1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मन फ्रेंच दोस्ती के अनुभव

२२ जनवरी २०१३

जर्मनी और फ्रांस अपनी दोस्ती के 50 साल मना रहे हैं. जर्मनी के विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि यह दोस्ती उनकी जिंदगी से भी जुड़ी है.

https://p.dw.com/p/17P1e
तस्वीर: DW/M. Hoffmann

बर्लिन में जर्मनी और फ्रांस उस एलिजे समझौते की 50वीं वर्षगांठ मना रहे हैं जिसने दोनों देशों के बीच दशकों की दुश्मनी का अंत किया. आज जर्मन फ्रांस दोस्ती एक मिसाल बन गई है.

गीडो वेस्टरवेले (51) 2009 से जर्मनी के विदेश मंत्री हैं. बॉन में पले बढ़े लिबरल राजनीतिज्ञ 2001 से 2011तक सत्ताधारी मोर्चे की फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी के अध्यक्ष थे. पेशे से वकील वेस्टरवेले 1996 से जर्मन संसद बुंडेसटाग के सदस्य हैं. जर्मनी और फ्रांस के बीच मैत्री संधि पर 22 जनवरी 1963 को दस्तखत हुए. इसकी 50वीं सालगिरह पर बर्लिन में दोनों संसदों की संयुक्त बैठक हो रही है.

डॉयचे वेले: विदेश मंत्री महोदय, एलिजे समझौते के 50 साल, जर्मन-फ्रांसीसी मेलमिलाप के 50 साल. हमारे देश के लिए इसका क्या महत्व है?

गीडो वेस्टरवेले: इसका मतलब सबसे पहले तो यह है कि जर्मन फ्रांसीसी दोस्ती सचमुच हमारे यूरोपीय खजाने का जवाहर है. लेकिन स्वाभाविक रूप से हमारे लिए राष्ट्र के रूप में एक स्तंभ. जब आप अकेले यह सोचें कि जर्मनी और फ्रांस के शहरों के बीच करीब 2000 पार्टनरशिप हैं तो यह विस्तार को भी दिखाता है. जर्मन फ्रेंच टेलिविजन चैनल, एक ब्रिगेड में ड्यूटी करने वाले सैनिक जवान. 50 साल पहले की शुरुआत का सचमुच अद्भुत विकास हुआ है.

क्या फ्रांसीसी राष्ट्रपति गॉल और जर्मन चांसलर कोनराड आडेनावर के बीच जर्मन-फ्रांसीसी सुलह हमारे महाद्वीप पर शांति की अभूतपूर्व सफलता का आधार थी?

यह आरंभिक स्पार्क था, जो दोनों देशों की जनता के बीच दोस्ती का आधार बन गया है. मैंने खुद अपने युवाकाल में राइनलैंड में जर्मन फ्रेंच युवाओं की भेंट को देखा है. ये सफलता की असाधारण कहानियां हैं. हम युवा लोगों को इससे पेन-फ्रेंडशिप शुरू करने या एक दूसरे के देश का दौरा करने की प्रेरणा मिली.

क्या आपने उन दिनों में आक्रोश का भी अनुभव किया?

हां, मैंने इसका अनुभव किया था. लेकिन इसे मैं आक्रोश नहीं कहूंगा, बस उस पर दुख या हताशा कहूंगा जो जर्मनी ने फ्रांस के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में किया था. मेरे साथ यह तब हुआ जब मैं दोस्तों के साथ ब्रेतान्ये में तंबुओं में छुट्टी बिता रहा था. हम एक छोटी सी दुकान में कुछ खरीदना चाहते थे, लेकिन बुजुर्ग महिला हमें सामान देने को तैयार नहीं थी. वह पिछले कमरे में चली गई और हमें उसके रोने की आवाज आई. उसके बाद उसकी बेटी सामने आई और कहा, "नौजवानों इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, बल्कि इस बात से है कि मेरी मां के पति, मेरे पिता विश्वयुद्ध में जर्मनों के हाथों मारे गए हैं." यह घटना मेरे साथ 1970 के दशक में हुई थी. सौभाग्य से हमारी जनता के संबंधों पर अब इसका असर नहीं है. आज जर्मनी और फ्रांस, फ्रांस और जर्मनी मुख्यतः भविष्य की ओर देख रहे हैं कि हम मिलजुलकर क्या कर सकते हैं.    

