फ्रांस: हिजाब पर पाबंदी और कानूनी टकराव
२३ सितम्बर २०११राजधानी पेरिस से लगभग 40 किलोमीटर पूर्व में मो कस्बे में एक अदालत ने हिंद अहमास पर 120 यूरो यानी (लगभग साढ़े 7 हजार रुपये) और नजाते नैत पर 80 यूरो (पांच हजार रुपये) का जुर्माना लगाया. उन पर यह जुर्माना स्थानीय नगर पालिका के बाहर हिजाब पहनने के लिए लगाया गया. हिजाब से सिर और चेहरा ढका जाता, सिर्फ आंखें दिखती हैं.
32 वर्षीय तलाकशुदा और एक बच्चे की मां अहमास ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए को बताया, "यह आधी जीत है. मेरे लिए पूरी जीत उस दिन होगी जब यह कानून पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा." अदालत ने दोनों महिलाओं को कानून के खिलाफ अपील करने का अधिकार दिया है. अगर उनकी अपील फ्रांस में नाकाम रहती है तो वे यूरोपीय मानवाधिकार अदालत में जा सकती हैं.
जुर्माने की खातिर
फ्रांस पिछले साल यूरोप का पहला ऐसा देश बन गया जिसने सार्वजनिक स्थलों पर इस्लामिक नकाब और बुर्का पहनने पर पाबंदी लगा दी. ऐसा करने पर 150 यूरो के जुर्माने के साथ नागरिकता क्लासें लेने के लिए कहा जा सकता है.
इस साल अप्रैल में जब से इस कानून पर अमल शुरू हुआ है, तब से अहमास और नकाब पहनने वाली कुछ और महिलाएं अपने मामले को अदालत में ले जाने के चक्कर में थीं. उन्हें ऐसे समूहों का समर्थन प्राप्त है जो समझते हैं कि यह कानून नागरिक आजादी के खिलाफ है. अहमास पहले भी पेरिस में राष्ट्रपति के महल के आसपास इस उम्मीद में घूमती देखी गई हैं कि पुलिस उन पर जुर्माना लगाए. लेकिन अधिकारी ऐसा कोई कदम उठाने से बचते रहे. उन्हें आशंका थी कि इससे पुलिस और पैरिस के बाहरी इलाकों और मारसेई में रहने वाले युवकों के साथ झड़प हो सकती है. इन इलाकों में ज्यादातर ऐसी महिलाएं रहती हैं कि जो बुर्का और हिजाब पर पाबंदी के कानून से प्रभावित हुई हैं.
कोशिश कामयाब रही
अहमास की मेहनत उस वक्त रंग लाई जब उन्हें और अली को स्थानीय अदालत में बुलाया गया क्योंकि वे मो के मेयर ज्यों फ्रांको कोप के दफ्तर में 5 मई को अपने ढके हुए चेहरे के साथ गई. मेयर होने के साथ साथ कोप राष्ट्रपति निकोला सारकोजी की सत्ताधारी यूनियन फॉर पॉपुलर मेजोरिटी (यूएमपी) पार्टी के नेता भी हैं.
दरअसल दोनों महिलाएं मेयर कोप को उनके जन्मदिन पर बादाम से बना केक देने गई थीं. कोप ने केक लेने से तो मना कर दिया है लेकिन जुर्माना के लिए यह सब करने वाली महिलाओं की कोशिश कामयाब रही.
अहमास कहती हैं, "भले ही इसमें तीन साल लगें, तो कोई बात नहीं. हमसे हमारी आजादी छीनने वाले कानून को खत्म करवाने के लिए हम ऐसा करने को तैयार हैं." लेकिन फ्रांस के बहुत से लोगों ने इस प्रतिबंध का समर्थन किया है. वे समझते हैं कि ये कानून इस्लामी रूढियों से महिलाओं को आजाद करेगा. लेकिन अहमास और दूसरी महिलाएं कहती हैं कि इस कानून ने उन्हें अपने घरों में कैद कर दिया है.
अहमास के वकील गिले देवेर का कहना है, "ये महिलाएं पूरी तरह घरों में कैद हो गई हैं. उनके लिए तो यह सजा है."
कानून पर टकराव
कुछ महिलाओं का कहना है कि उन पर फब्तियां कसे जाने और हमलों की घटनाएं बढ़ गई हैं. मारसेई में रहने वाली दो बच्चों की मां और तलाकशुदा मैरी हसन कहती हैं, "मेरी बेइज्ज्ती की गई. मुझे डर्टी अरब कहा गया और बताया गया कि कार्निवाल खत्म हो गया है. मुझसे कहा कि अपने देश वापस चली जाओ."
हसन का कहना है कि हिजाब पहनने का फैसला खुद उनका अपना है. अहमास की तरह हसन भी मोरक्कन माता पिता की संतान हैं जिनकी पैदाइश और परवरिश फ्रांस में हुई. उन्होंने 25 साल की उम्र से चेहरे पर हिजाब पहनना शुरू किया.
इस मामले के असर पूरे यूरोप में हो सकते हैं. बेल्जियम, इटली, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स और स्विट्जरलैंड जैसे कई देशों में या तो बुर्के और हिजाब पर पाबंदी लग चुकी है या इसकी तैयारी हो रही है.
फ्रेंच कारोबारी राशिद नेक्काज ने एक समूह बनाया है जिसे नाम दिया गया है मेरे संविधान को मत छूओ. यह समूह प्रतिबंध के खिलाफ मुहिम चला रहा है. उन्होंने दस लाख यूरो का एक कोष बनाया जिससे प्रभावित देशों में बुर्का और नकाब पहनने वाली महिलाओं पर लगे जुर्माने की रकम चुकाई जाएगी. वह खुद बुर्का या नकाब के फैन नहीं हैं बल्कि कहते हैं, "इस कानून का मकसद डर फैलाना है."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा एम