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पश्चिम में मंदी, एशिया को जल्दी

२१ सितम्बर २००९

यूरोप और अमेरिका साल भर पहले शुरू हुए वित्तीय संकट के बाद अब भी आर्थिक मंदी से कराह रहे हैं, जबकि एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मात्र कुछ खरोंचें भर आयी हैं. जर्मन दैनिक इस पर चकित हैं.

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भारत में मोबाइल फ़ोन संसार में सबसे सस्तेतस्वीर: picture-alliance / maxppp

म्यूनिक के ज़्युइडडोएचे त्साइटुंग के अनुसार भारत और चीन ही नहीं, कई अन्य एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाएँ भी इस बीच कुलांचे भरने लगी हैं. नये अनुमानों के आधार पर पत्र ने लिखाः

"आश्चर्यजनक यह है कि 1997-98 के एशियाई आर्थिक संकट और पिछले वर्ष के शेयर बाज़ार ग़ोतों के बाद भी प्रेक्षक यही भविष्यवाणी कर रहे थे कि एशिया अब वर्षों तक ठहराव का शिकार रहेगा. लेकिन दोनो बार कुछ और ही देखने में आया. इस बार का आर्थिक विकास हमेशा के संदिग्ध भारत और चीन में ही नहीं देखने में आ रहा है, अन्य देशों में भी है. बहुत से अर्थशास्त्री मानते ही नहीं थे कि ऐसा संभव भी है."

जर्मनी के आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट का कहना है कि भारत के मोबाइल फ़ोन बाजार में प्रतिस्पर्धा संसार में सबसे कड़ी है. भारत सरकार नये लाइसेंस नीलाम करने जा रही है, जिससे इस प्रतिस्पर्धा की आग में और घी पड़ेगा. पत्र ने लिखाः

"मोबाइल फ़ोन से एक मिनट की बातचीत पर भारत में केवल दो सेंट लगते हैं. संसार में और कहीं मोबाइल फ़ोन इतना सस्ता नहीं है. नेट ऑपरेटरों के बीच प्रतिस्पर्धा ज़बर्दस्त है. अपनी कमाई वे मुख्य रूप से नये ग्राहकों की भीड़ के द्वारा करते हैं. नये ग्राहक बनाने की अब भी भारी गुंजाइशें हैं. भारत के एक अरब 20 करोड़ निवासियों में से केवल एक-तिहाई के पास ही मोबाइल फ़ोन है. एक सस्ता मूल्य ढांचा कैसा होना चाहिये, इस संदर्भ में भारत अंतरराष्ट्रीय मोबाइल फ़ोन ऑपरेटरों के लिए परीक्षण-प्रयोगशाला बन गया है."

बर्लिन के टागेसत्साइटुंग का मानना है कि भारत के माओवादी सरकार और जातिप्रथा के विरुद्ध व्यर्थ की लड़ाई लड रहे हैं. पत्र कहता हैः

"मानवाधिकार संस्थाएं सरकार और माओवादियों, दोनो पर मानवाधिकारों के घोर उल्लंघनों के आरोप लगाती हैं. भारत में ग़रीबों की बदहाली और जातिप्रथा के विरुद्ध विद्रोह समझ में तो आता है, लेकिन माओवादियों का तथाकथित जनयुद्ध भी कोई बेहतर भविष्य नहीं दे सकता. माओवादियों की न तो कथनी और न करनी ही आशा का कोई कारण देती है."

संकलन- अना लेमान / राम यादव

संपादन- उज्ज्वल भट्टाचार्य