पहले हम एक बार फिर पीछे की ओर देखें. इन 50 सालों को देखने पर जर्मन-फ्रांसीसी दोस्ती के कई जोड़े भी दिखते हैं. स्वाभाविक रूप से चार्ल्स गॉल और कोनराड आडेनावर, हेल्मुट श्मिट और वलेरी जिस्कार देस्तां, हेल्मुट कोल और फ्रांसोआ मितरां, गेरहार्ड श्रोएडर और जाक शिराक. मजेदार बात यह है कि उन राजनीतिज्ञों में अच्छी बनी जो अपनी पार्टी की सीमा से बाहर सक्रिय थे. क्या यह पार्टनरशिप की सफलता का भी एक हिस्सा है?

मैं समझता हूं कि इसके लिए कोई नियम नहीं है और न ही कोई कानून. यह शख्सियतों पर निर्भर करता है. मैं यह खुद यूरोप के दूसरे विदेश मंत्रियों के साथ सहयोग में देखता हूं. उसमें बात पार्टी या पार्टी की नीति की नहीं होती. उसमें दरअसल बात यह होती है कि एक के साथ आपके रिश्ते बहुत अच्छे होते हैं क्योंकि जल्द ही लय मिलने लगता है, क्योंकि शायद दोनों का एक जैसा मिजाज है, या एक जैसी दिलचस्पी है. कोई थोड़ा खुला होता है तो कोई बंद, ऐसे लोगों के साथ बहुत मुश्किल होती है. किसी के साथ अच्छा व्यक्तिगत संबंध बनाना वैसा ही है, जैसा सामान्य जीवन में होता है. हमारा सौभाग्य रहा है कि युद्ध के बाद के इतिहास में फ्रांस और जर्मनी के जिम्मेदार नेता बहुत निकट और व्यक्तिगत रिश्ता कायम कर पाए और अब भी फिर से ऐसा ही होगा.

मतलब अंगेला मैर्केल और फ्रांसोआ ओलांद के मामले में भी. आपको क्या लगता है कि आरंभिक मुश्किलों के बाद ये दोनों भी जर्मन फ्रांसीसी राजनीति की आदर्श जोड़ी बन जाएंगे?

मैं यह संभव मानता हूं. हम इस बात की पूरी कोशिश करेंगे कि ऐसा हो. अलां जुप्पे के साथ, जो लौरां फाबिउस से पहले दूसरी पार्टी के विदेश मंत्री थे, शुरू में मेरी बहुत बहस होती थी. बाद में सचमुच बेहतरीन कामकाजी रिश्ते बन गए. लौरां फाबिउस के साथ हमारा निकट सहयोग है. जब मैं यूरोप और दुनिया में देखता हूं तो मेरा मानना है कि शायद ही कोई दूसरी राजनीतिक जोड़ी है जो फ्रांस और जर्मनी जितना निकट सहयोग करती है.मुलाकातों और टेलिफोन पर होने वाली बातचीतों की आप अब गिनती नहीं कर सकते. अब कुछ खास नहीं रहा जब जर्मनी और फ्रांस के राजनीतिज्ञ मिलते हैं. मेरी जवानी के दिनों में ऐसा था.

इसका मतलब हुआ कि आप अपने सहकर्मी फाबिउस के साथ हर रोज नहीं तो नियमित रूप से बातचीत करते हैं, मसलन माली के बारे में भी?

यदि मैं गिनती करूं तो कहूंगा कि हफ्ते में एक-दो बार हम निजी संपर्क में होते हैं, चाहे किसी सम्मेलन में या फिर द्विपक्षीय दौरों पर. माली पर मुश्किल फैसले के मामले में भी ऐसा ही था. पहले मुझे फ्रांसीसी विदेश मंत्री ने टेलिफोन पर फ्रांसीसी नजरिए से स्थिति के बारे में बताया. उसके अलगे दिन माली की सरकार के आग्रह पर फ्रांस की कार्रवाई शुरू हुई. उसके बाद हमने विभिन्न स्तरों पर और इलाकों में फिर से बातचीत की. सोमवार को हमने फिर से टेलिफोन पर बातचीत की. यह इस बात को स्पष्ट करता है कि यह जटिल, स्थिर और रस्मों वाली बातचीत नहीं हैं. वह भी होती है, समारोह भी होते हैं, लाल गलीचा भी बिछाया जाता है, कभी कभी परेड और प्रोटोकोल वाला सरकारी स्वागत भी होता है, लेकिन ईमानदारी से कहूंगा कि यह हमारे रिश्तों को निर्धारित नहीं करता. हमारे रिश्ते निर्धारित होते हैं, बहुत सारी बातचीतों से, और बहुत से हार्दिक लेकिन कभी कभी गंभीर विचार विनिमय से.

