चेहरे पहचाने की तकनीक से बढ़ेगा जासूसी का खतरा
७ नवम्बर २०१९राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक कैमरा तकनीक के इस्तेमाल से पुलिस बल का आधुनिकीकरण, सूचना इकट्ठा करना, अपराधियों की पहचान करना आसान होगा. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने इसके लिए टेंडर निकाला है. अगर यह योजना लागू हो जाती है तो संभव है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी पहचान प्रणाली होगी. भारत सरकार इस योजना के लिए शुक्रवार को टेंडर खोलने जा रही है.
हर शख्स की पहचान
गैर-लाभकारी संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता कहते हैं कि इसकी जानकारी बहुत ही कम है कि इसका इस्तेमाल कहां होगा, किस तरह के डाटा का इस्तेमाल होगा और डाटा स्टोरेज को कैसे नियमित किया जाएगा.
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से अपार गुप्ता कहते हैं, "यह सामूहिक निगरानी प्रणाली है जो बिना आधारभूत कारण के सार्वजनिक जगहों पर डाटा जमा करती है. बिना डाटा संरक्षण कानून और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी ढांचा के यह एक तरह से सामाजिक पुलिसिंग को बढ़ावा दे सकता है. "
भारतीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं दी है.
दुनियाभर में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के बढ़ने के साथ ही फेशियल रेकग्निशन लोकप्रिय हुआ है. इसका इस्तेमाल अपराधियों को पकड़ने और गैरहाजिर रहने वाले छात्रों की पहचान के लिए होता आ रहा है.
निजता के लिए खतरा
हालांकि इसके खिलाफ विरोध भी बढ़ रहा है और सैन फ्रांसिस्को में प्रशासन ने चेहरे पहचानने की तकनीक पर बैन लगा दिया है. "निगरानी -विरोधी फैशन" भी अब लोकप्रिय हो रहा है. जुलाई में कुछ भारतीय एयरपोर्टों पर फेशियल रेकग्निशन तकनीक लॉन्च हुई थी. दिल्ली पुलिस ने पिछले साल कहा था कि उसने इस तकनीक के ट्रायल के दौरान ही करीब 3000 लापता बच्चों की पहचान कर ली. हालांकि टेक्नोलॉजी साइट कॉम्पेरिटेक ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में दिल्ली और चेन्नई को दुनिया के दो सबसे ज्यादा निगरानी वाले शहरों की रैंकिंग में डाला. वेबसाइट का कहना है कि सार्वजनिक जगहों पर सीसीटीवी कैमरे की संख्या और अपराध या सुरक्षा के बीच उसने बहुत थोड़ा ही परस्पर संबंध पाया.
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि फेशियल रेकग्निशन देश की जरुरत है क्योंकि यहां पुलिस की संख्या बहुत कम. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक एक लाख नागिरकों पर पुलिस के 144 जवान हैं जो कि दुनिया में सबसे कम अनुपात है.
गहरे रंग वाली महिलाएं, जातीय अल्पसंख्यक और ट्रांसजेंडर की पहचान करने में यह तकनीक कारगर नहीं पाई गई. ब्रिटेन स्थित मानवाधिकर संस्था आर्टिकल 19 में वकील और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रिर्सच करने वाली विदूषी मार्दा कहती हैं, "ऐसी न्याय प्रणाली में इसके दुरुपयोग का खतरा अधिक बढ़ जाता है जहां पर मूल निवासी और अल्पसंख्यकों की स्थिति कमजोर है. वो कहती हैं, "फेशियल रेकग्निशन का इस्तेमाल अपने वादे को पूरा किए बिना तकनीकी निष्पक्षता का दिखावा करता है और यह भेदभाव को संस्थागत प्रणाली बनाता है."
भारत की सर्वोच्च अदालत ने 2017 में आधार पर दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था निजता मौलिक अधिकार है. अपार कहते हैं, "नीति निर्माण करते वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा को केंद्र में रखने का चलन बढ़ा है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारों को सीमित करने का कोई कारण नहीं हो सकता है."
अपार के मुताबिक, "यह चिंताजनक है कि तकनीक का इस्तेमाल सरकार द्वारा शक्ति के साधन के रूप किया जा रहा जबकि इसका इस्तेमाल तो नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए किया जाना चाहिए."
एए/एनआर(रॉयटर्स)
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