दिल के मरीज सर्दियों में ऐसे रहें फिट
२८ दिसम्बर २०१८मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ देवकिशन पहलजानी का कहना है कि सर्दियों में मरीजों और उनके परिवारवालों को ज्यादा ध्यान देना चाहिए. यह पाया गया कि एआरएनआई थैरेपी जैसे उन्नत उपचार लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ और बेहतर हो सकते हैं, जिससे हार्ट फेलियर वाले मरीजों की जिंदगी में काफी सुधार लाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "हार्ट फेलियर मरीज और उन मरीजों में जिनमें पहले से ही हृदय संबंधी परेशानियां हैं, उन्हें खासतौर से ठंड के मौसम में सावधानी बरतनी चाहिए. साथ ही अपने दिल की देखभाल के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव करने चाहिए."
डॉ देवकिशन पहलजानी ने कहा, "डॉक्टर से सलाह लेकर घर के अंदर दिल को सेहतमंद रखने वाली एक्सरसाइज करें, नमक और पानी की मात्रा कम कर दें, क्योंकि पसीने में यह नहीं निकलता है. ब्लड प्रेशर की जांच कराते रहें, ठंड की परेशानियों जैसे-कफ, कोल्ड, फ्लू आदि से खुद को बचाए रखें और जब आप घर पर हों तो धूप लेकर या फिर गर्म पानी की बोतल से खुद को गर्म रखें."
दिल ही तो है
ठंड का मौसम किस तरह हार्ट फेलियर मरीजों को प्रभावित करता है, इस पर डॉ पहलजानी ने कहा कि हार्ट फेलियर वाली स्थिति तब होती है, जब हृदय शरीर की आवश्यकता के अनुसार ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त खून पंप नहीं कर पाता है. इसकी वजह से ह्दय कमजोर हो जाता है या समय के साथ हृदय की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं.
उन्होंने कहा, "ठंड के मौसम में तापमान कम हो जाता है, जिससे ब्लड वेसल्स सिकुड़ जाते हैं. ऐसे में शरीर में खून का संचार अवरोधित होता है. इससे हृदय तक ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसका अर्थ है कि हृदय को शरीर में खून और ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है. इसी वजह से ठंड के मौसम में हार्ट फेलियर मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने का खतरा बढ़ जाता है."
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डॉ. देवकिशन पहलजानी ने हार्ट फेलियर के लिए खतरे के कुछ कारक बताए जो इस प्रकार हैं
उच्च रक्तचाप: ठंड के मौसम में शरीर की कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है, जैसे सिम्पैथिक नर्वस सिस्टम (जो तनाव के समय शारीरिक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में मदद करता है) सक्रिय हो सकता है और कैटीकोलामाइन हॉर्मेन का स्राव हो सकता है. इसकी वजह से हृदय गति के बढ़ने के साथ हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है और रक्त वाहिकाओं की प्रतिक्रिया कम हो सकती है, जिससे ह्दय को अतिरिक्त काम करना पड़ सकता है. इस कारण हार्ट फेलियर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ सकता है.
वायु प्रदूषण: ठंडे मौसम में धुंध और प्रदूषक जमीन के और करीब आकर बैठ जाते हैं, जिससे छाती में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और सांस लेने में परेशानी पैदा हो जाती है. आमतौर पर हार्ट फेल मरीज सांस लेने में तकलीफ का अनुभव करते हैं और प्रदूषक उन लक्षणों को और भी गंभीर बना सकते हैं, जिसकी वजह से गंभीर मामलो में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है.
कम पसीना निकलना: सर्दी में कम तापमान की वजह से पसीना निकलना कम हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप शरीर अतिरिक्त पानी को नहीं निकाल पाता है और इसकी वजह से फेफड़ों में पानी जमा हो सकता है, इससे हार्ट फेलियर मरीजों में ह्दय की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
विटामिन-डी की कमी: सूरज की रोशनी से मिलने वाला विटामिन-डी, हृदय में स्कार टिशूज को बनने से रोकता है, जिससे हार्ट अटैक के बाद, हार्ट फेल में बचाव होता है. सर्दियों के मौसम में सही मात्रा में धूप नहीं मिलने से, विटामिन-डी के स्तर को कम कर देता है, जिससे हार्ट फेल का खतरा बढ़ जाता है.
--आईएएनएस