जर्मनी और फ्रांस हमेशा से यूरोपीय विकास के मोटर रहे हैं, यह छह देशों के यूरोपीय आर्थक समुदाय के समय था, 9 और 12 सदस्यों वाले यूरोपीय समुदाय के लिए था और बाद 15 और 27 सदस्यों वाले यूरोपीय संघ के लिए जो जल्द ही 28 सदस्यों वाला हो जाएगा.क्या जर्मन फ्रांसीसी मोटर यूरोपीय एकता में प्रगति के लिए अपरिहार्य है?

फ्रांस और जर्मनी यूरोप में एकीकरण के हर कदम के लिए सचमुच अपरिहार्य शर्त हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि जर्मनी और फ्रांस का एकमत होना पर्याप्त है, बेशक नहीं. लेकिन जब जर्मनी और फ्रांस राजी नहीं हैं, तो यूरोपीय प्रक्रिया के साथ कुछ नहीं हो सकता. फिर भी यह जरूरी है कि हम दूसरे सहयोगियों और पड़ोसियों को शामिल करें क्योंकि अब हम पश्चिम यूरोप में नहीं बल्कि यूरोप में रहते हैं.

मैं इसकी बहुत कोशिश कर रहा हूं कि जर्मनी और फ्रांस के बीच इस निकट सहयोग में हमारे पूर्वी बड़े पड़ोसी पोलैंड को भी शामिल किया जाए. और कुछ अत्यंत अहम फैसले भी हुए हैं, मसलन पोलैंड और रूस में नजदीकी. कालिनिनग्राद की ओर सीमा को खोलना, इस इलाके के इतिहास को देखते हुए और जर्मनी के अपराध की पृष्ठभूमि में कोई मामूली बात नही. यह साफ है कि यहां पेरिस-बर्लिन सहयोग में वारसा के साथ निकट सहयोग के जरिए समझदार योगदान दिया जा सकता है. इसलिए मैंने वाइमार त्रिभुज की परंपरा फिर से शुरू की है, और मैं समझता हूं कि यह अच्छा फैसला था.

क्या पोलिश भी ऐसा चाहते हैं?

पोलैंड की इस निकट सहयोग में बड़ी दिलचस्पी है, जो इस बात में भी दिखता है कि पोलैंड के विदेश मंत्री ने यूरोप नीति पर अपना अब तक का संभवतः सबसे अहम भाषण यहां बर्लिन में दिया है. वापस हमारे संबंधों पर असर डालने वाली बातों पर. मैं सबसे कहूंगा कि जर्मन-फ्रांसीसी दोस्ती को स्वाभाविक नहीं समझें. यह नहीं सोचें कि हमेशा ऐसा ही रहेगा, क्योंकि पिछले दशकों में इसका इतना सकारात्मक विकास हुआ है. इस पर हर दिन नए सिरे से काम करना होगा, दोस्तियों में ऐसा ही होता है. हमें एक दूसरे से हमेशा, हर रोज आदर के साथ मिलना होगा. मैं समझता हूं कि खासकर युवा पीढ़ी को यूरोप में हो रही घटनाओं में ज्यादा दिलचस्पी लेनी चाहिए, खासकर हमारे दोस्ताना पड़ोसी फ्रांस में. और युवा पीढ़ी को यूरोप के दूसरे देशों में रहने, वहां सीखने के मौके का इस्तेमाल करना चाहिए. हमारी पीढ़ी में यह बहुत अलग था. हमारे समय में यह उतना सामान्य नहीं था.

