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पानी संकट के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है भारत

५ जुलाई २०१८

दिल्ली की चकाचौंध के बीच यहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां मूलभूत जरूरतों का मानो अकाल है. यहां पानी का संकट हिंसक रूप ले चुका है जिसमें लोगों ने जानें गंवाई हैं. क्या सरकार के पास इससे निपटने का कोई समाधान है?

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indien Wasserkrise in Delhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta

दिल्ली में पानी की समस्या कोई नई बात नहीं है लेकिन वजीरपुर की रहने वाली सुशीला देवी ने इसकी भारी कीमत चुकाई है. पानी को लेकर मचे हाहाकार ने हिंसक रूप लिया जिससे उनके पति और बेटे की जान चली गई. 40 वर्षीय सुशीला बताती हैं कि पानी की काफी कमी है और इसलिए कीमत बहुत ज्यादा है. बीते मार्च में जब पानी का टैंकर आया, तो मोहल्ले के लोगों में विवाद हो गया जिसके बाद हुई मारपीट में उन्होंने अपने पति और बेटे को हमेशा के लिए खो दिया.

इस घटना के बाद सरकार की नींद टूटी और इस मलिन बस्ती में पानी की सप्लाई शुरू हुई. सुशीला के मुताबिक, यह पानी पूरी तरह साफ नहीं है, लेकिन पिया जा सकता है. नहाने और बर्तन-कपड़े धोने के लिए ठीक है, "पहले तो इतना गंदा पानी आता था कि हम हाथ-पैर भी नहीं धो सकते थे. वह पानी जहर के समान था."

जून में आई केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि देश पानी के संकट के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. उत्तरी हिमालय क्षेत्र से लेकर तटीय इलाकों तक करीब 60 करोड़ (लगभग आधी आबादी) पानी की कमी से जूझ रही है. हर साल प्रदूषित पानी की वजह से दो लाख लोगों की जानें जा रही हैं. सुशीला जैसी कई औरतें हैं जो रोजाना पाइप या बाल्टी को लेकर लाइन में खड़ी हो जाती हैं और टैंकर से पानी भरकर घर लाती है. कभी-कभी पानी के नल से कुछ बूंदे गिरती हैं, लेकिन वह गंदी होती हैं. विशेषज्ञों की राय में ऐसे पानी से संक्रमण, अपंगता और यहां तक की मौत भी हो सकती है. यही वजह है कि मलिन बस्ती की महिलाएं नल के पानी का इस्तेमाल नहीं करती और नगर पालिका के वॉटर टैंकर के आने का इंतजार करती हैं.

 दिल्ली में लाखों लोगों को पानी की किल्लत

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 70 फीसदी पानी प्रदूषित है, जिसका मतलब है कि हर चार में से तीन भारतीय गंदा पानी पीने को मजबूर है. भारत में बड़ी दिक्कत गंदे पानी को साफ न करने की है. रिपोर्ट बताती है कि देश में गंदे पानी का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा साफ किया जाता है और बाकी नदी या तालाब में गिरा दिया जाता है जिससे भूजल प्रदूषित होता है. रिपोर्ट बनाने वाले अविनाश मिश्र के मुताबिक, "नदियों का पानी प्रदूषित है, भूजल और नल का पानी गंदा हो चुका है. यह सब इसलिए क्योंकि ठोस कचरे को साफ करने के लिए हमारा कोई प्रबंधन नहीं है."

किसानों और उच्चवर्ग द्वारा भूजल के पानी को बेतरतीब ढंग से निकालने की वजह से पानी का लेवल नीचे जा चुका है. रिपोर्ट ने आशंका जाहिर की है कि अगर ऐसा ही रहा तो दिल्ली और बेंगलुरु समेत 21 शहरों में साल 2020 तक भूजल खत्म होने की कगार पर आ जाएगा जिसका असर 10 करो़ड़ लोगों पर पड़ेगा. कभी "झीलों का शहर" कहे जाने वाला बेंगलुरु अब सूख चुका है. वहीं, राजधानी दिल्ली में यमुना मानो कराह रही है. वहां पानी की जगह सफेद झाग दिखाई देता है. 

पानी की दिक्कत से परेशान बंगलुरु

वॉटरएड इंडिया के हेड वीके माधवन का कहना है कि भारत में भूजल इतना प्रदूषित हो चुका है कि इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा पाई गई है. फसलों पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से भूजल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ती जा रही है. इन केमिकल्स की मात्रा इतनी ज्यादा हो गई है कि पानी में कीटाणुओं से होने वाली बीमारियां जैसे टाइफॉइड, डायरिया की समस्याएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. 

नदियों का बुरा हाल

नीति आयोग की एक रिपोर्ट का दावा है कि अगर भारत में पानी की समस्या को सुलझा लिया गया तो इससे देश की जीडीपी को छह फीसदी का फायदा होगा. मिश्र बताते हैं, "हमारी इंडस्ट्री, खाद्य सुरक्षा सबकुछ पानी से जुड़ी हुई है. पानी कोई असीमित स्रोत नहीं है और एक दिन यह खत्म हो सकता है. 2030 तक भारत में पानी की सप्लाई मांग के मुकाबले आधी रह जाएगी."

फिलहाल इस बड़ी समस्या से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से कहा है कि वे पानी को साफ करने की योजना को प्राथमिकता दें जिससे पानी की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाया जा सके. 

वीसी/आईबी (रॉयटर्स)

कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े