दिल्ली से कराची पहुंचते पहुंचते इतिहास पलट जाता है
७ अगस्त २०१७भारतीय उपमहाद्वीप में सीमा के आर पार छात्र दो बिल्कुल अलग इतिहास पढ़ते हैं. परमाणु ताकत से लैस दोनों मुल्कों ने इतिहास पर नियंत्रण के लिए उसे अपने राष्ट्रवादी एजेंडे से भर दिया है. विभाजन की कड़वी विरासत का सामना करने की अनिच्छा दोनों मुल्कों में सरकारों ने दिखाई है और नई दिल्ली से लेकर कराची तक के क्लासरूम में सच को अपने हिसाब से घटा बढ़ा कर पढ़ाया जा रहा है. जानकारों का मानना है कि दो प्रतिद्वंद्वी मुल्कों के बीच समझौते की उम्मीद इन्हीं किताबों के कारण परवान नहीं चढ़ पाती.
दोनों देश एक बार फिर जश्न ए आजादी की तैयारियों में लगे हैं. यह अगस्त का वही महीना है जब भारतीय उपमहाद्वीप दो स्वतंत्र देशों में बंट गया और लाखों लोग अपनी जड़ों से उखड़ गये. इस घटना ने दुनिया में सबसे बड़ी विस्थापन की दास्तान लिखी. इस दौरान जो हिंसा हुई, उसमें अनगिनत (कुछ लोगों का अनुमान है 20 लाख) लोग मारे गये. हिंदू और मुसलमान मरते-खपते अपने नये मुल्क की तरफ पहुंचे. हत्या और बलात्कार की पता नहीं कितनी दर्दनाक घटनायें हुईं. इस हिंसा ने नफरत का जो बीज बोया, वह आज भी भारत और पाकिस्तान के मन में पल रहा है. कई पीढ़ियां बीत गयीं लेकिन भारत और पाकिस्तान के लोगों के लिए इतिहास का वह पल अब भी उन्हें राष्ट्रवाद और घृणा से दो ध्रुवों में बांट देता है.
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में चल रहे स्कूल की पांचवीं क्लास की इतिहास की किताब में हिंदुओं को "ठग" बताया गया है जिन्होंने मुस्लिमों को "मारा, उनकी संपत्ति छीन ली और भारत छोड़ने पर मजबूर किया." स्कूल की किताब से इतिहास पढ़ने वाले पंजाब के 17 साल के अफजल कहते हैं, "वे हमें नीचा दिखाते थे इसलिए हमने पाकिस्तान बनाया."
सीमा के दूसरी ओर मुंबई के छात्र त्रियाक्ष मित्रा ने पढ़ा है कि कैसे महात्मा गांधी पूरे भारत को ब्रिटेन से आजाद करने के लिए लड़े जबकि मुस्लिम लीग और उसकी स्थापना करने वाले मुहम्मद अली जिन्नाह अपना अलग देश बनाने के लिये औपनिवेशिक शासकों से मिल गये. 15 साल के त्रियाक्ष विभाजन की पढ़ाई के बारे में कहते हैं, "लेकिन वे ये नहीं बताते कि क्या सचमुच मुसलमान उनके साथ थे."
महात्मा गांधी पर जो पाठ है वह साफ साफ बताता है कि सीमा के दोनों ओर विभाजन को कैसे दिखाया गया है. पाकिस्तान में महात्मा गांधी के योगदान के बारे में स्कूलों में नहीं के बारे में बताया जाता है जबकि भारत में उन्हें, "वन मैन आर्मी" माना जाता है.
भारत में गुजरात के एक हाई स्कूल में पढ़ाने वाले आशीष ढकान मानते हैं कि मुस्लिम लीग के गठन को पाकिस्तान में स्वनिर्णय और आजादी के रूप में देखा जाता है जबकि भारत में इसे "भोलेभाले मुसलमानों" की बेवकूफी माना जाता है. ढकान कहते हैं, "हमारे इतिहासम में हमने जंग जीती और उनके इतिहास में उन्होंने."
दोनों तरफ का सरकारी पाठ्यक्रम जहां अपना अपना इतिहास पढ़ा रहा है, वहीं पाकिस्तान के कुछ लोग खेल और संस्कृति के जरिये छात्रों को अपने अतीत के बारे में फिर से सोचने की चुनौती दे रहे हैं. कासिम असलम की "इतिहास परियोजना" भारत और पाकिस्तान के स्कूलों में सत्र बुलाती है. जहां छात्रों को दोनों मुल्कों के विभाजन के बारे में पढ़ायी जा रही जानकारियों की तुलना करने को कहा जाता है. एकतरफा पाठ के बारे में असलम कहते हैं, "जब तक वे 20 साल के हों, यह उनके जहन में पक्के तौर पर बैठ जाता है और फिर ताउम्र उनके साथ रहता है."
मुंबई के छात्र मित्रा इसी साल अप्रैल में एक सत्र में शामिल हुए. मित्रा कहते हैं, "इससे मुझे दूसरे पक्ष के बारे में जानने और एक संतुलित समझ विकसित करने का मौका मिला. अगर मैं सिर्फ एक ही हिस्सा जानता, तो वह पूरा सच नहीं होता."
इस्लामाबाद में पाकिस्तान स्टडीज के प्रोफेसर तारिक रहमान कहते हैं कि आधिकारिक पाठ्यक्रम में भेदभाव को दूर करने से दोनों देशों की "विदेश नीति में बदलाव" आयेगा." इसके साथ ही उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान का प्रशासन भारत के खिलाफ वैरभाव को खत्म करने में दिलचस्पी लेता है."
हालांकि बदलाव के कुछ छोटे छोटे संकेत मिले हैं. हाल ही में भारत की सरकारी इतिहास की किताब में एक ग्राफिक शामिल किया गया है जिसमें हिंदुओं के अत्याचारों के बारे में सीधी जानकारी है. छात्रों से पूछा गया है कि क्या इस हिंसा को होलोकास्ट माना जा सकता है.
भारतीय लेखक और विभाजन की इतिहासकार उर्वशी बुटालिया की किताब "द अदर साइड ऑफ साइलेंस" को भी भारत के हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. इस किताब में लोगों के बयान हैं. बुटालिया कहती हैं कि उन्हें इस बात की खुशी है कि लोग विभाजन को राष्ट्रवाद का चश्मा हटाकर देखने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "20 साल पहले ये असंभव था."
एनआर/एके (एएफपी)