पर्यावरण योद्धाओं की ग्रीन पार्टी का सफर
ग्रीन पार्टी ने स्थापना से लेकर अब तक बड़े उतार चढ़ाव देखे हैं. पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को मुख्य धारा में लाना उनकी उपलब्धि रही है.
किसने सोचा था
1980 में शुरू हुई ग्रीन पार्टी 6 मार्च 1983 को पहली बार जर्मन संसद बुंडेसटाग पहुंची थी. उस समय उसे कई लोग थोड़ी अस्त व्यस्त सी पार्टी मानते थे, जो थोड़े ही दिन चल पाएगी. लेकिन अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सफर में ग्रीन पार्टी ने उन सबको हैरान किया.
विरोधी से सहयोगी तक
ग्रीन पार्टी मूल रूप से व्यवस्था के खिलाफ बनी पार्टी थी. और उसके मुद्दे भी कुछ उसी तरह के थे जो सरकार की तत्कालीन नीतियों से टकराते थे. 1980 से ही वे पर्यावरण, मानवाधिकार, परमाणु ऊर्जा को खत्म करने और महिला अधिकारों के लिए लड़ते रहे.
संसद में
29 मार्च 1983 का दिन यादगार रहा. इस दिन पहली बार ग्रीन पार्टी के सांसद पैदल चलकर संसद तक गये थे. इन नेताओं में गेर्ड बास्टियान, पेट्रा केली और ओटो शिली शामिल थे. ग्रीन पार्टी को उस समय संसद की 520 में से 28 सीटें मिली थीं.
पहले मंत्री
करिश्माई नेता योश्का फिशर ग्रीन पार्टी की ओर से पहले मंत्री बने. जर्मनी के हेस्से प्रांत में पर्यावरण मंत्री पद की शपथ लेने वह टाई-सूट के बदले जर्सी, जींस शर्ट और स्पोर्ट शूज पहन कर पहुंचे. उनके पहने वे जूते अब ओफेनबाख के डॉयचे म्यूजियम में रखे हैं.
कुछ अलग से
1990 में पार्टी का चुनावी नारा था, सभी जर्मनी की बात करते हैं और हम मौसम की. उस समय पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी में पार्टी का नेतृत्व अलग अलग था और परिणाम भी. पूर्वी ग्रीन ने 8 सीटें जीतीं, पश्चिमी ग्रीन संसद में नहीं पहुंच पाए.
लगा बड़ा झटका
अक्टूबर 1992 में पार्टी के प्रमुख नेताओं पेट्रा केली और उनके जीवन साथी गेर्ड बास्टियान का शव मिलने से पार्टी को बड़ा झटका लगा. जांच से पता चला कि बास्टियान ने पहले सोई पेट्रा केली को गोली मारी और फिर खुद को.
हुआ विलय
1993 में ग्रीन पार्टी और पूर्व जीडीआर की नागरिक आंदोलनों वाले समूह 'एलायंस 90' का विलय हो गया और मिलकर बनी पार्टी 'द ग्रीन्स' कहलायी.
सयानी हुई पार्टी
ग्रीन पार्टी में शुरू में ऐसी कई नीतियां भी थीं, जो रोजमर्रा में व्यावहारिक नहीं मानी जाती थीं. इससे सबक लेकर सन 1994 के चुनाव में पहली बार ग्रीन पार्टी ने अपने मुद्दों से ज्यादा व्यक्ति विशेष को प्रमुखता दी. और वह व्यक्ति थे उनके जाने माने नेता योश्का फिशर.
बदली पीढ़ी
सीडीयू के हेल्मुट कोल के 16 साल तक चांसलर रहने के बाद एक युग का अंत हुआ. फिर 1998 में एसपीडी और ग्रीन पार्टी की साझा सरकार बनी. गठबंधन समझौते पर दस्तखत करते हुए मनोनीत चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर, मनोनीत विदेश मंत्री योश्का फिशर और मनोनीत वित्त मंत्री ऑस्कर लाफोन्टेन.
नेतृत्व का विरोध
ग्रीन पार्टी के बहुत से सदस्यों का मानना था कि सरकार में शामिल होने के बाद भी परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को रोकने में बहुत देर की जा रही है. इसके अलावा रेडियोएक्टिव कचरे के निपटारे को लेकर भी देश में काफी विरोध प्रदर्शन हुए.
फिशर के बाद
केंद्र सरकार में इस तथाकथित रेड-ग्रीन गठबंधन के खत्म होने के छह महीने बाद ही योश्का फिशर ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया. इसके बाद से पार्टी के नेतृत्व को लेकर बड़ा सवाल आ खड़ा हुआ.
कारों की दुनिया से
पार्टी के लिए यह खुशी की बात थी और विरोधियों को बड़ा झटका. 2011 में विनफ्रीड क्रेचमान पहले ग्रीन मुख्यमंत्री बने. और वह भी डायमलर और पोर्शे जैसी मशहूर कारों के जर्मन राज्य बाडेन वुर्टेमबुर्ग में.
विपक्ष में प्रतिनिधित्व
ग्रीन पार्टी के सदस्य 2005 से लेकर 2013 तक संसद में विपक्षी दलों में शामिल रहे. 2005-09 के बीच केंद्र में सीडीयू/सीएसयू के साथ एसपीडी और उसके बाद से एफडीपी के गठबंधन वाली सरकारें रहीं. इस दौरान बुंडेसटाग में ग्रीन पार्टी के 68 सदस्य थे जो कि एक बड़ी संख्या थी.
2013 के चुनाव में हाल
2013 के आम चुनाव तक भी ग्रीन पार्टी अपने पुराने मूल्यों पर कायम थी. बुंडेसटाग चुनाव के लिए नेताओं का नाम पार्टी के सदस्यों से पूछ कर तय किया गया. इस बार ग्रीन पार्टी से संसद में 63 सदस्य पहुंचे. पार्टी के प्रमुख चुने गये कातरीन ग्योरिंग-एकर्ट और आनतोन होफराइटर.
मौजूदा नेतृत्व और 2017 से उम्मीदें
इस समय पार्टी का नेतृत्व 50 वर्षीया कातरीन ग्योरिंग-एकर्ट और 51 वर्षीय चेम ओएज्देमीर कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आज ग्रीन पार्टी की सारी नीतियां मुख्यधारा वाली पार्टियों ने अपना ली हैं, जिसके कारण पार्टी आज नये मुद्दों और करिश्माई व्यक्तित्व वाले नेता की कमी से जूझ रही है. इस चुनाव में उनके सामने संसद में जगह बना पाना भी चुनौतीपूर्ण है.