धरती और किसानों को भी मार रहे हैं कीटनाशक
१५ जनवरी २०२२जर्मनी में पर्यावरण समूहों की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग दुनिया भर में पर्यावरण को होने वाली क्षति के केंद्र में है.
पेस्टिसाइड एक्शन नेटवर्क जर्मनी के कृषि इंजीनियर सूजेन हाफमंस ने कीटनाशक एटलस रिपोर्ट विकसित करने में बड़ी भूमिका निभाई है. वो कहते हैं, "जब आप कृषि, स्वास्थ्य, प्रजातियों के नुकसान और जल प्रदूषण से निपटते हैं तो आप हर जगह इस मुद्दे का सामना करते हैं.”
इसी से जुड़े हाइनरिष बॉएल फाउंडेशन, पर्यावरण समूह फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ की जर्मन शाखा और अंतरराष्ट्रीय मासिक समाचार पत्र ले मोंड डिप्लोमाटिक के साथ यह रिपोर्ट इस हफ्ते बर्लिन में प्रकाशित की गई. रिपोर्ट के 50 पृष्ठों में अरबों डॉलर के कीटनाशक व्यवसाय के हानिकारक प्रभावों का ब्यौरा दिया गया है. हाफमंस कहती हैं, "हम हर जगह कीटनाशकों का सामना करते हैं, भले ही हम खेत के किनारे पर ना रहते हों.”
किसान अक्सर इस जहर से प्रभावित होते हैं
पत्रिका पब्लिक हेल्थ में हाल ही में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, कृषि क्षेत्र में 38.5 करोड़ लोग हर साल कीटनाशकों के तीखे जहर से बीमार पड़ते हैं. इसी जहर की वजह से खेत के मजदूरों और किसानों में कमजोरी महसूस होने से लेकर, सिरदर्द, उल्टी, दस्त, त्वचा पर चकत्ते, तंत्रिका तंत्र में समस्याएं और बेहोशी तक के लक्षण मिलने लगते हैं.
गंभीर मामलों में हृदय, फेफड़े या गुर्दे खराब हो जाते हैं. रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 11,000 लोग हर साल इस तीखे जहर के कारण मर जाते हैं. इन आंकड़ों में कीटनाशकों से संबंधित आत्महत्या से होने वाली मौतों की गणना नहीं की गई है.
ग्लोबल साउथ यानी लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशीनिया इलाके में कृषि श्रमिक और छोटे किसान विशेष रूप से कीटनाशकों के जहर से प्रभावित हैं. रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया में करीब 25.6 करोड़, अफ्रीका में 11.6 करोड़ और लैटिन अमेरिका में करीब 1.23 करोड़ किसान इसकी चपेट में आते हैं. यूरोप में, यह आंकड़ा 16 लाख से भी कम है.
हाफमंस कहती हैं, "हम देखते हैं कि दुनिया भर में सभी श्रमिकों में से 44 फीसदी कम से कम एक बार जहर का शिकार जरूर होते हैं. और कुछ देशों में यह संख्या बहुत ज्यादा है. उदाहरण के लिए, बुर्किना फासो में 83 फीसद खेत मजदूर कम से कम एक बार कीटनाशकों की वजह से बीमार हो जाते हैं.”
वे कहती हैं कि यह आंकड़े केवल तीव्र यानी घातक जहर के हैं. उनके मुताबिक, इनका प्रभाव जिस जिस हद तक होता है, उससे आगे चलकर बड़े जोखिम का खतरा रहता है जो गंभीर बीमारियों की वजह बनती हैं.
एटलस ग्लोबल साउथ, इलाके में जहरों से प्रभावितों की संख्या में बड़ी वृद्धि के कई कारणों पर प्रकाश डालता है. सबसे पहले, वहां बहुत सारे खतरनाक कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है जिनमें कुछ ऐसे भी हैं जो यूरोप में प्रतिबंधित हैं. इसके अलावा, वहां कई छोटे किसान सुरक्षात्मक कपड़े नहीं पहनते हैं और खतरों के बारे में भी उन्हें कम जानकारी रहती है.
हाफमंस कहती हैं, "कुछ मामलों में, व्यापारियों कीटनाशकों को केवल छोटे प्लास्टिक बैग या बोतलों में भर के बेच देते हैं- बिना लेबल, सुरक्षा निर्देशों और किसी चेतावनी के. फिर हमेशा अनजाने में लोग जहर का शिकार हो जाते हैं क्योंकि कीटनाशक का गलत इस्तेमाल किया जाता है या कोई यह सोचकर बोतल उठा लेता है कि शायद उसमें सोडा है.”
एटलस के मुताबिक, घाना में 30 फीसदी से कम छोटे किसान कीटनाशकों का प्रयोग करते समय दस्ताने, काले चश्मे और मुंह या नाक की सुरक्षा करते हैं. इथियोपिया में तो केवल 7 फीसदी किसानों को कीटनाशकों का उपयोग करने के बाद हाथ धोने की चेतावनी के बारे में पता होता है.
