पैसिफिक देशों को अब क्यों मिल रही है तवज्जो?
१३ जुलाई २०२२कोविड-19 महामारी के बाद पहली बार फिजी में हो रहे पैसिफिक आईलैंड फोरम को वीडियो लिंक के जरिए संबोधित करते हुए हैरिस ने कहा कि टोंगा और किरीबाती में नए दूतावास खोले जाएंगे. किरीबाती ने इसी हफ्ते फोरम से अलग होने का ऐलान किया था, जिसे 18 देशों के संगठन की एकता के लिए झटका माना गया.
हैरिस ने एलान किया कि उनकी सरकार अमेरिकी कांग्रेस से अनुरोध करेगी कि मत्स्य उद्योग में मदद तीन गुना बढ़ाकर छह करोड़ डॉलर कर दिया जाए और पैसिफिक फोरम के लिए एक स्थायी दूत भी नियुक्त किया जाए. हैरिस ने कहा, "अमेरिका को पैसिफिक देश होने पर गर्व है और प्रशांत महासागर के द्वीपों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता सदा रहने वाली है. इसीलिए राष्ट्रपति जो बाइडेन और मैं आपके साथ साझेदारी को और मजबूत करना चाहते हैं."
हैरिस ने माना कि अब तक अमेरिका ने इस क्षेत्र पर जरूरी ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा, "हम इस बात को मानते हैं कि हाल के बरसों में पैसिफिक द्वीपों को उतना कूटनीतिक ध्यान व सहयोग नहीं मिला, जितने के वे हकदार हैं. इसलिए आज मैं आपसे सीधे तौर पर कह रही हूं कि हम इस स्थिति को बदलने वाले हैं."
अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के सबसे धनी देश ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड को इस बात की चिंता है कि छोटे देशों पर चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. इसी साल की शुरुआत में चीन ने सोलोमन आईलैंड के साथ रक्षा समझौता किया था, जिसे लेकर ये तीनों देश खासे फिक्रमंद हैं. उन्हें डर है कि यह समझौता चीन का प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया के तट से सिर्फ 2,000 किलोमीटर दूर एक थल सैनिक अड्डा बनाने का रास्ता साफ कर सकता है.
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इसके अलावा अप्रैल-मई में चीन ने पैसिफिक फोरम के देशों से एक रणनीतिक समझौता करने की भी कोशिश की थी. हालांकि, यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई, क्योंकि फोरम के देशों ने कहा कि वे इसके बारे में आपस में विचार-विमर्श करना चाहते हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि चीन क्षेत्र में लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और उसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया काफी सक्रियता दिखा रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के हित
पैसिफिक फोरम में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी भी सुवा पहुंचे हैं. वह सोलोमन आईलैंड के प्रधानमंत्री मनासेह सोगावारे से भी अलग से मुलाकात करने वाले हैं. दोनों देशों के बीच पहले से ही एक रक्षा समझौता है, जिसके तहत द्वीप में शांति बनाए रखने के लिए ऑस्ट्रेलियाई पुलिस की तैनाती का प्रावधान है. पिछले साल होनियारा द्वीप पर हिंसक दंगे होने के बाद से वहां ऑस्ट्रेलिया के पुलिसकर्मी तैनात हैं.
मई में ही सत्ता में आई ऑस्ट्रेलिया की अल्बानीजी सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर और ज्यादा जोर-शोर से काम करने का वादा किया है, जो पैसिफिक फोरम की मुख्य चिंताओं में से एक है. ऑस्ट्रेलिया ने क्षेत्रीय मदद पर 52.5 करोड़ डॉलर अतिरिक्त खर्च करने का वादा किया है.
अल्बानीजी ने कहा, "मेरा संदेश होगा कि ऑस्ट्रेलिया लौट आया है. पैसिफिक के साथ संवाद होगा. यह एक नया युग है. सहयोग का नया युग और मेरा एक संदेश यह है कि पैसिफिक को मदद किसी शर्त पर आधारित नहीं होगी."
हाल ही में किरीबाती और सोलोमन आईलैंड ने ताईवान की कूटनीतिक मान्यता को बदल दिया था. उसके बाद किरीबाती ने फोरम से ही खुद को बाहर करने की घोषणा कर दी. इन कदमों को चीन की ओर उनके झुकाव के संकेत माना जा रहा है. हालांकि, चीनी मामलों के विशेषज्ञ, मेलबर्न यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर प्रदीप तनेजा ऐसा नहीं मानते. विशेषकर किरीबात को लेकर वह कहते हैं कि पैसिफिक फोरम से उसका हटना संगठन के भीतर और देश की अंदरूनी राजनीति की वजह से ज्यादा है.
डॉ. तनेजा बताते हैं, "किरीबात माइक्रोनेशियाई देश है और एक अलिखित समझौता था कि इस बार फोरम की अध्यक्षता किसी माइक्रोनेशियाई देश को मिलेगी. चूंकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए किरीबात के राष्ट्रपति खासे नाराज थे. तो मुझे लगता है कि चीन का प्रभाव उसके हटने के पीछे ज्यादा बड़ा कारण नहीं है, बल्कि उनके अपने यहां की राजनीति और फोरम की राजनीति जिम्मेदार है."
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क्यों अहम है पैसिफिक फोरम?
पैसिफिक आईलैंड फोरम प्रशांत महासागर के बीच या किनारों पर बसे देशों का संगठन है, जिसकी स्थापना 1971 में हुई थी. इसके 18 सदस्य हैं. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे धनी देशों के साथ-साथ फिजी, फ्रेंच पॉलीनीजिया, नाऊरू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, टोंगा, सोलमन आईलैंड्स आदि छोटे-छोटे देश भी शामिल हैं.
डॉ. प्रदीप तनेजा कहते हैं कि इन देशों के अपने विशेष मुद्दे भी हैं, जिन पर फोरम में ही चर्चा हो पाती है. वह कहते हैं, "इन देशों के कुछ खास मुद्दे हैं. जैसे जलवायु परिवर्तन. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे ज्यादा ग्रस्त देशों में से कुछ इन्हीं में हैं. ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर या तो संयुक्त राष्ट्र में चर्चा होती है या फिर इन देशों के अपने संगठन में. इस लिहाज से पैसिफिक आईलैंड फोरम एक अहम समूह है."
हाल के महीनों में यह समूह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खासा महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि चीन ने एक के बाद एक कई देशों के साथ समझौते या तो कर लिए हैं या करने की कोशिश की है. यही वजह है कि अमेरिका भी कई दशकों तक इस क्षेत्र को नजरअंदाज करने के बाद अब यहां ध्यान देने की कोशिश कर रहा है.
डॉ. तनेजा के शब्दों में, "चीन की सक्रियता को लेकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस जैसी इस इलाके की दूसरी बड़ी ताकतें घबराई हुई हैं. उन्हें लगता है कि सुरक्षा के लिहाज से चीन को इस इलाके से फायदा हो सकता है. तो मुझे लगता है कि ऑस्ट्रेलिया के कहने पर अमेरिका इस ओर ध्यान दे रहा है, क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री अल्बानीजी की जो बाइडेन से जब भी मुलाकात हुई है, तो उन्होंने बाइडेन से पैसिफिक पर ध्यान देने की बात कही है."