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इंटरनेट में ड्रोन

१५ अप्रैल २०१४

इंटरनेट की दुनिया को हर किसी तक पहुंचाने की प्रतिस्पर्धा कड़ी हो रही है. टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनी गूगल ने भी तेजी से उभर रहे अपने प्रतिद्वंदी फेसबुक के रास्ते पर चलते हुए एक ड्रोन बनाने वाली कंपनी को खरीद लिया है.

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Drohne / Titan Aerospace
तस्वीर: picture-alliance/AP

सोमवार को जब गूगल ने एलान किया कि उसने 'टाइटन एयरोस्पेस' नामकी सोलर पावर ड्रोन बनाने वाली कंपनी खरीद ली है तो इसे गूगल का फेसबुक की तरफ जवाबी धमाका माना गया. फेसबुक पहले ही इंटरनेट को दूरदराज के इलाकों में पहुंचाने के लिए ड्रोन, सैटेलाइट और लेजर की मदद लेनी की योजना सामने रख चुका है.

'टाइटन एयरोस्पेस' अमेरिका के न्यू मैक्सिको राज्य की एक स्टार्टअप कंपनी है. यह कंपनी अधिक ऊंचाई पर सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रोन बनाती है. यह पता नहीं चल पाया है कि दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने इसे खरीदने के लिए क्या रकम चुकाई है. गूगल ने इतना बताया है, "टाइटन एयरोस्पेस और गूगल दोनों ही तकनीक के जरिए दुनिया को बेहतर बनाने को लेकर बहुत आशावादी हैं." गूगल का मानना है कि हर किसी तक इंटरनेट पहुंचाने में अभी वक्त लगेगा लेकिन इससे आपदा प्रबंधन और पर्यावरण से जुड़ी बहुत सी समस्याएं सुलझाना संभव हो पाएगा.

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गूगल कर रहा है सोलर गुब्बारे का इस्तेमालतस्वीर: picture-alliance/dpa

बताया जा रहा है कि टाइटन एयरोस्पेस के ड्रोन सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए करीब 19,000 मीटर की ऊंचाई पर पांच साल तक हवा में तैरते रह सकते हैं. यह दिखने में ग्लाइडर जैसे लगते हैं और इनके पंख करीब 50 मीटर तक फैले होते हैं. यह तकनीक 2015 तक इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाने की उम्मीद है. मजे की बात यह है कि मार्च तक फेसबुक भी इसी कंपनी को खरीदने की कोशिशों में लगी थी लेकिन फिर उसने टाइटन के बजाए 20 मिलियन डॉलर में ब्रिटिश ड्रोन कंपनी एसेंटा खरीद ली. इसके अलावा फेसबुक नासा के एयरोस्पेस एक्सपर्ट्स को भी अपने साथ लाया है और 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' नाम का एक प्रोजेक्ट चला रहा है.

दोनों बड़ी कंपनियों के निशाने पर हैं दुनिया के वे सात अरब लोग, जिन तक अभी इंटरनेट नहीं पहुंचा है. फेसबुक के 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' का मकसद है इनमें से करीब 70 फीसदी से ज्यादा लोगों को इंटरनेट से जोड़ना. इससे पहले गूगल भी इंटरनेट के विस्तार के लिए 'प्रोजेक्ट लून' लॉन्च कर चुका है, जिसमें सोलर गुब्बारे का इस्तेमाल होता है. कुल मिलाकर तकनीक की हवाई जंग जारी है.

आरआर/एएम (डीपीए, एपी)