पश्चिम बंगाल में फिर आमने सामने राज्यपाल और मुख्यमंत्री
१ अक्टूबर २०२०ताजा विवाद राज्यपाल के उस पत्र को लेकर शुरू हुआ है जो उन्होंने कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र को भेजा था. ममता ने इस मुद्दे पर बीते सप्ताह राज्यपाल को एक पत्र लिखा था. अपने नौ पेज के जवाबी पत्र में उन्होंने राज्यपाल पर राजनीतिक पार्टी के एजेंट के तौर पर काम करने का आरोप लगाते हुए उनको संविधान के दायरे में रहने की नसीहत दी थी. उसके बाद राज्यपाल ने भी अपने जवाबी हमले में राज्य सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि उनको धारा 154 के तहत राज्य की शक्तियां अपने हाथ में लेने पर विचार करना होगा.
ताजा मामला
दरअसल, इस महीने की शुरुआत में पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र को लिखे पत्र में धनखड़ ने राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की थी. इस पर महानिदेशक की ओर से दो लाइन का जवाब दिए जाने के बाद धनखड़ ने उनको 26 सितंबर तक मुलाकात करने और कानून-व्यवस्था में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का ब्योरा देने को कहा था. उस पत्र का जवाब महानिदेशक की बजाय 26 अक्टूबर को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भेजा.
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में नाराजगी जताते हुए लिखा था कि वे (राज्यपाल) संवैधानिक दायरे को पार कर मुख्यमंत्री पद की अनदेखी करने और राज्य के अधिकारियों को आदेश देने से दूर रहें. ममता ने अपने पत्र में लिखा था, "मैं आपके पत्र और पुलिस महानिदेशक को संबोधित टिप्पणी को पढ़ने के बाद बेहद उदास और दुखी हुई, जिसे मेरे समक्ष प्रस्तुत किया गया था. साथ ही साथ इस बारे में आपके ट्विटर पोस्ट को देखकर भी दुख हुआ."
ममता के इसी पत्र के जवाब में राज्यपाल धनखड़ ने राजभवन में बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार को चेतावनी दी है. उन्होंने पुलिस पर सत्ताधारी तृणमूल के निजी कैडर के रूप में काम करने का आरोप लगाया है. धनखड़ का कहना था, "अगर संविधान की रक्षा नहीं की गई तो मुझे एक्शन लेना होगा. राज्यपाल के दफ्तर को लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा है. मैं संविधान के अनुच्छेद 154 पर विचार करने को मजबूर हो जाऊंगा.”
राज्यपाल ने कहा है कि बंगाल एक पुलिस स्टेट में बदल चुका है. पुलिस शासन और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चल सकते. यहां कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. माओवादी उग्रवाद अपना सिर उठा रहा है. आतंकवादी मॉड्यूल भी राज्य में सक्रिय हैं. लंबे समय से इसकी अनदेखी हो रही है. इसीलिए उनको इस पर कुछ कदम उठाना होगा.'
धनखड़ ने कहा कि वह शासन के मामलों में पक्षकार हैं. उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री को यह गलत धारणा है कि राज्यपाल का पद केवल डाकघर या रबर स्टांप है.
राज्यपाल ने इससे पहले पीएम किसान योजना को लेकर भी ममता से सवाल किया था कि केंद्र सरकार जब किसानों के खाते में सीधे पैसा दे रही है तो राज्य सरकार इस में बिचौलिया क्यों बनना चाह रही है? दरअसल ममता ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा है कि अगर पैसा राज्य सरकार के माध्यम से जारी किया जाता है तो वह यहां पीएम किसान व आयुष्मान भारत योजना लागू करने को तैयार हैं. इसी पर राज्यपाल ने सवाल उठाया था.
राज्यपाल ने बीते साल कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से चिट फंड घोटाले की जांच के सिलसिले में पूछताछ की सीबीआई की कोशिश के खिलाफ मुख्यमंत्री के धरने का जिक्र करते हुए कहा है कि जिनको जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, उनको बचाना लोकतांत्रिक शासन के अंत का सूचक है. पहले यह भौतिक तरीके से किया गया और अब पत्र के माध्यम से किया गया है.'
पुराना है विवाद
अब तक शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा है जब राज्यपाल ने अपने ट्वीट के जरिए सरकार, पुलिस औऱ प्रशासनिक अधिकारियों को कठघरे में नहीं खड़ा किया हो. वह चाहे कोरोना का मुद्दा हो, राशन वितरण का या फिर अम्फान महामारी के बाद राहत और बचाव कार्यों का, राज्यपाल लगातार सरकार पर हमले करते रहे हैं.
हालांकि पिछले राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी राज्य सरकार के साथ उनके रिश्ते काफी तल्ख हो गए थे. नए राज्यपाल के साथ तो उनके शपथ लेने के महीने भर बाद से ही टकराव शुरू हो गया था. धनखड़ ने बीते साल 30 जुलाई को राज्यपाल के तौर पर शपथ ली थी. उस शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल के बीच काफी सद्भाव नजर आया था. लेकिन वह पहला मौका था.
उसके बाद यह दोनों लोग औऱ दो बार साथ नजर आए थे. वह मौका था बीते साल ममता के घर आयोजित कालीपूजा का. तब राज्यपाल सपत्नीक उनके घर गए थे. उसके बाद ममता ने एक बार राजभवन जाकर उसे मुलाकात की थी. लेकिन उसके बाद इन दोनों के बीच विवादों का सिलसिला लगातार तेज हुआ है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में संवैधानिक और प्रशासनिक प्रमुख के बीच लंबे अरसे से जारी टकराव लोकतंत्र के हित में नहीं हैं. इससे खासकर अगले साल होने वाले अहम विधानसभा चुनावों की वजह से भी कई मुद्दों पर गतिरोध पैदा होने का अंदेशा है. पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस मामले में मध्यस्थता कर सुलह-सफाई का प्रयास करना चाहिए ताकि प्रशासनिक गतिरोध से बचा जा सके. दोनों पक्षों को एक-दूसरे से ढेरों शिकायतें हैं. आपसी बातचीत के जरिए इन शिकायतों के निपटारे और मतभेदों को दूर करने की दिशा में ठोस पहल की जानी चाहिए.”