भारत पर प्रदूषण को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव
१५ अप्रैल २०२१भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार 15 अप्रैल को नई दिल्ली में एक सम्मेलन के दौरान कहा कि अमेरिका, चीन और यूरोप ने पिछली शताब्दी में जो भीषण प्रदूषण फैलाया है उसकी कीमत भारत नहीं चुकाएगा. भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं और दुनिया के सबसे बड़े कार्बन के उत्पादकों के रूप में जाना जाता है.
कोयले पर अपनी भारी निर्भरता के कारण भारत विश्व में कार्बन डाइऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, लेकिन उसने इस उत्सर्जन को कम करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य अपने सामने रखे हैं. साथ ही भारत बार बार दूसरे बड़े देशों को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास भी करा रहा है. कुछ ही दिनों पहले भारत आए अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष राजदूत जॉन केरी ने भी जलवायु परिवर्तन पर इशारों इशारों में भारत को और मेहनत करने को कहा था.
बुधवार को फ्रांस के विदेश मंत्री जां-ईव लु द्रिआं ने नई दिल्ली में एक बहस के दौरान बिना भारत का नाम लिए कहा कि दुनिया को कोयले से बिजली बनाना बंद करना पड़ेगा. हालांकि जावड़ेकर ने दोटूक कहा कि भारत "दूसरे देशों के दबाव में आकर" कोई कदम नहीं उठाएगा. भारत पहले भी शिकायत कर चुका है कि पर्यावरण पर आयोजित किए गए पिछले शिखर सम्मेलनों में जिस आर्थिक मदद का वादा भारत से किया गया था वो अभी तक दी नहीं गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के 40 नेताओं के साथ अप्रैल 22-23 को एक और जलवायु शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस सम्मेलन का आयोजन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कर रहे हैं. कुछ महीनों बाद नवंबर में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन भी होना है.
नई दिल्ली में अमेरिका, यूरोप और चीन का हवाला देते हुए जावड़ेकर ने कहा, " उन्होंने उत्सर्जन किया जिसका नतीजा आज दुनिया भुगत रही है. भारत दूसरों के किए की सजा भुगत रहा है. हम यह किसी को भी भूलने नहीं देंगे." भारत में 70 प्रतिशत बिजली कोयले से ही बनती है और देश ने अक्षय ऊर्जा को बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने फरवरी में कहा था कि भारत के कार्बन उत्सर्जन में 2040 तक 50 प्रतिशत वृद्धि आगे और यह इसी अवधि में यूरोप में उत्सर्जन में संभावित रूप से आने वाली गिरावट को बेकार कर देगा. आईईए के अनुसार भारत को अगले 20 सालों में "सस्टेनेबल मार्ग" पर लाने के लिए 1,400 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी. भारत की मौजूदा नीतियां जितने खर्च की अनुमति देती हैं, यह उससे 70 प्रतिशत ज्यादा है.
सीके/आरपी (एएफपी)