की नीयत से किए जाने वाले उस समझौते के बारे में दिया है, जिसका मसौदा अभी तैयार किया जा रहा है.
दरअसल इस साल मई में चीन के कुनमिंग में संयुक्त राष्ट्र का जैव विविधता सम्मेलन होना है. इसमें यह कथित 'वैश्विक जैव विविधता संरक्षण समझौता' पेश किया जाएगा. इस समझौते का मुख्य लक्ष्य धरती पर जमीन और समंदर के 30 फीसदी हिस्से को 'संरक्षित इलाका' करार देकर एक किनारे रखने का है. यानी उस जगह ऐसी कोई गतिविधि नहीं की जाएगी, जिससे जैव-विविधता को खतरा हो.
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ
50 से ज्यादा शीर्ष विशेषज्ञों ने कहा है कि इस समझौते के मसौदे में जो उपाय या लक्ष्य तय किए जा रहे हैं, वो हमारी आज की जरूरत के सामने बौने साबित होंगे. पेरिस सैकले यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और लेखक पॉल लीडली ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "हम जैव विविधता संकट से घिरे हुए हैं. आज लाखों प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं."
पॉल कहते हैं, "इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि जो फैसले तुरंत करने की जरूरत है, उनकी बजाय अगर हम इलाकों को संरक्षित करने पर बहुत ज्यादा ध्यान देते रहेंगे, तो हम इन महत्वाकांक्षी जैव विविधता लक्ष्यों को हासिल करने में फिर से नाकाम हो जाएंगे."
क्या पहले के लक्ष्य हुए हासिल?
जो मसौदा अभी तैयार किया जा रहा है, उस समझौते को लेकर करीब 200 देश बातचीत कर रहे हैं. इस समझौते में 2030 के लिए लक्ष्य तय किए जाने हैं. साथ ही, इसका मकसद है कि जैव विविधता का जो भी नुकसान हुआ है, उसे 2050 तक पूरी तरह रोक दिया जाए और इंसान प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहने लगे.
एक दशक पहले जापान के आइची में भी संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में दुनिया के तमाम देशों ने मिलकर ऐसे ही कुछ लक्ष्य तय किए थे. हालांकि एक दशक बाद उन लक्ष्यों को हासिल करने में दुनिया लगभग पूरी तरह नाकाम रही. पॉल कहते हैं, "हम एक गंभीर रूप से बीमार शख्स को बार-बार प्लास्टर लगाकर ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं. यह बंद होना चाहिए."
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र का 'जलवायु परिवर्तन पर विज्ञान सलाहकार समूह' भी ऐसी ही चेतावनी जारी कर चुका है. पॉल और उनके सहयोगी कहते हैं कि प्रकृति को अब तक जो नुकसान पहुंचाया जा चुका है, उसे पलटने के लिए समाज में एकदम कायापलट की क्षमता रखनेवाले उपाय करने की जरूरत है. इसकी शुरुआत खाने का उत्पादन और उसका दोहन करने के हमारे तौर-तरीकों में सुधार के साथ होना चाहिए.
वजहें क्या हैं?
नीतियां बनानेवालों को यह भी समझना होगा कि तमाम जीवों के विलुप्त होने, उनका प्राकृतिक आवास छिनने और उनके बंट जाने के पीछे कई कारण हैं. जैसे खाने और मुनाफे के लिए जरूरत से ज्यादा शिकार किया जाना, प्रदूषण, हमलावर प्रजातियों का फैलना वगैरह. इन सभी समस्याओं को एक साथ साधे बिना कोई ठोस नतीजा नहीं निकलेगा.
रिपोर्ट कहती है, "जैव विविधता का संकट कई वजहों से पैदा हुआ है. इसका मतलब है कि किसी एक या कुछ समस्याओं पर कदम उठाना नाकाफी होगा और लगातार हो रहे नुकसान को रोक नहीं पाएगा." जलवायु परिवर्तन भी जमीन से लेकर समंदर तक जानवरों और पेड़-पौधों की कई प्रजातियों के लिए तेजी से बढ़ता संकट है. ये प्रजातियां खुद को हालात के अनुकूल जितनी तेजी से ढालती हैं, उससे कहीं ज्यादा तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की जरूरत है. हालांकि, डेढ़ डिग्री भी औद्योगिक काल से पहले के स्तर से ज्यादा ही होगा, लेकिन मसौदे में यह लक्ष्य कहीं दिखाई ही नहीं देता है. धरती की ऊपरी परत पहले ही 1.1 डिग्री गर्म हो चुकी है, जिससे तूफान, लू, सूखा और बाढ़ जैसी विनाशकारी घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है.
वीएस/एनआर (एएफपी)