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समाज

ठहाकों की दुनिया कोरोना की शुक्रगुजार रहेगी

१७ जुलाई २०२०

"कल घर वालों से बात हो रही थी. यार, वे तो बड़े अच्छे लोग हैं!" आ गई ना हंसी... यह हंसी ही हमारी ताकत है. ताकत, हर संकट से निपटने और आगे बढ़ने की. इसलिए कोरोना के दौर में ठहाके बिखरने वाले भी कोरोना योद्धा हैं.

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पूरी दुनिया में कोरोना के दौरान ऑनलाइन मजाकिया शो चलेतस्वीर: Reuters/I. Kato

लॉकडाउन ने पर्यावरण का तो भला किया ही है, हमें खुद के बारे में और अपनों के बारे में सोचने का मौका दिया है. साथ ही उसने हंसी की दुनिया को भी काफी कुछ दिया है. कोरोना महामारी के बीच जब सारी दुनिया ठप हो गई, तो सोशल मीडिया पर हाहाकार के बीच कुछ लोग लगातार हंसी की फुलझड़ियां छोड़ रहे थे. दुनिया भर की सरकारें लोगों से मिन्नतें कर रही थीं कि घर में रहिए, कहीं बाहर मत जाइए, बाहर गए तो वायरस फैलने का खतरा है, आपके लिए भी खतरा है और आप दूसरों के लिए भी खतरा बन सकते हैं. इन तमाम दिशा निर्देशों को लोगों के बीच पहुंचाने के लिए लाखों करोड़ों डॉलर खर्च किए गए होंगे.

इसी बीच, किसी "ज्ञानी" ने एक वाक्य में गागर में सागर भर दिया. हो सकता है कि अपनी सोशल मीडिया टाइमलाइन को स्क्रॉल करते हुए आपकी नजर भी उस पर पड़ी हो. यह लंबी चौड़ी भूमिका जिस वाक्य के लिए बांधी जा रही है, वह है, "या तो रहिए कुटिया में, वरना रहना पड़ेगा लुटिया में". यह सुनकर इंसान एक पल हंसने के बाद जरूर सोचेगा कि उसे सोशल डिंस्टेंसिंग और लॉकडाउन पर अमल करते हुए इसी दुनिया में रहना है या फिर कुछ दिन लोटे में बिताने के बाद गंगा में विसर्जित हो जाना है.

कोरोना काल में इंसान की बेबसी को भला इससे बेहतर कौन बयान कर सकता है: "देख भाई, हम तो मछली हो गए हैं. हाथ लगाओगे डर जाएंगे, बाहर निकालो मर जाएंगे." आप भी इस पर हंस सकते हैं, लेकिन बात सोलह आने सच है. उधर, लॉकडाउन में घर पर रहने वाले और बार-बार हाथ धोने को मजबूर "पतियों का दर्द" भी आपने शायद सुना हो. नहीं सुना तो सुन लीजिए, "सुनो जी, बार बार हाथ धोने से अच्छा है कि साथ में दो-चार बर्तन भी धो दिया करो." पति-पत्नी की "सनातन नोंकझोंक" भी कोरोना स्टाइल में. जब पति ने पत्नी से पूछा कि मास्क क्यों नहीं पहना है तो पत्नी बोली, "मास्क पहन लिया, तो आपको कैसे पता चलेगा कि मैं मुंह फुला कर घूम रही हूं."

Indien Kolkata | Coronakrise | Bürgerinitiative
कोरोना संकट के दौरान समाज सेवातस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

दूसरी तरफ किसी ने लिखा, "इतनी बार हाथ धोने पड़ रहे हैं कि पैसों की लकीर भी मिटती जा रही है, लेकिन ना धोएं, तो उम्र की लकीर मिट रही है." जो भी हो, लेकिन आज का सच नीचे लिखा दोहा है, इस डिस्क्लेमर के साथ, कि यह दोहा अब्दुल रहीम खानखाना ने बिल्कुल नहीं लिखा है:

"रहिमन वहां ना जाइए जहां जमा हों लोग.
ना जाने किस रूप में लगे कोरोना रोग."

दोहे के बाद, एक शेर पर भी गौर फरमाएं:

"मेरा कत्ल करने की उनकी साजिश तो देखिए,
पास से गुजरे और मास्क हटाकर बस छींक दिए..."

कमाल की बात यह है कि लॉकडाउन की वजह से सिमरन भी अपनी जिंदगी नहीं जी पा रही है. वरना बाबूजी तो कब के कह चुके हैं, "सिमरन, जा.. जी ले अपनी जिंदगी." लेकिन सिमरन कहीं नहीं जाएगी, क्योंकि सोशल मीडिया पर उसे जो "ज्ञान" मिला है, वह कहता है: "भाड़ में चले जाना, लेकिन भीड़ में कहीं ना जाना."

इस कोरोना के चक्कर में ना जाने कितने लोगों की शादियां रुकी पड़ी हैं. जिनकी शादी हो भी रही हैं, वे बस निटपाए जा रहे हैं. अगर पूरे रस्मो रिवाज के साथ शादी हो तो आज जीजाजी के जूते छिपाने के साथ साथ मास्क छुपाई की रस्म भी करनी होगी. यह "परमसत्य" भी मुझे सोशल मीडिया पर कोरोना के हंसगुल्लों से ही मिला है.

Indien Mumbai Familien in Corona Lockdown
तस्वीर: Privat

चीन पर गुस्सा भी भाई लोगों ने हंस हंस कर ही निकाला. मसलन, "चाइना कितना तरक्की कर गया है. वरना किसने सोचा था कि एक मौत भी चाइना से ही आएगी." "अजीब देश है चाइना. टच वाला फोन बनाया, टच वाला टीवी बनाए, टच वाली घड़ी बनाई लेकिन यह क्या, अब टच वाली बीमारी भी बना दी." या फिर "चीन वालों भगवान तुम्हें माफ नहीं करेगा. तुमने इंसान को चार लोगों के बीच उठने बैठने लायक भी नहीं छोड़ा."

फेहरिस्त बहुत लंबी है... और इस फेहरिस्त का लंबा होना अच्छी बात है. घर पर इंसान जब पिंजरे में पंछी की तरह कैद हो गया था, तब ऐसे जुमलों की बहुत जरूरत थी, जो चेहरे पर मुस्कान बिखेर सकें. त्रासदी से जो हास्य फूटता है, उससे बड़ा मरहम कोई नहीं. यही हास्य हमें निराशा से निकालता है और इस काबिल बनाता है कि आप हालात का मुकाबला कर सकें. इसीलिए अस्पताल में लोगों की सेवा करने वाले और संक्रमण को फैलने से रोकने वाले कोरोना योद्धाओं में आपको लोगों के बीच हंसी फैलाने वाले लोगों को भी शामिल करना होगा. ये योद्धा भले ही गुमनाम हैं, लेकिन हमारी मुस्कान में इनकी हिस्सेदारी है, खासकर इस मुश्किल दौर में. हमारी खुशियों में यह नींव की उस ईंट की तरह हैं जो किसी को दिखती नहीं, लेकिन नींव है तो इमारत है.

और आखिर में इन्हीं कोरोना योद्धाओं की जुबानी जीवन का सार भी सुन लीजिए: "अकेले आए थे, अकेले जाएंगे. अब ये बात बिल्कुल गलत साबित हो रही है. जो-जो संपर्क में आएंगे, वे सब जाएंगे."

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