मोदी की टिप्पणी से उबलता असम
७ जनवरी २०१९पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को पहचान और भारतीय नागरिकता दिलाने के लिए तैयार 'नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016' पर पूर्वोत्तर भारत उबल रहा है. इससे कथित रूप से असमिया पहचान और संस्कृति पर खतरा पैदा होने के सवाल उठाया जा रहा है. उक्त विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति सरकार को अपनी रिपार्ट सौंपने वाली है.
किस बयान से भड़के
इस प्रस्तावित संशोधन पर राज्य में विवाद तो दो साल पहले से ही चल रहा था. लेकिन मोदी ने अपने असम दौरे के दौरान एक रैली में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के शीघ्र पारित होने की बात कह कर बर्रे के छत्ते में हाथ डाल दिया है. उन्होंने यह बयान असम के बांग्लादेश से लगे बराक घाटी के सबसे बड़े शहर सिलचर में बीजेपी की एक रैली में दिया था, जहां बांग्लादेशी आप्रवासी सबसे ज्यादा हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा था, "सरकार नागरिकता (संशोधन) विधेयक के मामले में आगे बढ़ रही है. यह विधेयक स्थानीय लोगों की भावनाओं और जीवन से जुड़ा है. इसे किसी के फायदे के लिए नहीं बनाया गया है. यह अतीत में की गई गलतियों और अन्याय का प्रायश्चित है.” उन्होंने 35 साल से लटके असम समझौते की छठी धारा को लागू करने के प्रति एनडीए सरकार का संकल्प भी दोहराया था. प्रधानमंत्री ने कहा था कि अब असम की सामाजिक, सांस्कृतिक व भाषाई पहचान की रक्षा का रास्ता साफ हो गया है.
केंद्र सरकार ने जुलाई, 2016 में नागरिकता अधिनियम, 1955 के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया था. लेकिन इस पर विवाद के बाद उसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था. प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से बिना किसी वैध कागजात के आने वाले गैर-मुसलमान आप्रवासियों को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी. इसके दायरे में ऐसे लोग भी शामिल होंगे जिनका पासपोर्ट या वीजा खत्म हो गया है. प्रस्तावित संशोधन के बाद अब उनको अवैध नागरिक या घुसपैठिया नहीं माना जाएगा.
विरोध प्रदर्शन तेज
प्रधानमंत्री की टिप्पणी के बाद से ही राज्य में विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है. कई जगहों पर मोदी के पुतले जलाए गए हैं. अखिल असम छात्र संघ (आसू) और नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गनाइजेशन (नेसो) ने इस मुद्दे पर आठ जनवरी को असम व पूर्वोत्तर बंद की अपील की है. पूरे राज्य में उक्त विधेयक की प्रतियां भी जलाई जा रही हैं.
मोदी की टिप्पणी ने असम सरकार में बीजेपी की साझीदार असम गण परिषद (एजीपी) के लिए भी भारी मुश्किल पैदा कर दी है. गण परिषद शुरू से ही उक्त विधेयक का विरोध करती रही है. पार्टी कई बार धमकी दे चुकी है कि उसके पारित होने की स्थिति में वह बीजेपी से संबंध तोड़ लेगी.
पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत का कहना है कि राज्य में अब और शरणार्थियों को रखने की क्षमता नहीं है. महंत कहते हैं, "बीजेपी ने सत्ता में आने की स्थिति में राज्य से अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को खदेड़ने का वादा किया था. लेकिन विडंबना यह है कि अब वही पार्टी गैर-मुसलमान आप्रवासियों को नागरिकता देने की वकालत कर रही है.” वह कहते हैं कि यह ऐतिहासिक असम समझौते के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है.
पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले इस राज्य में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ का मुद्दा बेहद संवेदनशील रहा है. इसी के विरोध में राज्य में छह साल तक चले असम आंदोलन के जरिए असम गण परिषद का जन्म हुआ था और वह वर्ष 1985 में भारी बहुमत के साथ जीत कर सत्ता में आई थी.
असमिया समाज के लिए संवेदनशील मुद्दा
आसू के अध्यक्ष दीपंकर नाथ कहते हैं, "उक्त विधेयक असमिया समाज को बर्बाद कर देगा. सरकार राज्य के लोगों पर जबरन यह विधेयक थोप रही है केंद्र सरकार को वोट बैंक की राजनीति के लिए पूर्वोत्तर के स्थानीय लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.” वह कहते हैं कि सरकार राज्य के लोगों की भावनाओं की अनदेखी कर उसे संसद में पेश करने जा रही है.
विधेयक का विरोध करने वाले संगठनों की दलील है कि यह विधेयक असम समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन है. उस समझौते में कहा गया है कि 24 मार्च, 1971 के बाद असम आने वाले लोग विदेशी माने जाएंगे. लेकिन इस विधेयक के जरिए सरकार तमाम ऐसे लोगों के भारतीय नागरिक बनने का रास्ता साफ कर रही है.
प्रधानमंत्री के बयान के बाद राज्य में आए राजनीतिक उबाल से साफ है कि स्थानीय संगठनों और आम लोगों के लिए नागरिकता विधेयक का मुद्दा कितना संवेदनशील है. तमाम संगठनों ने चेताया है कि उक्त विधेयक खारिज नहीं होने तक आंदोलन लगातार तेज होगा. मौजूदा हालात में लोकसभा चुनावों से पहले राज्य की 14 में से 11 सीटें जीतने का सपना देख रही बीजेपी के लिए आगे की राह मुश्किलों से भरी है.