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समाज

भारत को अपना मुल्क मानते हैं पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी

११ दिसम्बर २०१९

दिल्ली के मजलिस पार्क इलाके में 600 के करीब हिंदू शरणार्थी रहते हैं, झुग्गी बस्ती में सुविधा के अभावों में उनकी जिंदगी बहुत कठिन है.

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Indien Hindu Flüchtlinge aus Pakistan
तस्वीर: DW/A. Ansari

नागरिकता संशोधन बिल के लोकसभा में पास हो जाने के बाद पाकिस्तान से आई हिंदू शरणार्थी मोहिनी की आंखों में खुशी के आंसू हैं. वह बताती हैं कि कैसे उनके साथ पाकिस्तान में बर्ताव होता था. मोहिनी का कहना है कि वह पढ़ी लिखी नहीं हैं और अपनी उम्र सही-सही नहीं बता पाएंगी लेकिन अंदाजन उनकी उम्र 65-70 साल के बीच होगी.

डीडब्ल्यू से बातचीत में मोहिनी ने भारत आने के बाद के अनुभव के बारे में कहा, "हम यहां करीब 6-7 साल से इसी तरह से झुग्गी बस्ती में रह रहे हैं. मेरी तो उम्र हो गई है लेकिन मेरे बच्चे ठेला चलाते हैं, मेट्रो स्टेशन के नीचे मोबाइल कवर बेचते हैं, सब्जी बेचते हैं. बस किसी तरह से हमारा गुजारा हो रहा है. यहां पर बिजली और पानी नहीं है. फिर भी यहां हम खुशी से गुजारा कर रहे हैं. हमारा अब यही देश है, भारत ही हमारा मुल्क है."

मोहिनी कहती है कि अब कुछ भी हो जाए वह पाकिस्तान नहीं लौटेंगी. पाकिस्तान का नाम आते ही मोहिनी भावुक होकर कहती हैं, "वहां बहुत जुल्म हुआ, वहां हम लोगों के लिए कुछ नहीं है. पाकिस्तान में तो हिंदुओं की कद्र ही नहीं है. हिंदू को वहां कुछ करने नहीं देते हैं. स्कूलों में हिंदू बच्चों को इस्लाम की शिक्षा दी जाती है. हम किसी तरह से वहां से यह सब सहन कर भारत आ गए हैं."

दिल्ली के मजलिस पार्क मेट्रो स्टेशन के पास मोहिनी की तरह पाकिस्तान से आए करीब 600 हिंदू शरणार्थी रहते हैं. इनमें बूढ़े, बच्चे, महिलाएं और युवा शामिल हैं.

शुरुआत में जब हिंदू शरणार्थी दिल्ली आए तो उन्हें इसी इलाके में रहने को कहा गया. बीते 6 साल से हिंदू शरणार्थी परिवार तिनका-तिनका जोड़कर झुग्गी को घर बनाने में लगे हुए हैं. इस बस्ती में रहने वाले शरणार्थियों का कहना है कि यहां 200 के करीब झुग्गियां हैं.

70 साल के देवा बताते हैं कि वह तीन साल पहले भारत आए, जब उनसे भारत आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने लाइव टीवी शो की तरफ इशारा करते हुए कहा, "आप देख ही रहे हैं हमें वहां किस तरह की तकलीफ होती थी." देवा का कहना है, "हम सबकुछ छोड़कर पाकिस्तान से यहां आ गए. वहां तकलीफ थी तभी हम यहां आए. यही अपना देश है. हमारा भी इस देश पर हक है."

नागरिकता संशोधन बिल संसद में पेश हो जाने के बाद इस शरणार्थी कैंप में मीडिया की चहल कदमी बढ़ गई है. देवा भी झुग्गी बस्ती में आए न्यूज एंकरों और विशेषज्ञों की बहस देख रहे हैं. बहस देख देवा भी उत्तेजित हो जाते हैं और ताली बजाते हैं.

उन्हें उम्मीद है कि कानून बनने के बाद उनकी तरह आए लोगों को भारत में आसानी से नागरिकता मिल पाएगी. इसी शरणार्थी कैंप में परचून की दुकान चलाने वाली 30 साल की लता बताती हैं कि वह पासपोर्ट और वीजा के सहारे भारत पहुंची थी. लता ने बताया कि उन्हें दस्तावेजों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि वह पढ़ी लिखी नहीं है.

लता का भाई दिल्ली में ठेला चलाता है और वह राशन बेचकर किसी तरह से अपना गुजारा करती हैं. लता बताती हैं कि झुग्गी बस्ती में रहना उन लोगों के लिए कितना कठिन है,"भगवान ने हमें हाथ-पैर दिए हैं, हम अपना गुजारा कर लेते हैं. लेकिन बिजली और पानी नहीं होने से यहां रहने में बहुत समस्या होती है."

पिछले कुछ दिनों से बस्ती में बढ़ी गतिविधियों से लता को भी पता चल गया है कि देश में उन जैसे लोगों को नागरिकता देने के बिल पर बहस छिड़ी हुई है. लता कहती हैं, "हम हिंदुस्तान के ही होना चाहते हैं, हमें नागरिकता भी चाहिए. हम हिंदुस्तान में ही रहना चाहते हैं." लता का पूरा परिवार इसी बस्ती में रहता है.

इस झुग्गी बस्ती में हैदराबाद सिंध, नवासा से आए ज्यादातर शरणार्थी रहते हैं. बस्ती में स्कूल भी है जहां बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जाती है.  बस्ती में दाखिल होते ही एक मंदिर है जहां शरणार्थी सुबह शाम पूजा करते हैं. मंदिर के पुजारी सोना दास बताते हैं, "यहां हमें पूजा करने से कोई नहीं रोकता है."

मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हुए सिया बताती है कि उनका पति रिक्शा चलाता है, जो परिवार ने किस्त पर लिया है. सिया भी पाकिस्तान में सिंध के हैदराबाद की रहने वाली हैं लेकिन कहती हैं कि वहां बच्चों को हिंदू धर्म की शिक्षा नहीं दी जाती थी. सिया की बेटी सविता ने बताया कि वह यहां कितनी खुश है. सविता के मुताबिक, "हम यहां स्कूल में पढ़ने के लिए जाते हैं.अपने धर्म के बारे में भी पढ़ते हैं. इंडिया में पढ़ाई भी अच्छी होती है." सविता छठी क्लास में पढ़ती है.

इस शरणार्थी बस्ती में इन दिनों माहौल खुशनुमा है. सभी को उम्मीद है कि नागरिकता संशोधन बिल पास हो जाने के बाद उनकी जिंदगी आसान हो जाएगी. बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो जाएगा और सरकार इस झुग्गी बस्ती पर भी ध्यान देगी. 

30 साल की सोनारी कहती है, "हमें नागरिकता मिलनी चाहिए क्योंकि हमें हर बार वीजा बढ़ाने के लिए फीस के तौर एक हजार रुपये देने पड़ते हैं."

अधिकतर लोग झुग्गी बस्ती की हालत को लेकर चिंता जताते हैं. वह कहते हैं कि स्वच्छता की कमी के कारण अक्सर लोग बीमार हो जाते हैं.

मोहिनी को उम्मीद है कि जल्द ही उनकी कठिनाई भरी जिंदगी खत्म हो जाएगी और परिवार खुशी के साथ भारत में बतौर नागरिक गुजर बसर कर पाएगा.

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