पूर्वोत्तर के लिए खतरे की घंटी है उल्फा की सक्रियता
२२ जनवरी २०२१पूर्वोत्तर के अपेक्षाकृत शांत समझे जाने वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश में यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (उल्फा) के परेश बरुआ वाले स्वाधीन (आई) गुट की ओर से एक तेल कंपनी के दो कर्मचारियों के अपहरण और उनकी रिहाई के बदले 20 करोड़ की फिरौती मांगने की घटना पूर्वोत्तर के लिए खतरे की घंटी है. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन), उल्फा के अरविंद राजखोवा गुट और बोडो उग्रवादी संगठनों के साथ जारी शांति प्रक्रिया की वजह से बीते कुछ बरसों से इलाके में उग्रवादी गतिविधियों पर काफी हद तक अंकुश लगा था.
अब इस ताजा घटना ने इलाके में अस्सी और नब्बे के दशक के उस दौर की यादें ताजा कर दी हैं जब पैसों के लिए खासकर चाय बागान मैनेजरों व मालिकों के अलावा तेल व गैस कंपनियों के अधिकारियों का अपहरण रोजमर्रा की घटना बन गई थी. उस समय तमाम निजी और सरकारी कंपनियों के कर्मचारियों में भारी आतंक था. लोग इलाके में नौकरी करना ही नहीं चाहते थे. उस दौर में सैकड़ों कंपनियों ने अपना कारोबार समेट लिया था. अब एक बार फिर इस ताजा घटना से इलाके में खासकर बाहरी लोगों में भारी आतंक फैल गया है.
सरकार की चिंता बढ़ी
उल्फा (आई) ने हाल में अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले में ऑयल इंडिया लिमिटेड के तहत काम करने वाली कंपनी क्विप्पो ऑयल एंड गैस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के दो कर्मचारियों पीके गोगोई और राम कुमार का अपहरण कर लिया था. अपहरण के कई दिनों बाद संगठन ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए फिरौती के तौर पर 20 करोड़ रुपये की मांग की है.
इस मामले ने प्रशासन व सरकार की चिंता बढ़ा दी है. राज्य के तिराप, चांगलांग और लांगडिंग जिले लंबे अरसे तक नागा उग्रवाद के शिकार रहे हैं. इन जिलों में कई भूमिगत संगठन सक्रिय हैं. उनकी वजह से आम लोगों का जीना दूभर रहता है. लेकिन इससे पहले अपहरण की घटनाएं नहीं के बराबर होती थीं.
सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि पहले उल्फा का परेश बरुआ वाला स्वाधीन गुट इस इलाके में सक्रिय नहीं था. लेकिन मूल संगठन से अलग होने के बाद अब असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर स्थित घने जंगलों की वजह से यह इलाका उसके लिए काफी मुफीद साबित हो रहा है. असम में सुरक्षा बलों की सक्रियता बढ़ने पर संगठन के सदस्य इसी इलाके में शरण लेते थे. लेकिन अब तक खास कर ऊपरी असम में सक्रिय रहने वाले इस संगठन के अरुणाचल में अपहरण जैसी वारदात में शामिल होना सुरक्षाबलों और सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया है.
सुरक्षा एजंसियां इस मामले में स्थानीय लोगों के शामिल होने की संभावना का भी पता लगा रही है. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, स्थानीय लोगों के समर्थन के बिना उल्फा के लिए आहरण की इस घटना को अंजाम देना संभव नहीं होता.
पुलिस और सुरक्षाबल के जवान बंधकों की रिहाई के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चला रहे हैं. लेकिन उनको अब तक कामयाबी नहीं मिली है. इसबीच, उल्फा ने दोनों बंधकों का एक वीडियो भी जारी किया है. संगठन ने कहा है कि अगर फिरौती की रकम नहीं मिली तो नतीजे गंभीर होंगे. वीडियो में दोनों बंधकों ने असम और बिहार के मुख्यमंत्रियों से शीघ्र रिहाई के लिए कदम उठाने की अपील की है. उन्होंने अपनी कंपनी से भी उल्फा के साथ बात करने का अनुरोध किया है.