यदि मैं अपनी जिंदगी फिर से जी सकता, यदि मैं फिर से युवा होता, स्कूल जाता या कॉलेज में पढ़ता, तो मैं निश्चित रूप से कुछ समय किसी दूसरे यूरोपीय देश में रहना चाहूता. शायद फ्रांस में. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी देश में सैलानी के रूप मे जाते हैं, कारोबार के लिए या पेशे की वजह से या फिर आप वहां डूब जाते हैं. वहां की संस्कृति को सचमुच जीते हैं, उसकी खुशबू महसूस करते हैं, उसका स्वाद लेते हैं, उसका आनंद लेते हैं. इन मुलाकातों से बहुत समझ पैदा होती है और यह जर्मन फ्रांसीसी दोस्ती का स्थिर खजाना है. राजनेता आते हैं, और चले जाते हैं, सरकारें आती-जाती हैं, सांसद तय समय के लिए सांसद रहते हैं, जो बच जाता है वह लोगों के बीच दोस्ती है. 

आप राइनलैंड के हैं, कुछ तो यह भी कहते हैं कि खुलकर राइनलैंड का मानने वाला. क्या आपके युवाकाल में फ्रांसीसी संस्कृति यानि फिल्म, शांसों या सार्त्र से लेकर कामू के साहित्य की कोई भूमिका थी, या इनका आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा?

इनकी बहुत बड़ी भूमिका थी. मेरी गिडे नाम के एक लेखक में बहुत से कारणों से दिलचस्पी रही. लेकिन सबसे बढकर फ्रांस में मेरे हमउम्र दोस्त थे, पेरिस के दक्षिण में छोटे से शहर इटाम्पेस में. वहां मैंने एक बार क्रिसमस भी गुजारा और अपनी बहुत खराब फ्रांसीसी भाषा की मदद से त्योहार मनाने की कोशिश भी की. यह ऐसी यादें हैं जो जींदगी भर नहीं भूली जा सकतीं.

यह भी कि फ्रांस की जिंदगी जर्मनी से कहीं ज्यादा परंपरागत है?

मिसाल के तौर पर यह कुछ ऐसा है जो मेरी यादों में रह गया है.

और यह कि लोग जिस तरह से जर्मनी में दादा-दादी के साथ पेश आते हैं, उसकी तुलना में वहां यह एकदम अलग है?

हमारे यहां भी ऐसा ही था, और बहुत दिलचस्पी भी थी, क्योंकि मैं नई जर्मन में कहूंगा कि मैं पैचवर्क परिवार में बड़ा हुआ हूं.  परिवार हमेशा इस पर ध्यान देते थे कि कम से कम दूसरी जगह पर स्थिती हाथ से बाहर न निकल जाए. लेकिन फ्रांस में मैंने देखा कि यह कितना समारोही था, क्योंकि लोग सजधज कर निकलते थे. फ्रांस में क्रिसमस जैसे त्योहार को मनाने की, खाने पीने की भी तैयारी कई दिनों से होने लगती है. इसे भुलाया नहीं जा सकता. और वे फ्रांस के मध्यवर्ग के साधारण लोग थे. उनका सौहार्द भुलाया नहीं जाता. और किस प्यार के साथ लोग हम जर्मन युवाओं से भी मिलते थे, यह अद्भुत था. कम से कम इस परिवार ने हमें युवावस्था में ही इतिहास के दबाव झेलने से बचाने की हर कोशिश की. इसके विपरीत वे इस बात पर खुश थे कि उनके बेटे और बेटी के साथ मेरी जम रही थी, और हम बहुत कुथ साथ साथ करते थे. इसे आप कभी नहीं भूल सकते. इसने मुझे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया है. इसलिए मेरे लिए जर्मन फ्रांसीसी दोस्ती सिर्फ विदेश मंत्री या राजनीतिज्ञ का मामला नहीं है, मेरे लिए यह सरकारी नीति से बहुत ज्यादा है. मेरे लिए यह मेरी अपनी जिंदगी का एक जिया गया अध्याय है.

इसके बावजूद आप एक अंतिम सवाल से नहीं बचेंगे. फ्रांसीसी या इटैलियन खाना?

आह, भले ही अजीब सा लगे, लेकिन जब हम खुद खाना बनाते हैं, तो बहुत घरेलू खाना बनाते हैं, ईमानदारी से कहूं तो पूरी तरह जर्मन.

हार्दिक धन्यवाद इस बातचीत के लिए.

इंटरव्यू: अलेक्जांडर कुदाशेफ/एमजे

संपादन: ईशा भाटिया