कीटनाशकों से कैंसर का खतरा भी बढ़ता है
कीटनाशक सैकड़ों किलोमीटर तक हवा से फैल सकते हैं और नदियों और भूजल में पाए जाते हैं. वे कीड़े, पक्षियों और जलीय जानवरों को मार सकते हैं और उनके अवशेष अक्सर भोजन में पाए जाते हैं. इस मामले में सबसे ज्यादा कुख्यात है खरपतवार नाशक ग्लाइफोसेट जो सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला कीटनाशक है.
साल 2015 में, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने ग्लाइफोसेट को "संभावित कार्सिनोजेनिक" के रूप में वर्गीकृत किया था. वाशिंगटन विश्वविद्यालय की ओर से कराए गए साल 2019 के एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया था कि ग्लाइफोसेट से घातक लिम्फ नोड ट्यूमर का खतरा रहता है जिसे नॉन हॉजकिन लिंफोमा के रूप में जाना जाता है.
कीटनाशकों को अस्थमा, एलर्जी, मोटापा और अंतःस्रावी ग्रंथि विकारों के साथ-साथ विशेष रूप से प्रदूषित क्षेत्रों में गर्भपात और अन्य बीमारियों से भी जोड़ा गया है. हाफमंस कहती हैं, "अध्ययन पार्किंसंस रोग, टाइप-2 मधुमेह और कुछ प्रकार के कैंसर के साथ भी कीटनाशकों का संबंध दिखाते हैं.”
स्वास्थ्य सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण मुनाफा
कीटनाशकों की बिक्री में काफी मुनाफा है. एटलस के मुताबिक, चार सबसे बड़े उत्पादकों- सिनजेंटा, बायर, बीएएसएफ और कोर्टेवा ने साल 2020 में 31 बिलियन यूरो की बिक्री की. हाल के वर्षों में, वैश्विक कीटनाशकों की बिक्री में सालाना औसतन 4 फीसदी की वृद्धि हुई है.
कंपनियां स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान के लिए भुगतान नहीं करती हैं, जब तक कि उन्हें अदालत में नहीं ले जाया जाता. अमेरिका में सवा लाख लोगों ने, जिन्होंने सक्रिय संघटक ग्लाइफोसेट के साथ कीटनाशक राउंडअप का छिड़काव किया था और गंभीर रूप से बीमार हो गए थे, बेयर कंपनी पर मुकदमा दायर किया था. कंपनी ने पहले ही कुछ लोगों को भुगतान कर दिया है और नुकसान की भरपाई के लिए बायर की बैलेंस शीट में करीब 10 बिलियन यूरो को अलग रखा गया है.
इन मामलों के बावजूद, बायर और दूसरी कंपनियां अत्यधिक जहरीले कीटनाशकों की बिक्री जारी रखती हैं. इनमें वे कीटनाशक भी शामिल हैं जो खतरनाक होने के कारण यूरोपीय संघ में प्रतिबंधित हैं. वर्तमान में, कीटनाशक निर्माता यूरोपीय संघ में ग्लाइफोसेट के लिए एक नए प्राधिकरण की मांग कर रहे हैं जो कि साल 2024 तक प्रतिबंधित है.
कृषि क्रांति के लिए आंदोलन
पर्यावरण समूह रासायनिक कीटनाशकों से दूर हटने पर जोर दे रहे हैं. एटलस के 30 लेखक उन नीतियों को उजागर करने के लिए लेख लिख रहे हैं जो उनके प्रभाव को कम कर सकती हैं. हाफमंस कहती हैं, "पिछले दो दशकों में श्रीलंका ने खतरनाक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाकर लगभग दस हजार लोगों की जान बचाई है. भारत में भी वहां के कुछ क्षेत्र पहले से ही पूरी तरह से या बड़े पैमाने पर कीटनाशक मुक्त खेती करते हैं. ऐसे कदमों से क्षेत्र के दूसरे लोग भी प्रोत्साहित होते हैं.”
एटलस के लिए जर्मनी में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 16 से 29 वर्ष के अधिकांश बच्चे ऐसी कृषि चाहते हैं जो पानी, मिट्टी और कीड़ों की रक्षा करे, आनुवंशिक इंजीनियरिंग और बिना कीटनाशकों के ज्यादा उत्पादन करे और प्राकृतिक कीट नियंत्रण का उपयोग करे. सर्वेक्षण में पाया गया कि 63 फीसदी लोगों ने साल 2035 तक सभी कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाना पसंद किया और किसानों ने पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन पर जोर देने का समर्थन दिया. सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 11 फीसदी लोगों ने इस मांग को खारिज कर दिया.