जिन दोनों लोगों का अपहरण किया गया है उनमें से पीके गोगोई असम के शिवसागर जिले के रहने वाले हैं और राजकुमार बिहार के. पुलिस क मुताबिक, उल्फा के पंद्रह उग्रवादियों ने ड्रिलिंग लोकेशन से पैदल ही उनका अपहरण किया था. चांगलांग जिला असम के तिनसुकिया जिले के अलावा म्यांमार की सीमा से जुड़े होने की वजह से बेहद संवेदनशील इलाका है.
उल्फा के कमांड-इन-चीफ परेश बरुआ ने इस सप्ताह असम के एक स्थानीय चैनल के साथ बातचीत में धमकी दी थी कि अगर तेल कंपनी ने उनकी मांग नहीं मानी तो बिहार के राजकुमार को शारीरिक नुकसान पहुंच सकता है, पहला हमला उसी पर किया जाएगा.
शिवसागर में रहने वाले गोगोई के परिजनों ने भी उल्फा से गोगोई को शीघ्र रिहा करने की अपील की है. उनकी पत्नी नमिता गोगोई कहती हैं, "मैं सरकार, तेल कंपनी और अपहरणकर्ताओं से अपने पति को शीघ्र और सुरक्षित रिहा करने की अपील करती हूं.”
सुरक्षा एजंसियों का कहना है कि कोरोना और इसकी वजह से चले लंबे लाकडाउन के दौरान उग्रवादी संगठनों ने चांगलांग जिले में अपना संगठन मजबूत कर लिया है. दिसंबर 2020 में इसी जिले में ईनाओ के पास भी एक ड्रिलिंग लोकेशन से तेल कंपनी के कुछ कर्मचारियों का अपहरण कर लिया गया था. बाद में उनको सुरक्षित रिहा करा लिया गया था.
पुराना है अपहरण का इतिहास
चाय बागानों और सरकारी कंपनियों के अधिकारियों का अपहरण फिरौती में मोटी रकम वसूलना उल्फा की पुरानी कार्यप्रणाली रही है. इसके साथ ही कई चाय बागान और सरकारी कंपनियां इस संगठन को प्रोटेक्शन मनी के तौर पर हर साल करोड़ों रुपये देती थी. उस दौरान टाटा समूह के चाय बागानों के साथ उल्फा की साठ-गांठ के खुलासे ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सुर्खियां बटोरी थीं. इस मामले में टाटा समूह के कई वरिष्ठ अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई थी.
अस्सी और नब्बे के दशक में संगठन ने इसी तरीके से करोड़ों की रकम जुटाई थी जिसका इस्तेमाल खासकर चीन से हथियार खरीदने और उल्फा कांडरों की ट्रेनिंग के लिए किया जाता था. फर्क यह था कि उस समय यह संगठन असम में ही सक्रिय था. लेकिन कुछ साल पहले जब उल्फा ने शांति प्रक्रिया में शामिल होने का फैसला किया तो संगठन में नंबर दो रहे परेश बरुआ इसके खिलाफ थे. उन्होंने अध्यक्ष अरविंद राजखोवा से बगावत कर अपना अलग गुट बना लिया जो उल्फा (स्वाधीन) के नाम से जाना गया. यह संगठन पहले भी छिटपुट वारदातें करता रहा है. लेकिन पड़ोसी अरुणाचल में किसी सरकारी कर्मचारी के अपहरण का यह पहला मामला है.
सुरक्षा विशेषज्ञों ने उल्फा की बढ़ी सक्रियता पर गहरी चिंता जताई है. एक विशेषज्ञ ज्योति गोगोई कहते हैं, "उल्फा से अलग होकर अब असम के अलावा पड़ोसी अरुणाचल में परेश बरुआ गुट की बढ़ती सक्रियता सुरक्षा एजंसियों और सरकार के लिए चिंता का विषय है. अपनी प्राकृतिक बसावट और घने जंगलों व म्यांमार से लगती सीमा की वजह से खासकर चांगलांग जिला उग्रवादी संगठनों के लिए काफी मुफीद साबित होता रहा है. अब उल्फा ने अगर वहां अपने कदम जमाए हैं तो बाकी संगठनों के साथ उसकी तालमेल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.” उनका कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार को सुरक्षा एजंसियों के साथ तालमेल रखते हुए इस खतरे से निपटने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी.
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