बाढ़ में भी घर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं असम के लोग
१७ जुलाई २०१९सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती इलाकों में 20 फीसदी मामलों में दोबारा नागरिकों की पुष्टि करने और बाकी इलाकों में दस फीसदी मामलों में ऐसा करने की अपील की है. इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस सूची के प्रकाशन में और समय लेने का भी फैसला किया है.
एनआरसी की अंतिम सूची प्रकाशित होने से महज दो सप्ताह पहले केंद्र व राज्य सरकारों के इस रवैए से साफ है कि यह पूरी कवायद अनियमितताओं की शिकार रही है. सुप्रीम कोर्ट बार-बार कह चुका है कि 31 जुलाई को तय तारीख को ही उक्त सूची का प्रकाशन करना होगा. अब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य की इस ताजा याचिका पर शीघ्र विचार करने का भरोसा दिया है. याचिका के मुताबिक, दोबारा पुष्टि का काम पूरा हो जाने तक अंतिम सूची के प्रकाशन की तारीख आगे बढ़ानी होगी.
इस बीच, राज्य में आई बाढ़ की वजह से हजारों लोगों के कागजात नष्ट होने का खतरा है. कई लोग इस डर से अपना घर छोड़ कर राहत शिविरों में जाने को तैयार नहीं हैं कि कहीं उनको वहां से सीधे डिटेंशन सेंटरों में ना भेज दिया जाए.
विवाद
आखिर केंद्र व राज्य सरकार नए सिरे से नागरिकों की पुष्टि क्यों करना चाहती है? उनकी दलील है कि बीते
साल प्रकाशित मसविदे में कई अनियमितताएं सामने आई हैं. इस मसविदे में 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं थे. असम सरकार की दलील है कि कागजात नहीं होने की वजह से असम के लाखों मूल निवासी उक्त मसविदे में शामिल नहीं हो सके हैं. दूसरी ओर, उसमें विदेशी घोषित लोगों के नाम शामिल हैं. इसके अलावा यह आरोप भी सामने आया है कि कई अवैध प्रवासी एनआरसी अधिकारी के तौर पर काम कर रहे हैं. उनसे निष्पक्ष होने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
दरअसल, असम सरकार ने अगस्त, 2018 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में वैध नागरिकों के शामिल नहीं होने और अवैध प्रवासियों के नाम सूची में शामिल होने जैसी गड़बड़ियों को दूर करने के लिए अदालत से सूची में शामिल लोगों में से 10 फीसदी की नागरिकता की दोबारा पुष्टि करने की अनुमति मांगी थी. उसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह भी कम से कम 10 फीसदी नामों के सैंपल की दोबारा पुष्टि के पक्ष में है. उसके बाद उसी साल अक्तूबर में राज्य सरकार ने अपनी दूसरी याचिका में इसकी अनुमति देने और इसके लिए एक उच्च-स्तरीय समिति बनाने की अपील की थी. सरकार की दलील है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में कोई आदेश नहीं पारित होने की वजह से दोबारा पुष्टि की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है.
इस बीच केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि एनआरसी प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के
लिए वह 31 जुलाई की समयसीमा को बढ़ाने पर विचार कर रही है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा, "सरकार को ऐसी 25 लाख शिकायतें मिली हैं जिनमें कई नामों के गलती से बाहर होने और कुछ के इसमें शामिल होने की बात कही गई है. सरकार चाहती है कि एनआरसी की अंतिम सूची गलतियों से मुक्त हो.इसके लिए सुप्रीम कोर्ट से समयसीमा बढ़ाने की अपील की गई है."
गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि सरकार अंतराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक विदेशियों की पहचान कर उनको देश से बाहर निकालने के लिए कृतसंकल्प है.
बाढ़ का खतरा
एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशन के तीन सप्ताह पहले से ही असम के 33 में से 30 जिले बाढ़ की चपेट में हैं और इससे अब तक 17 लोगों की मौत हो चुकी है. ऐसे में लाखों लोग अपनी जान से ज्यादा नागरिकता से संबंधित दस्तावेजों की हिफाजत में जुटे हैं. यह कागजात नहीं मिलने तक लोग पानी में डुबे घरों तक को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. कइयों को यह डर भी सता रहा है कि कहीं उनको राहत शिविरों से ही डिटेंशन सेंटर में नहीं भेज दिया जाए. धेमाजी जिले में बाढ़ के पहले झटके में घरों में पानी भर जाने की वजह से हजारों लोगों के कागजात नष्ट हो गए हैं. यह लोग दिन-रात इस चिंता में हैं कि उनका क्या होगा.
जिले के एक राहत शिविर में रह रहे हरिमोहन बर्मन कहते हैं, "हमारा घर बाढ़ में डूब गया. हम किसी तरह अपनी जान बचा कर निकले हैं. अब हम नहीं जानते कि हमारा क्या होगा? तमाम कागजात बाढ़ की बलि चढ़ गए हैं." लोग सबकुछ पीछे छोड़ रहे हैं लेकिन नागरिकता के कागजात नहीं.
मोरीगांव जिले में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी परवेश कुमार बताते हैं, "लोगों को उनके घरों से निकाल कर राहत शिविरों तक पहुंचाना बेहद मुश्किल हो गया है. लोग नागरिकता संबंधी दस्तावेज के बिना घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं." कई लोग मानते हैं कि बाढ़ में अगर घर और खेत डूब गए तो उनके लिए अपनी नागरिकता साबित करना असंभव हो जाएगा.
कई लोग दस्तावेज तलाशने के लिए राहत शिविरों से घर लौटने लगे हैं. मोरीगांव के एक राहत शिविर में रहने वाले शमसुल आलम कहते हैं, "मेरा घर-बार, खेत सब कुछ डूब गया. हमने केले के पौधे के सहारे दो दिनों तक तैर कर भूखे-प्यासे रह कर जान बचाई है. लेकिन जीवन से भी ज्यादा कीमती चीज यानी नागरिकता संबंधी दस्तावेज हमारे पास है. इसके बिना मैं राज्यविहीन हो जाता."
बाढ़ की वजह से दावों का निपटान करने वाले अधिकारियों को भी भारी मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है. कई एनआरसी सेवा केंद्र पानी में डूबे हैं. हजारों लोगों के दस्तावेजों की पुष्टि का काम ठप हो गया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी की कवायद शुरू से ही गलतियों से भरी रही है. ऐसे में 31 जुलाई की तय समयसीमा पर इसका प्रकाशित होना संभव नहीं नजर आता.
एक मानवाधिकार संगठन के संयोजक जितेन दास कहते हैं, "हमारा संगठन तो बहुत पहले से इन अनियमितताओं के खिलाफ आवाज उठा रहा था. लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. अब आखिरी मौके पर केंद्र व राज्य ने अपनी गलतियां मानते हुए नागरिकता की दोबारा पुष्टि करने और समयसीमा बढ़ाने की अपील की है." वह कहते हैं कि एनआरसी में हुई गड़बड़ियों को दुरुस्त करना संभव ही नहीं है.